सोनभद्र। दुनिया के महान दार्शनिक सुकरात का कहना था कि यदि किसी काम को मन लगाकर किया जाये तो परिणाम सुखद होता है। परन्तु अधूरे मन से किया गया काम दुखों को बढ़ाता है। ऐसा ही कुछ देखने को मिला सदर ब्लॉक राबर्ट्सगंज के ग्राम समाधान दिवस के मौके पर दिनांक 26 सितम्बर 2022 को ग्राम सभा हररुआं में। इस समाधान दिवस को लीड कर रहे थे तहसीलदार साहब।
मौके पर तहसीलदार, गांव के सेक्रेटरी, लेखपाल एवं एक अन्य विभाग की महिला कर्मचारी ही उपस्थित नज़र आईं। बाकी अन्य विभागों के मुलाज़िम नदारद थे। ऐसे में समाधान दिवस की मंशा पर प्रश्न चिन्ह लगना लाज़मी है। वहीं ग्राम सभा समाधान दिवस के मौके पर ग्राम प्रधान अनिता सिंह ही नदारद थीं। ऐसे में ग्रामीणों की समस्याओं का कितना समाधान होगा यह तो भगवान ही जान सकता है।
समाधान दिवस को देखकर कहीं से यह नहीं लग रहा था कि वास्तव में यह महफ़िल समाधान दिवस में ग्रामीणों की समस्याओं का समाधान करने के लिए ही है। ग्रामीणों की समस्याएं अलग अलग विभागों से जुड़ी होती है। ऐसे मौके पर उक्त विभाग का कोई भी नुमाइंदा समस्याओं के निस्तारण में अहम रोल अदा करता है। लेकिन इस समाधान दिवस पर आख़िरकार प्रशासनिक कमजोरी उजागर हो गई। इससे साफ ज़ाहिर होता है कि ज़िम्मेदार अधिकारियों की अपने अधीनस्थों पर प्रशासनिक ग्रिप ढीली पड़ चुकी है। तभी तो समाधान दिवस पर जिन जिन विभागों के कर्मचारियों की ड्यूटी लगी थी वह मौके से गायब नज़र आये।
सब से अचम्भित करने वाली बात यह है कि उक्त ग्राम पंचायत की ग्राम प्रधान अनिता सिंह ही समाधान दिवस के मौके पर अनुपस्थित थीं। कर्मचारियों की कमी के चलते ग्रामीणों को विभिन्न समस्याओं के निवारण में असुविधा से दो चार होना पड़ा। इस समाधान दिवस को देखकर कहीं से ऐसा नहीं प्रतीत होता कि यह ग्रामीणों की समस्याओं के समाधन के लिए संचालित किया जा रहा है। वरन महज़ रस्म अदायगी ही नज़र आया। अब ज़िम्मेदार आलाधिकारियों को खुद ही फैसला करना होगा कि क्या ऐसे ही समाधान दिवस के दम पर ग्रामीणों की समस्याओं का समाधन करने का ढोंग किया जा रहा है। या फिर ज़िम्मेदार अनुपस्थितों की नकेल कसने की दृढ़
इच्छा शक्ति का सार्वजनिक प्रदर्शन भी देखने को मिलेगा। अंत में एक शेर बस बात ख़त्म। एक ही उल्लू काफी है बर्बाद गुलिस्तां करने को। यहां तो हर शाख पे उल्लू बैठे हैं अंजाम ए गुलिस्तां क्या होगा।