सोनभद्र । वर्तमान समय में सोनभद्र जिले में अटैचमेंट के खेल ने पूरे जनपद के माहौल को बिगाड़ कर रख दिया है । अभी तक शिक्षा, स्वास्थ्य व पंचायत विभाग में बड़े पैमाने पर कर्मचारियों के अटैचमेंट का खेल उजागर हुआ है लेकिन आज हम आपको जिले में चल रहे एक और अटैचमेंट के खेल से रूबरू कराएंगे ,जिसे जानकर आप भी इन सरकारी कर्मचारियों के हैरतंगेज कारनामों से हैरान हो जाएंगे ।
जनपद में अभी भी ऐसे तमाम विभाग हैं जिन विभागों के पास खुद की गाड़ी नहीं है और ऐसे विभाग बाहर से गाड़ी लेकर विभाग में अटैच कर अपने सरकारी काम को अंजाम देते हैं। विभाग में गड़ियों के इसी अटैचमेंट के खेल को यदि समझने लगेंगे तो आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस खेल में ज्यादातर सरकारी कर्मचारी अपने किसी रिश्तेदार या फिर अपने विभाग के किसी आदमी के नाम गाड़ी ख़रीद कर फिर अपने विभाग में ही अटैच कर लेते हैं।इसका फायदा यह है कि विभाग से मिलने वाले पैसे से गाड़ी की क़िस्त जमा हो जाती है और बाद में उक्त गाड़ी को अपने किसी सगे वाले के नाम से ही क्रय कर लिया जाता है।इसका मतलब हुआ कि आम के आम गुठलियों के भी दाम। यहां आपको बताते चलें कि नियमानुसार यदि किसी गाड़ी का व्यवसायिक प्रयोग होना है तो उसका रजिस्ट्रेशन भी व्यवसायिक श्रेणी में होना चाहिए परन्तु यहां तो प्राइवेट परमिट वाली गाड़ियों को अटैच सरकार को मिलने वाले टैक्स को भी चूना लगाया जा रहा है।
सूत्रों की माने तो विभाग में लगने वाले प्राइवेट गड़ियों के अटैचमेंट के इस खेल में अच्छे-अच्छे कर्मचारी शामिल हैं । बताया जा रहा है कि कई सरकारी कर्मचारी अपने रिश्तेदारों के नाम गाड़ी फाइनेंस करवा विभाग में लगा दिए हैं और उसकी पूरी मॉनिटरिंग भी यही कर्मचारी करते हैं ।
सवाल यह नहीं कि कर्मचारी विभाग में गाड़ी क्यों लगवा रहे बल्कि गाड़ी विभाग में लगते ही उस कर्मचारी का पूरा फोकस अब अपनी गाड़ी के मॉनिटरिंग पर रहने अर्थात गाड़ी कब कहाँ जा रही है, गाड़ी का सर्विसिंग भी कराना है आदि तमाम कामों में उसका ध्यान बंटने से विभागीय कार्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इतना ही नहीं जनाब जब धंधे में उतर ही गए तो इस बात का पता लगाने में लग जाते हैं कि किस विभाग में गाड़ी लगनी है और उसका पैकेज रेट क्या है।
जानकारों का कहना है कि कुल मिलाकर इन दिनों जिस तरह से सरकारी विभागों में प्राइवेट गाड़ियां लगाई जा रही हैं और उससे जितना पैसा सरकार का हर महीने खर्च हो रहा है उतने पैसों में सरकार चाहे तो खुद गाड़ी खरीदकर क़िस्त विभागाध्यक्ष से जमा करवा सकती है ।
इससे न सिर्फ सभी विभाग के पास एक मॉडल की गाड़ी हो जाएंगी बल्कि खुद की गाड़ी हो जाएगी । और हर महीने खर्च हो रहे धन की बचत भी होगी ।