जब से चुनाव आयोगने उत्तर प्रदेश चुनाव का कार्यक्रम घोषित किया है, प्रदेश के अब तक करीब 10 से ज्यादा विधायक, मंत्री आदि भाजपा छोड़कर सपा में शामिल हो चुके हैं. इनमें से अधिकांश ओबीसी या अति-पिछड़े वर्गों के नेता माने जाते हैं. लखनऊ के राजनीतिक विश्लेषक शशिकांत पांडे कहते हैं, ‘अखिलेश यादव इस वक्त पिछड़े वर्गों के मान्य नेता के तौर पर उभरते हुए दिख रहे हैं. लोग जब सोच रहे थे कि वे निष्क्रिय हैं, तब वे असल में पिछड़े नेताओं को अपने पाले में लाने की तैयारी कर रहे थे. इसके नतीजे अब दिखाई दे रहे हैं.
नई दिल्ली । उत्तर प्रदेश चुनाव के लिहाज से भारतीय जनता पार्टी की चुनौतियां कम नहीं हो रही हैं. ताजा खबरें बता रही हैं कि प्रदेश में भाजपा के सामने सिर्फ भागते, पार्टी छोड़ते नेताओं की चुनौती नहीं है. बल्कि एक और भी है, जिससे पार्टी के तमाम समीकरण गड़बड़ाते हुए दिख रहे हैं.
एक अंग्रेजी दैनिक के मुताबिक, इस नई चुनौती का संकेत उत्तर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह के एक ट्वीट से भी मिलता है. यह ट्वीट उन्होंने गुरुवार को किया. इसमें लिखा, ‘पहले की किन्हीं भी सरकारों ने अन्य पिछ़ड़ा वर्गों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रतिनिधित्व उस तरह से नहीं दिया, जैसा भाजपा सरकार ने दिया है.

हमारे लिए ‘पी’ का अर्थ पिछड़ों और उनके कल्याण से है. अन्य के ‘पी’ का मतलब पिता, पुत्र और परिवार से है.’ इस तरह उन्होंने अपने ट्वीट के अगले हिस्से में समाजवादी पार्टी पर निशाना भी साध लिया, जिसमें भाजपा के कई चर्चित नेता शामिल हो चुके हैं .
दरअसल, उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष का यह ट्वीट संकेत है कि संभवत: प्रदेश के हिंदू वोटों में दरार पड़ रही है या पड़ चुकी. क्योंकि पार्टी छोड़कर जाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे तमाम नेता हिंदू पिछड़े वर्गों से ही ताल्लुक रखने वाले अपने-अपने समुदाय में काफी असर रखते हैं.

इसी वजह से कुछ समय पहले तक जो चुनावी माहौल राम मंदिर , मथुरा , काशी जैसे हिंदुत्व के मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमता दिख रहा था, अब ओबीसी पर आकर केंद्रित हो गया है.
पिछड़े वर्गों के नेता अब अखिलेश
जब से चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश चुनाव का कार्यक्रम घोषित किया है, प्रदेश के अब तक करीब 10 से ज्यादा विधायक, मंत्री आदि भाजपा छोड़कर सपा में शामिल हो चुके हैं. इनमें से अधिकांश ओबीसी या अति-पिछड़े वर्गों के नेता माने जाते हैं.

लखनऊ के राजनीतिक विश्लेषक शशिकांत पांडे कहते हैं, ‘अखिलेश यादव इस वक्त पिछड़े वर्गों के मान्य नेता के तौर पर उभरते हुए दिख रहे हैं. लोग जब सोच रहे थे कि वे निष्क्रिय हैं, तब वे असल में पिछड़े नेताओं को अपने पाले में लाने की तैयारी कर रहे थे. इसके नतीजे अब दिखाई दे रहे हैं.
हालांकि अब उनके सामने भी चुनौती होगी. यह कि एक तो बाहर से आए नेताओं को संतुष्ट कैसे रखा जाए. क्योंकि उन सभी को टिकट दिया जाता है, पार्टी के पुराने कार्यकर्ता नाराज होंगे और नहीं दिया जाता तो कूद-फांद करने वाले नेताओं का तो वैसे भी कोई भरोसा नहीं रहता.’