Thursday, April 25, 2024
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राजस्व की लूट : हिंडाल्को और बाल्को ने सालों छिपाया मुनाफा , जनता को लगाया अरबों का चूना

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आदित्य बिरला समूह के हिंडाल्को द्वारा सोनभद्र के गरीब आदिवासी/वनवासी जनता का शोषण कर ,राजनैतिक दलों को करोडों रुपयों का चुनावी चन्दा देकर ,प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत से किस प्रकार देश के राजस्व की लूट की जा रही हैं उसे सोनभद्र की जनता को अवश्य जानना चाहिए ,इसलिए अपनी पत्रकारिता के सरोकारों को समझते हुए सोनभद्र से प्रकाशित विंध्यलीडर ,देश की लब्ध प्रतिष्ठित अंग्रेजी पत्रिका कारवां में प्रकाशित खोज परक रिपोर्ट को साभार प्रस्तुत करता है राजेंद्र द्विवेदी

एल्युमिनियम को गलाने के लिए पॉट लाइन. हिंडाल्को और बाल्को के संचालन पर आधिकारिक और आंतरिक दस्तावेजों के साथ सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध जानकारी के विश्लेषण से पता चलता है कि कंपनियों ने लगभग 24000 करोड़ रुपए के उत्पादन को छुपाया होगा.

रेणुकूट में हिंडाल्को केंद्र से छोड़ा जाता दूषित पानी. विभिन्न सरकारी एजेंसियों और कंपनी द्वारा रिपोर्ट किए गए आंकड़ों में केंद्र की वास्तविक उत्पादन क्षमता और उत्पादन के बीच भारी अनियमितताओं पर खुद ही सवाल उठाती हैं.

आदित्य बिरला समूह और वेदांता लिमिटेड भारत में उन पहले कारपोरेट दाताओं में से थे जिन्होंने कोविड-19 महामारी राहत के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बनाए गए और उन्हीं के द्वारा संचालित पीएम केयर्स फंड में भारी भरकम राशि दान दी थी. यह फंड मार्च 2020 में बनाया गया था और इसके बनने के पहले सप्ताह के भीतर ही आदित्य बिरला समूह ने 400 करोड़ रुपए तथा वेदांता ने 200 करोड़ रुपए दानस्वरूप दिए थे. इन दोनों निगमों की परोपकारिता के लिए मीडिया ने उनकी खूब सराहना की. पीएम केयर्स फंड को मोदी सरकार ने इन सवालों से बचा कर रखा है कि इसकी व्यवस्था कैसे की जा रही है? और इस मद में आने वाले दान का क्या हिसाब-किताब है? इतना ही नहीं इसे सार्वजनिक जांच के दायरे से भी बाहर रखा गया है.

सूचना अधिकार कार्यकर्ता जे. एन. सिंह ने दिसंबर 2019 में कई सरकारी एजेंसियों को सूचित किया था कि आदित्य बिरला समूह के एक हिस्से हिंडाल्को इंडस्ट्रीज और वेदांता की एक सहायक कंपनी भारत एल्युमिनियम कंपनी (बाल्को) ने अपनी-अपनी एल्युमिनियम उत्पादन की मात्रा को बड़े पैमाने पर छुपाया है. सिंह के पास इस बात के काफी सबूत हैं कि एल्युमिनियम उत्पादन करने वाली दो बड़ी कंपनियों ने विस्तारित अवधियों में लाखों टन उत्पादन का सही-सही विवरण नहीं दिया है, जिनसे सरकारी खजाने को करोड़ों रुपए का भारी नुकसान हुआ है. सिंह के पेश किए दस्तावेजों तथा अन्य स्रोतों के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्र में उपलब्ध सूचनाओं की छानबीन से संकेत मिलता है कि दोनों कंपनियों ने लगभग 24000 करोड़ रुपए के उत्पादन को सरकार की नजरों से छुपाया है.

हिंडाल्को इंडस्ट्रीज उत्तर प्रदेश के रेणुकूट में स्थित है. वहां की एल्युमिनियम उत्पादन केंद्र की दैनिक पॉट-रूम उत्पादन रिपोर्ट में 1997-98 तथा 2016-17 की अवधियों के बीच कंपनी के एल्युमिनियम उत्पादन के आंकड़ों में भारी और व्यवस्थित तरीके कम दिखाने तथा नियमित रूप से हेरफेर करने के सबूत हैं. कारवां के पास उन दो दशकों से संबंधित ऐसी 100 से अधिक उत्पादन रिपोर्टें हैं. उन रिपोर्टों में एक बड़े हिस्से में कम गिनने तथा गिनती मिटाए जाने के साक्ष्य स्पष्ट दिखते हैं. रेणुकूट के उत्पादन आंकड़ों की ये विसंगतियां इसकी निगरानी-निरीक्षण के लिए जवाबदेह सरकारी एजेंसियों के कामकाज में चूक का संकेत देती हैं. इनकी रिपोर्ट भारतीय खनन ब्यूरो के स्थानीय केंद्रीय उत्पाद तथा सेवा कर प्रभाग तथा खुद हिंडाल्को द्वारा की गई है. रेणुकूट की पिछले दो दशकों की कुल उत्पादन रिपोर्ट और केंद्र द्वारा 1997 से सार्वजनिक रूप से बताई गई उत्पादन क्षमता के बीच बहुत अंतर है. 20 लाख टन से अधिक के एल्युमिनियम उत्पादन का यह अंतर 15231 करोड़ रुपए मूल्य के बराबर है. उपलब्ध दस्तावेज यह भी खुलासा करते हैं कि एल्युमिनियम उत्पादन के दो उच्च मूल्य वाले उप-उत्पाद वैनेडियम स्लज तथा गैलियम के उत्पादन के जो विवरण हिंडाल्को ने दिए हैं, उनमें भी स्पष्ट विसंगतियां हैं.

छत्तीसगढ़ के कोरबा में बाल्को संयंत्र के उत्पादन आंकड़े में भी गड़बड़ी है. इस बारे में स्थानीय केंद्रीय उत्पाद और सेवा कर विभाग, छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण बोर्ड और भारतीय खनन ब्यूरो द्वारा रिपोर्ट की गई है. इन रिपोर्टों से खुलासा होता है कि कम से कम 2006-07 के बीच उत्पादन कंपनी की मान्य क्षमता से अधिक हुआ था. उस दौरान आधिकारिक कुल उत्पादन की पारंपरिक पद्धति में भी परिवर्तन (पूर्वव्यापी संशोधन) किया गया, जो एक बार फिर सरकार की निगरानी में चूक की तरफ इशारा करता है. ऐसी विसंगतियों के विश्लेषण से 2009-10 तथा 2016-17 की अवधि के सात में से पांच वर्षों में 8674 करोड़ रुपए के बराबर के उत्पादन की कम रिपोर्ट किए जाने का संकेत मिलता है.

दोनों ही मामलों में वास्तविक कुल छिपाव की मात्रा का निर्धारण मौजूदा सूचना के आधार पर नहीं किया जा सकता. इसके पूरे आंकलन के लिए सरकारी जांच एजेंसियों द्वारा व्यापक जांच किए जाने की जरूरत है. हिंडाल्को और बाल्को को उत्पाद प्राधिकारियों के समक्ष उत्पादन रिटर्न फाइल करनी होती है और उत्पाद शुल्क इन दस्तावेजों की संख्याओं के आधार पर उत्पादन के स्रोत पर लगाया जाता है. संबंधित वर्षों के दौरान अनराट एल्युमिनियम पर उत्पाद दरों में अस्थिरता रही है, लेकिन औसतन वे 10 प्रतिशत से अधिक रहे हैं. अनुमानित असूचित उत्पादन के मूल्य पर 10 प्रतिशत की दर भी लगाए जाने से हिंडाल्को द्वारा न्यूनतम 1500 करोड़ रुपए से अधिक की तथा बाल्को द्वारा 860 करोड़ रुपए से अधिक की उत्पाद शुल्क चोरी का पता चलता है. इन अनुमानों में कोई भी उपकर शामिल नहीं है, जो इस उत्पादन पर भी लगाया गया होता या इससे अर्जित आय पर कोई कर लगाया गया होता.

वित्त मंत्रालय में वरिष्ठ सलाहकार रह चुके एक वित्त विशेषज्ञ के अनुसार सरकारी बकाया से बचने के लिए उत्पादन कम करके बताना भारत के खनिज उद्योगों में प्रचलन है. इन दो प्रमुख एल्युमिनियम कंपनियों के लिए विभिन्न सरकारी एजेंसियों द्वारा रखे गए उत्पादन रिकार्डों में बार-बार की अनियमितताएं निगरानी और जवाबदेही की उद्योग व्यापी समस्या की ओर इशारा करती हैं. ये सरकारों के बार-बार बदले जाने के बीच विविध एजेंसियों द्वारा जानबूझकर त्रुटिपूर्ण रिपोर्टिंग की जाने की संभावना की ओर भी इशारा करती हैं, जो कंपनियों को बिना किसी परिणाम के उत्पादन के आंकड़ों में हेरफेर करते रहने का मौका देती है.आदित्य बिरला समूह और वेदांता लिमिटेड, दोनों के ही पिछली और वर्तमान सरकारों तथा सभी राजनीतिक दलों से घनिष्ठ संबंध रहे हैं.

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विंध्य क्षेत्र में बसा हुआ रेणुकूट उत्तर प्रदेश के दक्षिणी-पूर्वी कोने में सोनभद्र जिले में स्थित है जिसकी सीमाएं झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश से लगती हैं. यह हिंडाल्को इंडस्ट्रीज का ऐतिहासिक घर है, जिसने 1960 के दशक की शुरुआत में लगभग 20000 टन सालाना की क्षमता के साथ उद्योगपति घनश्यामदास बिरला की अगुवाई में अपना पहला एल्युमिनियम प्लांट लगाया था. आज हिंडाल्को की पहचान लगभग 1.3 मिलियन टन सालाना के उत्पादन के साथ 18 बिलियन डॉलर वाली कंपनी की है. ऐसा विभिन्न उत्पादन केंद्रों तथा सरकार द्वारा एल्युमिनियम की अयस्क बॉक्साइट सोर्सिंग के लिए कंपनी के विशिष्ट उपयोग के लिए लीज पर दिए गए आबद्ध (कैप्टिव)खदानों की बदौलत संभव हो पाया है. रेणुकूट स्थित हिंडाल्को परिसर एक हजार से अधिक एकड़ में फैला हुआ है और इसमें हजारों कर्मचारियों के लिए बसाया गया एक उपनगर (टाऊनशिप) भी शामिल है.

69 वर्षीय जे एन सिंह रेणुकूट के ही रहने वाले हैं, जिन्होंने 1990 के दशक के मध्य में हिंडाल्को परिसर में काम किया- पहली बार उस कंपनी के साथ जिसे इंजीनियरिंग सेवाओं का ठेका दिया गया था और फिर बाद में एक स्वतंत्र ठेकेदार के रूप में. सिंह ने मुझे बताया कि उन्होंने हिंडाल्को को लगभग पचास पॉट सेल्स की आपूर्ति की थी. इसका उपयोग एल्युमिनियम को गलाने के लिए किया जाता था. उन्होंने बताया कि उन्होंने देखा कि हिंडाल्को की एक इकाई ‘अपनी स्वीकृत क्षमता से बहुत अधिक मात्रा में एल्युमिनियम का उत्पादन कर रही है. सिंह ने 1997 में नौकरी छोड़ दी और कंपनी के गलत कारनामों का पर्दाफाश करने के लिए सूचनाएं जुटाना शुरू कर दिया.

रेणुकूट में हिंडाल्को केंद्र से छोड़ा जाता दूषित पानी. विभिन्न सरकारी एजेंसियों और कंपनी द्वारा रिपोर्ट किए गए आंकड़ों में केंद्र की वास्तविक उत्पादन क्षमता और उत्पादन के बीच भारी अनियमितताओं पर खुद ही सवाल उठाती हैं..  मीता अहलावत / डीटीई
रेणुकूट में हिंडाल्को केंद्र से छोड़ा जाता दूषित पानी. विभिन्न सरकारी एजेंसियों और कंपनी द्वारा रिपोर्ट किए गए आंकड़ों में केंद्र की वास्तविक उत्पादन क्षमता और उत्पादन के बीच भारी अनियमितताओं पर खुद ही सवाल उठाती हैं.

इस तैयारी के साथ सिंह ने 2002 में एक जनहित याचिका के जरिए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जिसमें कंपनी के घपलों को उजागर किया गया था और कंपनी के प्रचालनों की जांच की मांग की गई थी. विभिन्न पीठों से गुजरने के बाद आखिरकार भारत के तात्कालीन मुख्य न्यायाधीश बी एन किरपाल, अरिजित पसायत तथा के जी बालकृष्णन की तीन न्यायाधीशों की एक पीठ ने याचिका की सुनवाई की. पीठ ने सुनवाई के दौरान यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि यह “बदनीयती से भरी” है तथा सर्वोच्च न्यायालय “केस रजिस्टर करने वाली एजेंसी नहीं है.” न्यायाधीश ने यह भी कहा कि सिंह “न्यायालय में किसी और की लड़ाई लड़ रहे हैं” जिसका संदर्भ जिंदल एल्युमिनियम से था, जिसने लगभग उसी समय प्रकाशित विज्ञापनों में हिंडाल्को के खिलाफ घपले के ऐसे ही आरोप लगाए थे.

सिंह ने कहा कि याचिका का जिंदल एल्युमिनियम के हिंडाल्को के खिलाफ विज्ञापन अभियान से कोई लेना-देना नहीं था, ये विज्ञापन संयोग से उसी दौरान प्रकाशित किए गए थे जब वे सर्वोच्च न्यायालय जाने की तैयारी कर रहे थे. उन्होंने मुझे दुखी होकर बताया कि “हमारे संविधान के सर्वोच्च संरक्षक (सर्वोच्च न्यायालय) को मामले के गुण-दोषों पर गौर करना चाहिए था.” उन्होंने कहा कि “याचिका खारिज किए जाने ने हिंडाल्को को बिना किसी बुरे नतीजे के डर के अपनी धोखाधड़ीपूर्ण गतिविधियों को जारी रखने में बढ़ावा ही किया.”

2000 के दशक के शुरू में, हिंडाल्को इंडस्ट्रीज की वार्षिक रिपोर्टों में प्रत्येक वर्ष रेणुकूट में उत्पादित कुल एल्युमिनियम के आंकड़े शामिल किए जाते थे. वित्त वर्ष 2003-04, जब सर्वोच्च न्यायालय ने सिंह की याचिका खारिज की थी, के बाद से यह प्रक्रिया रुक गई. उसके बाद से कंपनी की वार्षिक रिपोर्टों में उसके विविध स्थानों से संयुक्त रूप से एल्युमिनियम उत्पादन के आंकड़े ही प्रदर्शित किए जाने लगे.

हिंडाल्को के रेणुकूट प्रचालन केंद्रीय जीएसटी तथा केंद्रीय उत्पाद प्रभाग-मिर्जापुर, जिसे 2017 तक केंद्रीय उत्पाद एवं सेवा कर प्रभाग, मिर्जापुर कहा जाता था, के रेणुकूट रेंज के अधिकार क्षेत्र में आते हैं. कंपनी की अपनी वार्षिक रिपोर्टों में उत्पादन के बताए गए आंकड़ों, खासकर रेणुकूट के आंकड़ों में लगातार और बहुत ज्यादा अंतर है, जैसाकि 2016 तथा 2017 (देखें टेबल 1) में आरटीआई आवेदनों के जवाब में सीईएसटी प्रभाग द्वारा प्रकट आंकड़ों से जाहिर हुआ. वर्ष 1999-2000 के लिए, सीईएसटी प्रभाग के आंकड़े 2000-2001 के लिए लगभग 12,000 टन उत्पादन की ओवर रिपोर्टिंग के संकेत देते हैं, इसके विपरीत सीईएसटी प्रभाग के आंकड़े लगभग 20000 टन की अंडर रिपोर्टिंग की ओर इंगित करते हैं. कंपनी को भारतीय खनन ब्यूरो (जो खनन मंत्रालय के तहत आता है) को भी अपने उत्पादन केंद्र के उत्पादन के बारे में रिपोर्ट करनी होती है. इनका प्रकाशन भारतीय खनिज ईयर-बुक में किया जाता है, जिसे आईबीएम द्वारा वार्षिक रूप से प्रकाशित किया जाता है. रेणुकूट के लिए आईबीएम के आंकड़े भी सीईएसटी प्रभाग के आंकड़ों तथा उपलब्ध वार्षिक रिपोर्टों में प्रदर्शित आंकड़ों से काफी अलग हैं और कई वर्षों के लिए उनमें भिन्नता हजारों टन की है.

ये असंगत आंकड़े रेणुकूट केंद्र के वास्तविक उत्पादन के बारे में जवाब देने की बजाए सवाल ही खड़े करते हैं. इसी प्रकार, कई वर्षों तक तथा कई स्रोतों द्वारा रिपोर्ट किए गए असंगत आंकड़ों के साथ रेणुकूट में हिंडाल्को की उत्पादन क्षमता को लेकर भी सवाल खड़े होते हैं. उदाहरण के लिए, भारतीय खनिज ईयरबुक 2013 में रेणुकूट केंद्र की संस्थापित वार्षिक उत्पादन क्षमता 345000 टन बताई गई थी. फिर भी, 2011 में हिंडाल्को ने रेणुकूट में आधुनिकीकरण तथा विस्तार परियोजना के लिए पर्यावरण मंजूरी को लेकर एक आवेदन किया था, जिसमें उसने दावा किया कि वह वर्तमान 356000 टन के एल्युमिनियम उत्पादन को बढ़ा कर प्रति वर्ष 472000 टन तक ले जाएगी. 2018 में, जब कंपनी ने इस मंजूरी की वैधता को आगे बढ़ाने के लिए आवेदन दिया जिसमें बताया कि उसने प्रति वर्ष 420000 टन की संवर्द्धित क्षमता अर्जित कर ली है. हिंडाल्को ने अपनी वेबसाइट पर, रेणुकूट केंद्र के लिए सालाना 345000 टन की क्षमता ही दर्ज कराई है. उसकी वार्षिक रिपोर्ट में अलग से रेणुकूट की उत्पादन क्षमता के बारे में उल्लेख नहीं है जैसाकि वे प्रोडक्शन आउटपुट को लेकर करते हैं, जहां वे केवल कंपनी के समस्त एल्युमिनियम उत्पादन का महज संयुक्त आंकड़ा देते हैं.

यह विश्वास करने के पर्याप्त कारण हैं कि ये सभी संख्याएं बेमानी हैं और बहुत कम बताई गई हैं. जुलाई 1998 में इंडिया टुडे (हिंदी) में प्रकाशित एक विज्ञापन परिशिष्ट में, हिंडाल्को की एल्युमिनियम उत्पादन क्षमता सालाना 450000 टन बताई गई थी. (देखें दस्तावेज 1) उस समय रेणुकूट परिसर कंपनी का एकमात्र एल्युमिनियम उत्पादन केंद्र था.

दस्तावेज 1: विज्ञापन सप्लीमेंट, इंडिया टुडे (हिन्दी), जुलाई 1998.
दस्तावेज 1: विज्ञापन सप्लीमेंट, इंडिया टुडे (हिन्दी), जुलाई 1998

यह तर्क से परे है कि हिंडाल्को ने अपने केंद्र की पूर्ण क्षमता का दोहन करना नहीं चाहा. 1997 से अगले दो दशकों में कंपनी की एल्युमिनियम मांग निरंतर बढ़ती रही है, जो इस तथ्य से स्पष्ट है कि हिंडाल्को ने इस अवधि के दौरान कई नए उत्पादन केंद्र खोले हैं और रेणुकूट तथा अन्य जगहों पर लगातार उत्पादन क्षमता को परिवर्द्धित (अपग्रेड) किया है. अगर रेणुकूट की क्षमता 1998 में पहले से ही 450000 टन थी, हिंडाल्को के बाद के विस्तार तथा अपग्रेडेशन ने निश्चित रूप से वास्तविक क्षमता को और अधिक बढ़ाया होगा, जो कंपनी द्वारा पर्यावरण मंजूरी के विस्तार के लिए उसके 2018 के आवेदन में दावा किए गए महज 420000 टन सालाना की तुलना में और अधिक होगा.

अगर इसे छोड़ भी दिया जाए और 1997 से प्रति वर्ष 450000 टन की स्थिर क्षमता पर गौर किया जाए तो सीईएसटी प्रभाग को प्रस्तुत आंकड़ों से उत्पादन को लेकर बहुत बड़ी संख्या में, दो दशकों में कुल 2012563 टन उत्पादन की कम रिपोर्टिंग किए जाने का संकेत मिलता है. रुपए के लिहाज से वैश्विक कीमतों में मूल्यांकन करने पर इससे 15231 करोड़ रुपए की बेहिसाबी राशि या लगभग 3 अरब रुपए (देखें टेबल 2) का संकेत मिलता है.

एल्युमिनियम का उत्पादन दो चरणों में होता है. पहले एल्यूमिनियम ऑक्साइड या एल्युमिना निकालने के लिए खनन किए गए बॉक्साइट को बेयर प्रक्रिया से गुजारा जाता है. इसके बाद, एल्युमिना को विशेष साल्वेंट में पिघलाया जाता है और इलेक्ट्रोलाइसिस का उपयोग करके एल्युमिनियम को अलग किया जाता है.

गलाने की यह प्रक्रिया पॉट नाम के बड़े कंटेनरों, जो लाइन में एक दूसरे से जुड़े होते हैं, में उच्च तापमान पर होती है. जैसे ही पिघला हुआ एल्युमिनियम पॉट में जमा हो जाता है, प्रत्येक पॉट को पारंपरिक रूप से दिन में कई बार थपथपाया जाता है, और धातु ठोस रूप में ढल जाता है.

रेणुकूट केंद्र में दो एल्युमिनियम स्मेलटिंग प्लांट हैं-एक में तीन लाइनें हैं तथा दूसरे में आठ लाइनें हैं, और दोनों के बीच 2,038 पॉट हैं. पॉट लाइन बड़े भवनों में स्थित हैं, जिनके नाम पॉट रूम हैं और आउटपुट को एक फोरमैन के सुपरविजन में तीन शिफ्टों -ए, बी तथा सी में दैनिक पॉट रूम उत्पादन रिपोर्ट्स में रिकॉर्ड किया जाता है. उत्पादन रिपोर्ट को कार्बन पेंसिल का उपयोग करके भरा जाता है, जिससे बाद में उत्पादन की संख्या में आसानी से धोखाधड़ी की जा सकती है.

स्रोत : indexmundi.com, mcxindia.com
स्रोत : INDEXMUNDI.COM, MCXINDIA.COM

अगस्त 2018 तक रेणुकूट में फोरमैन रहे कृपा शंकर दुबे ने मुझे बताया, “मेरा काम उत्पादन को नोट करना और पेंसिल से विधिवत दर्ज करके सत्यापित करना था, जिसे बाद में वे कम उत्पादन दिखाने के लिए मिटा देते थे. ‘इसे अंतिम प्रविष्टि के लिए उत्पादन विभाग को पॉट रूम रिपोर्ट भेजे जाने के बाद किया जाता है.”

प्राप्त दैनिक पॉट रूम उत्पादन रिपोर्ट में प्रविष्टियों में हेरफेर किए जाने के स्पष्ट प्रमाण हैं. 1 फरवरी 1998 को पॉट लाइन 7, रूम एम/एन के लिए प्रविष्टियों को लें. आश्चर्यजनक रूप से, कुछ खास उदाहरणों को छोड़कर समन प्रकार के विवरणों के साथ इस तिथि के लिए रिपोर्ट के दो वर्जन हैं. (दस्तावेज 2 एवं 3 देखें). एक वर्जन में, कॉलम ‘टैप किए गए पॉट की संख्या में शिफ्ट ए के लिए प्रविष्टियां चार पॉट नंबरों-1,2,3 और 4 को इंगित करती हैं-जिनके चारों तरफ सर्किल हैं. दूसरे वर्जन में, ये पॉट नंबर दिखाई नहीं देते. टैप किए गए पॉट का एक मिलान एक वर्जन में कुल 23 प्रदर्शित करता है लेकिन दूसरे में 19 प्रदर्शित करता है-यह अंतर सर्किल किए गए पॉट की संख्या से मेल खाता है. शिफ्ट बी के लिए भी इसी तरह होता है-एक वर्जन में सर्किल किए गए पॉट की संख्याएं दूसरे में दिखाई नहीं देतीं. इसके अतिरिक्त, एक वर्जन में प्रविष्टियों की पूरी लाइन मिटा दी गई है. यहां भी, टैप किए गए पॉट की संख्या-एक वर्जन में 34, दूसरे में 21-सभी वर्जनों में दर्ज या छोड़े गए पॉट की संख्या का अनुसरण करती है.

प्रविष्टियों का एक सेट एक वर्जन में शिफ्ट सी के तहत लेबल किया गया है, जबकि दूसरे में शिफ्ट बी के लिए लेबल किया गया है, और इसमें सभी विवरणों को बदला हुआ प्रदर्शित किया गया है. टैप किए गए पॉट की संख्या एक वर्जन में 10 तथा दूसरे में 17 प्रदर्शित की गई है.

इन सभी बदलावों के परिणामस्वरूप, जहां एक-एक वर्जन दिन के लिए उत्पादित एल्युमिनियम की मात्रा का कुल योग 99.600 टन प्रदर्शित करता है, दूसरा वर्जन 90.600 टन प्रदर्शित करता है जो 9 टन का अंतर है.

पॉट लाइन 7, रूम एम/एन के लिए उत्पादन रिपोर्ट 4 फरवरी 1998 को शिफ्ट सी के लिए कोई विवरण प्रस्तुत नहीं करती और उससे अगले दिन के लिए शिफ्ट सी में टैप किए गए केवल दो पॉट का विवरण प्रदर्शित करती है. 5 फरवरी, 1998 को पॉट लाइन 5, रूम 1/जे के लिए उत्पादन रिपोर्ट प्रविष्टियों की पांच पंक्तियों का मिटाया जाना स्पष्ट दिखता है.(देखें दस्तावेज 4). 6 फरवरी, 1998 को पॉट लाइन 5, रूम 1/जे के लिए उत्पादन रिपोर्ट एक बार फिर प्रविष्टियों के पूरे ब्लॉक को मिटाए जाने का संकेत करती है (देखें दस्तावेज 5). ऐसे ढेर सारे अन्य उदाहरण हैं, जहां उत्पादन विवरण मिटा दिए गए हैं और कुल उत्पादन में हेरफेर किया गया है जैसेकि-9 अगस्त, 2014 को पॉट लाइन 4 की उत्पादन रिपोर्ट, 27 जनवरी 2016 और 18 मई 2016 की उत्पादन रिपोर्ट तथा अन्य कई (देखें दस्तावेज 6,7,8). पॉट नंबरों की उत्पादन रिपोर्ट में एक आवर्ती पैटर्न भी है, जो सर्किलों के साथ चिह्नित या कोष्ठकों में संलग्न हैं, जिन्हें कुल संख्या से हटाया गया है. 31 जनवरी, 2006 को पॉट लाइन 10, रूम बी के लिए उत्पादन रिपोर्ट से शिफ्ट सी के दौरान टैप किए गए 50 पॉटों से कुल 15.544 टन उत्पादित किए जाने का संकेत प्राप्त होता है.

लेकिन ‘धातु का वजन’ के तहत संगत प्रविष्टियों का वास्तविक योग 32.194 टन आता है जिससे संकेत मिलता है कि 16.65 टन का उत्पादन छुपाया गया है .

मार्च 2000 का एक आंतरिक दस्तावेज उस महीने के अंतिम तीन दिनों को छोड़कर बाकी सभी के लिए उत्पादन आंकड़ों के दिन-प्रतिदिन ब्रेकडाउन तथा वित्त वर्ष 1999-2000 के लिए उत्पादन आंकड़ों के महीने-दर-महीने ब्रेकडाउन को प्रदर्शित करता है. टाइप किए गए उसी शीट की पिछली तरफ ‘एक्चुअल पॉट्स प्लस’ शीर्षक का एक टेबल है, जिसमें इसका कोई स्पष्ट संकेत नहीं है कि यह किस अवधि के लिए प्रयुक्त किया गया है. ‘आठ पॉट लाइनों में से प्रत्येक के लिए एक्चुअल’ नामक एक कॉलम के तहत यह 31,12 जैसी प्रविष्टियां प्रदर्शित करता है जिसमें सभी प्रविष्टियों का योग 154 है. एक अतिरिक्त कॉलम उत्पादन यील्ड जैसा कुछ प्रदर्शित करता है, जिससे 79.9 टन की वृद्धि हो जाती है.

यह कहना अभी मुश्किल है कि कितने विवरणों के साथ हेराफेरी की गई है और ऊपर वर्णित तरीके से कितने उत्पादन की जानकारी छिपाई गई है. उदाहरण के लिए, तथ्यों को मिटाए जाने के ऐसे कई उदाहरण भी हो सकते हैं, जिनमें पहले की प्रविष्टियों का कोई स्पष्ट निशान न हो या फिर थोक में हुए हेरफेर का पता नहीं लगाया जा सकता क्योंकि बदलाव के पहले और बाद की प्रतियां तुलना के लिए उपलब्ध नहीं हैं. हेरफेर के दूसरे तरीकों को नजरअंदाज करने तथा केवल सर्किल या कोष्ठकों से चिह्नित पॉट से उत्पादन को बाहर करने की पद्धति पर ही विचार करने से यह स्पष्ट है कि ऐसे हेरफेर भारी पैमाने पर रिपोर्ट किए गए योग को तोड़-मरोड़ सकते हैं.

उदाहरण के लिए, 31 जनवरी 1998 को लाइन 4, रूम जी/एच के लिए पॉट-रूम रिपोर्ट प्रदर्शित करती है कि टैप किए गए पचास पॉट के विवरण कुल संख्या से गायब हैं (देखें दस्तावेज 11). शिफ्ट ए के तहत प्रविष्टियों के केवल पहले ब्लाक पर गौर करने से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि टैप किए गए कुल 18 पॉट की संख्या तभी संभव है, जब सर्किल या कोष्ठकों में रखे गए आठ पॉट संख्याओं की गिनती न की जाए. ऐसा ही ट्रेंड पूरे दस्तावेज में जारी दिखा है. 1998 के जनवरी के आखिर में या फरवरी के पहले सप्ताह में लगभग समान अवधि में अन्य रिपोर्टों से नियमित रूप से प्रदर्शित होता है कि स्पष्ट रूप से अनगिनत लाइनों की प्रविष्टियों को मिटा देने के अतिरिक्त, 30 या उल्लेखनीय रूप से टैप किए गए और पॉट की गिनती इसी प्रकार छोड़ दी गई. इस संदर्भ में, 1997-98 में रेणुकूट में कुल उत्पादन लगभग 200000 टन एल्युमिनियम दर्ज किया गया. इस अवधि के लिए उपलब्ध उत्पादन रिपोर्टों में संख्याओं से टैप किए गए प्रत्येक पॉट से कम से कम 780 किलोग्राम के लगभग उत्पादन का संकेत मिलता है (यह संख्या रिपोर्ट किए गए उत्पादन टन भार को अलग-अलग रिपोर्ट में दर्शाए गए टैप किए गए पॉट की कुल संख्या से विभाजित किए जाने का परिणाम है). एक दिन में किसी सिंगल लाइन के लिए टैप किए गए 50 पॉट से उत्पादन को छोड़ने का अर्थ होगा लगभग 40 टन उत्पादन की जानकारी न देना. 365 दिनों के लिए 11 लाइनों का मूल्यांकन करने से इसका परिणाम वार्षिक रूप से 160000 टन के छिपाव के रूप में सामने आएगा, यह आंकड़ा आसानी से उस वर्ष रेणुकूट के लिए हिंडाल्को द्वारा रिपोर्ट किए गए कुल उत्पादन की बराबरी करता है और कुल 360000 टन के उत्पादन का संकेत देता है, जो 1998 में विज्ञापन सप्लीमेट में उल्लेखित प्रति वर्ष 450000 टन की क्षमता के नजदीक है. रेणुकूट के रोजाना के कामों से अवगत लोगों ने मुझे बताया कि हिंडाल्को केंद्र वास्तविक एल्युमिनियम उत्पादन के 50 प्रतिशत से भी कम की रिपोर्ट देता है, जो कई वर्ष पहले ही 1998 में कथित उत्पादन क्षमता को पार कर चुकी है. जे एन सिंह ने कहा कि “पॉट रूम स्तर पर उत्पादन के आंकड़ों में हेरफेर का स्पष्ट संकेत है कि यह वास्तविक उत्पादन की तुलना में बहुत कम की रिपोर्ट कर रही है.”

उत्पादन के योग को इकट्ठा करने और सत्यापित करने की सरकारी एजेंसियों की पद्धतियों में हेरफेर किए जाने की काफी गुंजाइश रहती है. आईबीएम को संयंत्रों की लेखा जांच करने का अधिकार दिया गया है लेकिन वह नियमित रूप से ऐसा नहीं करती. मैंने यह पूछने के लिए कि एजेंसी द्वारा दी गई संख्याएं क्यों अक्सर उत्पाद प्राधिकारियों तथा एल्युमिनियम कंपनियों के आंकड़ों से अलग रहती हैं और यह भी पूछने के लिए कि एजेंसी किस प्रकार उन आंकड़ों को सत्यापित करती है, नागपुर स्थित आईबीएम के मुख्यालय को ईमेल किया. आईबीएम ने कोई उत्तर नहीं दिया. आईबीएम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर मुझे बताया कि चूंकि एजेंसी उत्पादन के आंकड़े प्रकाशित करती है, जो कभी-कभी अंतरिम हो सकते हैं या उसे संशोधित किया जाना होता है. उन्होंने यह भी बताया कि “चूंकि डाटा का स्रोत समान ही होता है, कंपनियां आईबीएम को रिटर्न प्रस्तुत करती हैं और कंपनियां वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित करती हैं….हम कोई डाटा नहीं बनाते.” मैंने फोन से रेणुकूट से लगभग 150 किलोमीटर उत्तर मिर्जापुर में केंद्रीय जीएसटी प्रभाग (पूर्व में सीईएसटी प्रभाग) के सहायक आयुक्त आदिल फजल से बातचीत की. मैंने आदिल फजल से पूछा कि एजेंसी किस प्रकार हिंडाल्को केंद्र से उत्पादन डाटा इकट्ठा करती है? फजल ने बताया, “उन्हें 15 दिनों पर हमें एक रिपोर्ट उपलब्ध करानी पड़ती है. लेकिन यह कोई आधिकारिक दस्तावेज नहीं होता.” उन्होंने कहा कि एल्युमिनियम उत्पादन के सभी मूल्यवान उप उत्पाद “उत्पाद शुल्क योग्य उत्पाद हैं और उन्हें हमें अपनी बाहरी उत्पाद शुल्क रिपोर्ट में इसके बारे में बताना पड़ता है.” फजल ने विभिन्न स्रोतों में रेणुकूट केंद्र के लिए उत्पादन की संख्याओं में विसंगतियों की व्याख्या नहीं की. फजल ने बताया कि 2017 से पहले सीईएसटी प्रभाग केंद्र का भौतिक निरीक्षण करता था. लेकिन सीईएसटी प्रभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने मुझे बताया कि अधिकारी शायद ही कभी उत्पादन रिटर्न की जांच करते हैं और जो उन्हें प्रस्तुत किया जाता है, उसे ही स्वीकार कर लेते हैं. वरिष्ठ अधिकारी ने यह भी बताया कि वैनेडियम स्लज तथा गैलियम जैसे उप उत्पादों का रिटर्न में हमेशा अलग से उल्लेख नहीं किया जाता. उन्होंने बताया कि ‘वे शीर्ष ‘एल्युमिनियम तथा उससे बने उत्पाद’ के तहत मात्रा-वार उत्पादन के सभी विवरण प्रस्तुत कर देते हैं.

मैंने मिर्जापुर के सहायक आयुक्त तथा वाराणसी एवं लखनऊ में उनके वरिष्ठ अधिकारियों को ईमेल के जरिए प्रश्नावली भेजी, लेकिन कहीं से कोई भी जवाब नहीं आया.

हिंडाल्को और आदित्य बिरला समूह पर्यावरण संरक्षण के उल्लंघन के मामलों के अतिरिक्त, सरकारी प्रक्रियाओं के घपले करने तथा राजनीतिक एहसान लेने सहित कई प्रकार के विवादों में संलिप्त रहे हैं.2018 में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म द्वारा की गई एक जांच ने खुलासा किया कि आदित्य बिरला समूह पिछले आठ वर्षों के दौरान सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी एवं विपक्षी कांग्रेस, जो 2014 तक सत्ता में थी, दोनों को सबसे अधिक कारपोरेट चंदा दिया है. झारखंड मुक्ति मोर्चा ने स्वेच्छा से चुनाव आयोग के समक्ष इसका खुलासा किया था कि 2019 में झारखंड में सत्ता में आने के बाद उसने हिंडाल्को इंडस्ट्रीज से 1 करोड़ रुपए का दान प्राप्त किया था.

झामुमो ने कहा कि हिंडाल्को गुमनाम चुनावी बॉन्डों का उपयोग करने के जरिए पार्टी को दान देने वाली एकमात्र कंपनी थी. 2013 में केंद्रीय जांच ब्यूरो ने दो अन्य कंपनियों के साथ हिंडाल्को को दो कैप्टिव कोयला ब्लॉकों के आवंटन को लेकर सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार में आवंटन से संबंधित अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए बिरला समूह के अध्यक्ष कुमार मंगलम बिरला के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट दायर की. इन ब्लॉक का उद्देश्य हिंडाल्को के बिजली संयंत्रों को आपूर्ति करना था. (एल्युमिनियम निकालने में भारी मात्रा में बिजली की आवश्यकता होती है और एल्युमिनियम संयंत्रों को अपनी आवश्यकता के लिए सामान्यतः समर्पित बिजली संयंत्रों की जरुरत होती है. उदाहरण के लिए, रेणुकूट केंद्र को उसकी अपनी पनबिजली केंद्र से बिजली की आपूर्ति होती है). इसके बाद की जांच में आदित्य बिरला समूह के कार्यालय से 25 करोड़ रुपए की बेहिसाबी नकदी प्राप्त हुई और समूह पर करों का भुगतान न करने के एवज में आर्थिक दंड लगाया गया और ब्याज के रूप में 150 करोड़ रुपए की पेनाल्टी लगाई गई.

2015 में एक और एफआइआर की गई जिसमें आरोप लगाया गया कि हिंडाल्को ने उसे पहले आवंटित दूसरे कोयला ब्लाक पर लीज शर्तों का उल्लंघन किया है.

बताया गया कि सीबीआई ने हिंडाल्को से एक गुप्त डायरी जब्त की है, जिसमें उस अवधि के दौरान, जब कंपनी को अपने कुछ कैप्टिव खदानों से कोयला निकालने की मात्रा दोगुना करने के लिए पर्यावरण की मंजूरी मिली थी, उस अवधि के दौरान सरकारी अधिकारियों को करोड़ों रुपए के बराबर के गुप्त भुगतान किए गए थे. 2013 में आदित्य बिरला समूह कार्यालय में सीबीआई की छापेमारी के दौरान बरामद एक दूसरी डायरी में समूह द्वारा राजनीतिज्ञों एवं विभिन्न पार्टियों के विधायकों को पिछले एक दशक के दौरान किए गए लगभग एक हजार भुगतानों की सूची थी. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा को बताया, “16 नवंबर 2012 को एक बैक-अप संदेश रिकवर किया गया था, जिसमें कहा गया था कि गुजरात के मुख्यमंत्री-25 करोड़ रुपए (12 हो गए-शेष?).” इस प्रकार, इससे स्पष्ट रूप से संकेत मिलता है कि 25 करोड़ रुपए का भुगतान गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री को किया गया था. 2001 से 2014 के बीच गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी थे. यहां ध्यान देने की बात है कि कुमार मंगलम बिरला, हिंडाल्को तथा आदिल्य बिरला समूह कोई भी गलत काम करने से लगातार इनकार करते रहे हैं.

मैंने रेणुकूट की उत्पादन क्षमता, एल्युमिनियम और इसके उप उत्पादों के लिए उत्पादन आंकड़े तथा पॉट रूम प्रोडक्शन रिपोर्ट को लेकर हिंडाल्को तथा आदित्य बिरला समूह के शीर्ष प्रबंधन को ईमेल भेजकर सवाल पूछे लेकिन उनके कोई जवाब नहीं मिले.

इस वर्ष जनवरी में जब मैंने रेणुकूट का दौरा किया तो मैंने रेणुकूट केंद्र में महाप्रबंधक (जन संपर्क) संजय सिंह से मुलाकात की. जब उन्हें मेरे आने के उद्देश्य का पता चला तो उनका मित्रतापूर्ण व्यवहार शत्रुता में बदल गया. वरिष्ठ अधिकारियों से मुझे बातचीत करने की अनुमति देने की बजाए वे जबरन व्यक्तिगत रूप से मुझे इकाई के दरवाजे तक छोड़ आए और उनके साथ तस्वीर लेने की इजाजत भी नहीं दी. एल्युमिना का उत्पादन करने के अतिरिक्त, बेयर प्रक्रिया वैनाडियम को भी अलग करती है जो बॉक्साइट में भिन्न-भिन्न मात्राओं में एक मूल्यवान धातु है. यह स्लज में प्राप्त होता है जिसमें कंपाउंड वैनाडियम पेंटोक्साइड होता है. वैनाडियम के अनगिनत औद्योगिक और व्यावसायिक उपयोग हैं-इनमें सबसे उल्लेखनीय यह है कि इसे फेरोवानाडियम नामक एक उच्च शक्ति वाला अयस्क का निर्माण करने के लिए लोहे के साथ मिश्रित किया जाता है. गैलियम बॉक्साइट में उपस्थित एक और अधिक मूल्यवान धातु है जिसे बेयर प्रक्रिया द्वारा प्राप्त किया जाता है और इसकी कीमत प्रति किलोग्राम सैकड़ों डॉलर है. इसका मुख्य व्यावसायिक उपयोग सेमिकंडक्टर उद्योग में होता है. हालांकि, यह नाभिकीय हथियारों और रिएक्टरों के लिए भी एक अहम हिस्सा है, जो इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए काफी महत्वपूर्ण बना देता है.

हिंडाल्को की पहले की वार्षिक रिपोर्टों में प्रत्येक वर्ष उत्पादित वैनाडियम स्लज तथा उसके मूल्य के बारे में जानकारी होती थी. 2003-04 के बाद से इसे रोक दिया गया जब वार्षिक रिपोर्टों में रेणुकूट के लिए अलग से एल्युमिनियम के उत्पादन के आंकड़े भी जारी किया जाना रोक दिया गया.

हिंडाल्को के इन-हाउस न्यूजलेटर द एैप्टेक ट्रिब्यून ने कभी-कभार वैनाडियम स्लज उत्पादन का उल्लेख किया लेकिन यह प्रचलन भी उसी समय समाप्त हो गया. न्यूजलेटर के जनवरी 1999 के अंक के अनुसार, हिंडाल्को रेणुकूट में ‘वैनाडियम स्लज रिकवरी तथा गैलियम रिकवरी प्लांट’ संचालित कर रही थी, जो ‘भारत में अपनी तरह का पहला था और हम अच्छी गुणवत्ता वाले वैनाडियम स्लज ( 19-20 प्रतिशत v2o5) तथा गैलियम धातु (4एन शुद्धता) का उत्पादन करते हैं.’

1998 तथा 1999 के लिए आईबीएम ईयरबुक में कहा गया कि हिंडाल्को ‘के रेणुकूट प्लांट में 1600 किग्रा प्रति वर्ष की दर से गैलियम रिकवरी के लिए उत्पादन की क्षमता है.’

इन संख्याओं को 1997-98 तथा 2001-02 के बीच के पांच में से चार वर्षो में द एैप्टेक ट्रिब्यून के कवर पर पाया जा सकता है. 2000-01 के अपवाद को छोड़कर, ये संख्याएं आम तौर पर केंद्र के वार्षिक वैनाडियम स्लज उत्पादन से मेल खाती है जैसीकि सीईएसटी प्रभाग मिर्जापुर द्वारा 2016 की उसके आरटीआई के उत्तर में रिपोर्ट की गई थी, जो 1997-98 तथा 2015-16 के बीच की समस्त अवधि को कवर करती है.(सीईएसटी प्रभाग द्वारा एक अतिरिक्त आरटीआई उत्तर में भी 2015-16 के लिए आंकड़ों को रिपोर्ट किया गया). लेकिन 2003-04 तक की हिंडाल्को की वार्षिक रिपोर्टों में वार्षिक उत्पादन संख्याओं में ये डाटा समूहों काफी अलग थे जो इंगित करते हैं कि हिंडाल्को ने रेणुकूट में अपने खुद के सार्वजनिक दस्तावेजीकरण में प्रति वर्ष कम से कम एक हजार टन की सीमा तक वैनाडियम स्लज उत्पादन की अंडररिपोर्टिंग की ।

आईबीएम ने 2002-03 से पहले वैनाडियम स्लज पर उत्पादन डाटा प्रकाशित किया और इस वक्त तक हिंडाल्को के लिए इसकी संख्याएं आम तौर पर सीईएसटी प्रभाग तथा ऐप्टेक ट्रिब्यून से मेल खाती थी. इसके बाद, वैनाडियम स्लज के अलग-अलग उत्पादन की जगह, आईबीएम ईयरबुक्स ने इंडियन फेरो अलायज प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन द्वारा उपलब्ध कराए गए फेरो वैनाडियम के कुल उत्पादन की रिपोर्ट करनी शुरू कर दी. 2014-15 से आईबीएम ने उन संख्याओं का संकेत देना भी बंद कर दिया, भले ही हिंडाल्को और अन्य कंपनियों ने वैनाडियम स्लज उत्पादन करना जारी रखा. रेणुकूट में गैलियम के उत्पादन पर डाटा भी कंपनी द्वारा दी गई संख्याओं और सीईएसटी प्रभाग (देखें टेबल 4) के बीच बड़ा अंतर दिखाता है. ऐप्टेक ट्रिब्यून के पास उपलब्ध संख्याएं 1997-98 तथा 2000-01 के लिए सीईएसटी द्वारा दिए गए आरटीआई के जवाब में प्रदर्शित गैलियम उत्पादन के आंकड़ों की तुलना में आधे से भी कम हैं और 2001-02 तथा 1998-99 के आंकड़ों में भी उल्लेखनीय कमी है. सीईएसटी प्रभाग के आंकड़े ऐप्टेक ट्रिब्यून के बंद होने के कुछ वर्षों बाद 2004-05 तक के हैं. हिंडाल्को की वार्षिक रिपोर्टों में उसके गैलियम उत्पादन के लिए किसी संख्या का कोई विवरण नहीं दिया गया है. मिर्जापुर स्थित सहायक आयुक्त फजल ने कहा, ‘ये सभी उत्पाद शुल्क लगाए जाने योग्य उत्पाद हैं और उन्हें उनकी बाहरी उत्पाद रिपोर्ट में इसके बारे में हमें बताना है. ‘लेकिन आईबीएम के वरिष्ठ अधिकारी ने मुझे बताया कि बॉक्साइट से उत्पादित होने वाली सभी धातुओं के एक-एक औंस को सुनिश्चित करने से जुड़े किसी तंत्र के अभाव में, ऐसे उच्च मूल्य वाले बाई-प्रोडक्ट्स यानी उप उत्पादों का कंपनियों का उत्पादन एक संदेहास्पद विषय है. जारी…………

(अंग्रेजी कारवां के जुलाई 2021 अंक में प्रकाशित इस कवर स्टोरी को मूल अंग्रेजी में प्रकाशित किया जा चुका है ।हिंदी अनुवाद : डॉ विजय कुमार शर्मा)

महेश सी डोनिआ स्वत्रंत पत्रकार हैं. वह खोजी समाचार चैनल कोबरापोस्ट के वरिष्ठ संपादक रह चुके हैं. KEYWORDS:HindalcoBALCOAditya Birla GroupGD BirlaNarendra Modicoal scam

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