सोनभद्र। इस बार के विधानसभा चुनाव में जहां पिछली बार की तरह मोदी लहर नहीं दिख रही है वहीं बसपा-सपा की मजबूत घेरेबंदी और कांग्रेस की तरफ से दी जाती कड़ी टक्कर ने भारतीय जनता पार्टी के सियासी रणनीतिकारों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी है।
यहाँ आपको बताते चलें कि वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर पर सवार भाजपा ने सोनभद्र की चारों विधानसभा में से तीन पर स्वयं तथा एक सीट पर अपने सहयोगी अपनादल एस को विजय दिला कर जो जीत का परचम लहराया था उसे बरकरार रखने की जहां चुनौती है,वहीं इस बार के विधानसभा चुनाव में विरोधियों की अपने अपने वोटरों की मजबूत किलेबंदी को भेद कर उनके द्वारा पेश की गई जातीय समीकरणों को ध्वस्त कर अपने पक्ष में करना भी किसी चुनौती से कम नहीं है।
इस बार के चुनाव में सभी दलों द्वारा खासकर सपा व बसपा द्वारा अपने जातीय समीकरण के वोटरों को जहां मजबूती के साथ चुनाव तक अपने पक्ष में रखने की चुनौती है वहीं सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को जहां एक तरफ सत्ताविरोधी लहर पर काबू पाना होगा तो वहीं दूसरी तरफ जिन भी क्षेत्रों में पुराने प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं वहां पिछले पांच वर्षों के उनके कार्यकाल के दौरान नाराज पार्टी कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर कर उन्हें पूरे मन से चुनावी समर में कूदने के लिए तैयार करने की भी है। यहां यह बात भी उल्लेखनीय है कि सत्तारूढ़ पार्टी अपनी मजबूत संगठनात्मक ढांचे के आधार पर जीत के प्रति आश्वस्त तो है पर भितरघात से ससंकित भी ।
इस बार के विधानसभा चुनाव में राजनीतिक परिदृश्य बदला हुआ है।एक तो पिछले चुनाव की तरह भाजपा की कोई लहर नहीं है दूसरे समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी की जातीय समीकरण के आधार पर दिए गए प्रत्याशियों द्वारा भाजपा की, की गई मजबूत घेरेबंदी उस पर कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशियों द्वारा भी चुनाव में दी जा रही कड़ी टक्कर ने भाजपा प्रत्याशियों की राह बहुत मुश्किल कर दी है।फिलहाल भारतीय जनता पार्टी को अपने परम्परागत वोटरों की नाराजगी व पिछले चुनाव के दौरान पार्टी के प्रति चल रही लहर में मिले उसके गैर परम्परागत वोटों को अपने पाले में रखने की दोहरी चुनौती से पार पाने की जुगत ढूंढनी होगी।