हम बोलेंगे तो बोलोगे की बोलता है लेकिन यह सच है कि शहर के चार थानों मुरार, थाटीपुर, यूनिवर्सिटी और सिरोल के 389 मामलो में चंद ऐसे गवाह हैं जो पुलिस के हर मामले में गवाही दे रहे हैं ।
Police Fraud in Gwalior ग्वालियर । अलादीन के चिराग की कहानी तो आपने सुनी ही होगी, चिराग घिसते ही आका का हुक्म मानने जिन्न हाजिर। ऐसा ही कानून व्यवस्था में सबसे अहम किरदार गवाहों को लेकर ग्वालियर के चार थानों की पड़ताल में सामने आया है।
यहां पुलिस ने इस व्यवस्था का इस कदर मजाक बना दिया कि केस दर्ज करते ही पुलिस की इच्छानुसार गवाह हाजिर, और फिर गवाही करानी है या पलटवाना है, यह खेल तय हो जाता है। पाकेट गवाह कहलाने वाले इन किरदारों की गवाही की दम पर ही थानों में झूठे मुकदमे तक दर्ज हो जाते हैं। गवाह एक और मामले अनेक, यह खेल यहां रोज हो रहा है। पड़ताल में सामने आया है कि शहर के चार थानों मुरार, थाटीपुर, यूनिवर्सिटी और सिरोल में 389 मामले ऐसे हैं, जिनमें पुलिस के ये गवाह ही गवाही दे रहे हैं और पुलिस की इच्छानुसार पलट भी जाते हैं।
ऐसे समझिए फर्जी गवाही का खेल
दीपक वर्मा/बरार पुत्र श्रीधर/श्रीदास निवासी तिकोनिया मुरार थाने के 47 मामलों में साक्षी बनकर गवाही दी। इसमें एक और चौंकाने वाला तथ्य है। किसी में उसने दीपक वर्मा के नाम से गवाही दी, किसी में दीपक बरार। पिता के नाम भी श्रीधर और श्रीदास हैं।
राम शर्मा पुत्र दीनानाथ शर्मा निवासी त्यागी नगर मुरार
मुरार थाने के 23 मामलों यह गवाह है।
भूप सिंह रजक पुत्र बद्रीप्रसाद निवासी नदी पार टाल, मुरार
मुरार थाने के 20 मामलो में गवाह
पूरन राणा पुत्र राघवेंद्र निवासी शिवाजी नगर
यूनिवर्सिटी और थाटीपुर थानाें में दर्ज 18 मामलों में यह गवाह बना है।
मोनू जाटव पुत्र प्रीतम जाटव निवासी श्रीनगर कालोनी थाटीपुर थाने में दर्ज 112 मामलों में इसने गवाही दी। कुख्यात गुंडे धोनी जाटव पर मुकदमे में तो पुलिस का ड्राइवर बताकर फरियादी तक बना। आर्म्स एक्ट, एनडीपीएस, जुआ और सट्टे के सबसे ज्यादा मामलों में ये गवाह बना।
एसपी कुशवाह पुत्र आशाराम निवासी त्यागी नगर मुरार
सिरोल थाने में पिछले तीन साल के दर्ज करीब 142 प्रकरणों में से 79 मामलों में केवल इसने ही गवाही दी। यहां भी अधिकांश मामले आर्म्स एक्ट, एनडीपीएस एक्ट, जुआ और सट्टे के रहे हैं। सचिन उर्फ भीमसेन पुत्र अमर सिंह पाल निवासी गुठीना महाराजपुरा सिरोल थाने के ही 53 आपराधिक मामलों में राहगीर और स्वतंत्र साक्षी बना है।
निर्दोष होता है बेवजह पीड़ित
प्रत्येक थाने के अपने कुछ खास गवाह होते हैं, पुलिस इन्हें बार बार उपयोग करती है। इससे केवल निर्दोष व्यक्ति बेवजह प्रताड़ित होते है बल्कि पुलिस दोषी व्यक्तियों को भी सजा नहीं दिला पाती है । खास गवाह पैसे लेकर न्यायालय में गवाही देते हैं जिससे कोर्ट भी निष्पक्ष न्याय करने में चूक जाता है। जांच की जाए तो न केवल मामले के विवेचक और थाना प्रभारी के विरुद्ध कार्रवाई हो सकती हैं बल्कि न्यायालय भी मामला गढ़ने को लेकर मामला बनाने वाले पुलिस अधिकारियों, तथा खास चिन्हित गवाहों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कराके कार्रवाई कर सकता है।
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फायदा उठाते हैं आरोपित
किसी भी अपराध में कार्रवाई करने वाला पुलिस अधिकारी मेहनत करना नहीं चाहता। अक्सर पुलिस अपने लोगों को गवाह बनाती है, कई बार इन्हें पता ही नहीं होता, केस क्या है, घटना क्या है, जब्ती क्या है। मान लीजिए, जब्ती में गवाह बना रहे हैं और उसे इसके बारे में पता ही नहीं। जब मामला कोर्ट में जाएगा तो गवाह कुछ न कुछ गलत जानकारी देगा। इसका सीधा फायदा आरोपित को मिलता है। वकील इसी को हाईलाइट कर कोर्ट के समक्ष रखता है और आबकारी एक्ट, एनडीपीएस एक्ट जैसे मामलों में आरोपित बरी हो जाते हैं।
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