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Sonbhdr news: सरकारी अमले की गलती से बिना विस्थापन पुनर्वास पैकेज के गांव छोड़ने को मजबूर , पीड़ित पूरे परिवार ने दिया जल समाधि लेने की धमकी

बिग्गन भुइयां की दर्द भरी कहानी : कभी जोत कोड के आधार पर सोनभद्र में स्थित आदिवासियों और वनवासियों को भौमिक अधिकार प्रदान किया गया था । आज उन्ही विस्थापित आदिवासी परिवारों को सरकारी अमले की गलती कहे या फिर उनकी असम्बेडनशीलता , की कीमत पूरे परिवार सहित जान दे कर चुकाने को विवश होना पड़ रहा है।

Sonbhdra news । Kanahar dam displacementl सोनभद्र ।सोनभद्र के कुछ इलाकों के लिए बरदान बहुप्रतीक्षित कनहर बांध जैसे जैसे अपनी पूर्णता की ओर बढ़ रहा है वैसे वैसे ही उसके डूब क्षेत्र एरिया में आने वाली कुछ गांव की बस्ती में रहने वालों के प्रति सरकारी अमले द्वारा बरती गई उदासीनता व उनकी असम्बेडनशीलता के चलते उन गरीब लोगों की हो रही दुर्दशा की कहानी भी सामने आ रही है। अमवार के भिसुर गांव के बिगन भुइयां जिनके पूरे परिवार का नाम प्रशासनिक अधिकारियों और कर्मचारियों की लापरवाही और गलती की वजह से विस्थापन वाले प्रपत्र 6 में नहीं जुड़ पा रहा है ने आंखों में आसूं और लरजते और रूंधे गले से पूरे परिवार सहित जल समाधि लेने की बात कही । यहां आपको यह भी बताते चलें कि पूर्व में इस क्षेत्र में तैनात एक लेखपाल का अपने उच्चधिकारियों को लिखा गया पत्र खूब चर्चा में आया था जिसमे उसने अपने तत्कालीन तैनाती के दौरान अपने उच्चधिकारियों द्वारा विस्थापन पैकेज में से वसूली करने का आरोप लगाया था।

बिगन ने तहसीलदार से लगायत जिलाधिकारी सहित मुख्यमंत्री yogi adityanath तक गुहार लगाया , अपने पिता को 1978 में मिले 1366 रूपये के मुआवजा का कागज जो उसने काफी जद्दोजहद के बाद मिर्जापुर mirzapur से निकाल कर लाया था को भी दिखाया पर विस्थापन पैकेज में नाम जोड़ने वाले कर्मचारियों का दिल नहीं पसीज परिणामस्वरूप उसे मुवावजा नहीं मिला और अब जब बांध बन कर तैयार हो गया है तो डूब क्षेत्र में पड़ने वाली बस्ती खाली कराई जा रही हैं तो उन्हें भी बिना किसी मुवावजे के हो अपना घर बार छोड़ने पर मजबूर किया जा रहा है शायद इसी लिए वह कह रहे हैं कि हम सपरिवार इसी डूब क्षेत्र में जलसमाधि ले लेंगे पर अपना घर बार छोड़कर नहीं जाएँगे।

सरकारी अमले की गलती और भुगत रहा है आदिवासी परिवार (sarkari amle ki galti aour bhugat rha ek aadivasi parivar)

उसने स्थानीय स्तर पर लेखपाल और सिंचाई विभाग के लोगों को दिखलाया और हथजोड़ी विनती भी किया कि उसके परिवार का नाम सिंचाई विभाग और लेखपाल प्रपत्र 6 में जोड़ दे ,लेकिन प्रशासन उसके दावे को यह कह कर नकार दिया की 1978 में उसके पिता जोखू को उसके कच्चे मकान के दिए गए मुआवजा के कागज में जोखू पुत्र अकलू दर्ज है । अकलू जो रिश्ते में उसके दादा लगते है ,जबकि उसके पिता का नाम केवल था जिनकी वर्ष 2018 में मृत्यु हो चुकी है।आखिर जब यह बात कागजों में दर्ज है कि उसके दादा जी जोखू थे तो कागजो में उनके पुत्र का नाम बतौर उनके वारिस उनके पुत्रों को दर्ज करना इन्ही कर्मचारियों की जिम्मेदारी थी।आखिर जोखू के वारिस कहाँ चले गए और यदि जोखू के वारिस होने का कोई दावा प्रस्तुत कर रहा है तो उसका मेरिट के आधार पर परीक्षण करने की जिम्मेदारी किसकी है।उक्त डूब क्षेत्र में निवासित अनपढ़ गरीब आदिवासियों का सरकारी अमले द्वारा वर्षो से शोषण किया जाता रहा है और बिग्गन की कहानी नई नही बल्कि पुरानी कुछ कहानियों की पुनरावृत्ति भर है।

बिगन के स्वर्गीय पिता जोखू की पत्नी फुलमनिया के चार पुत्रों सहित नाती पोतों के इस परिवार का नाम विस्थापन दर विस्थापन का दंश सहने के बाद भी विस्थापितों की सूची में दर्ज नहीं है।

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अब जबकि कनहर बांध कनहर kanahar dam का लगभग पूरा हो चुका है और इस बरसात में पानी को रोक कर बांध को मूर्त रूप दिए जाने की सिर्फ औपचारिकता ही बाकी है ऐसे में फुलमनिया या बिगन की यह कातर गुहार की साहब भले हम्मन पूरे परिवार के साथ यही बंधवा में डूब के मर जाई लेकिन यहां से न हटब।

क्या डबल इंजन की लोकप्रिय सरकार करेगी इनका कल्याण (kya dabal injanjan ki sarkar karegi in garibon ka kalyan)

ऐसे में देखना अब यह है की वन अधिकार अधिनियम 2008 और इससे पूर्व सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से गठित सर्वे सेटलमेंट में जोत कोड के आधार पर सोनभद्र के दक्षिण में स्थित आदिवासियों और वनवासियों को भौमिक अधिकार प्रदान किया गया था । क्या तत्कालीन कर्मचारियों और अधिकारीयों के लापरवाही और गलती का खामियाजा बिगन और इन जैसे दर्जनों आदिवासी परिवारों को अब अपनी जान दे कर चुकाना पड़ेगा या फिर उत्तर प्रदेश के डबल इंजन की लोकप्रिय सरकार के मुखिया योगी आदित्यनाथ yogi adityanath अपनी संवेदनशीलता का परिचय देते हुए इनके साथ न्याय करेगें ।

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