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आख़िर प्रधानमंत्री ने क्यों कहा ‘मैं ज़िंदा लौट आया’ ? 

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पंजाब से कांग्रेस पर हमला करने का उत्तर प्रदेश की सियासत में यही मक़सद है कि भूल-सुधार किया जाए। आने वाले समय में बीजेपी की ओर से समाजवादी पार्टी के बजाए कांग्रेस पर हमले दिखेंगे।

प्रश्न यह है कि सुरक्षा में कमी या चूक की स्थिति से निबटने के लिए केंद्र सरकार के पास कौन से तरीक़े हैं जिस पर अमल करने के बजाए प्रधानमंत्री ने देश को सबसे पहले यह बताना ज़रूरी समझा कि पंजाब के मुख्यमंत्री का शुक्रगुजार होना चाहिए कि उनकी जान बच गयी?

2019 में जब मौसम ख़राब था और पुलवामा हमला हुआ था तब प्रधानमंत्री मोदी ने रुद्रपुर में मोबाइल फ़ोन से रैली को संबोधित किया था, फिरोज़पुर में वह फोन से रैली को संबोधित क्यों नहीं कर पाए?

आख़िर प्रधानमंत्री ने क्यों कहा 'मैं ज़िंदा लौट आया'? 

मौसम ख़राब होने की वजह से 14 फ़रवरी 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूद्रपुर रैली में शिरकत करने नहीं पहुंच पाए थे। फिर भी उन्होंने मोबाइल फोन से रैली को संबोधित किया और सशरीर उपस्थित नहीं रहने के लिए उपस्थित दर्शकों से माफी मांगी थी। पुलवामा हमले की सूचना के बावजूद पीएम मोदी ने वह मोबाइल संबोधन दिया था, हालाँकि उस बारे में बताया यह गया कि तब तक नेटवर्क की खराबी के कारण सूचना नहीं पहुंच सकी थी। क्या इसी तर्ज पर पंजाब के फिरोजपुर में 5 जनवरी की रैली को प्रधानमंत्री संबोधित नहीं कर सकते थे ? 

रूद्रपुर और फिरोजपुर की रैलियों में बड़ा फर्क यही था कि रूद्रपुर में बारिश के बावजूद भीड़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इंतज़ार कर रही थी, जबकि फिरोजपुर में भीड़ नदारद थी। जब प्रधानमंत्री का काफिला किसानों के विरोध प्रदर्शन के कारण ट्रैफिक में फंसा और प्रधानमंत्री ने रैली नहीं करने का फ़ैसला किया, उस वक़्त कैप्टन अमरिंदर सिंह सभा को संबोधित कर रहे थे और महज सैकड़ों की भीड़ थी। संभवत: यही वह स्थिति थी कि प्रधानमंत्री ने रैली को मोबाइल से संबोधित करने के विकल्प पर भी विचार नहीं किया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक तौर पर देश को क्यों बताया कि उनकी जान पर ख़तरे की स्थिति पैदा की गयी? पंजाब के अधिकारियों से अपने सीएम को कहने के लिए उन्होंने कहा- “थैंक्स कहना, मैं जिंदा लौट आया”।

पीएम को क्यों लगा कि उनकी जान जा सकती है?

आख़िर वो कौन-सी परिस्थितियाँ पैदा हुईं जिसके बाद प्रधानमंत्री ने महसूस किया कि उनकी जान जा सकती थी या उनकी जान बच गयी है? हवाई रूट छोड़कर सड़क मार्ग से जाने का फ़ैसला खुद प्रधानमंत्री का था न कि सीएम चरणजीत सिंह चन्नी का? पंजाब के किसान नरेंद्र मोदी की यात्रा का विरोध कर रहे थे और सड़क पर थे। इस बात की जानकारी रहने के बावजूद सड़क मार्ग को चुना गया। सुरक्षा घेरे को तोड़े जाने जैसी भी कोई घटना नहीं घटी। 

हाँ, प्रदर्शनकारियों ने रास्ते जाम कर रखे थे और इस कारण उनका आगे बढ़ना मुश्किल था। लोकतंत्र में ऐसी घटना अप्रत्याशित नहीं है। मगर, यह प्रदर्शन पीएम मोदी की जान को ख़तरा था- यह मान लेना एक बार फिर आंदोलनकारी किसानों का अपमान करना है।

केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियाँ और पंजाब सरकार के अफ़सरों के बीच यह वार्ता होनी चाहिए थी, गृह मंत्रालय को चाहिए कि वह पंजाब सरकार से इस बाबत बात करता, घटना की जांच की घोषणा होनी चाहिए जो हुई है। प्रधानमंत्री सीधे मुख्यमंत्री से भी बात कर सकते थे। अगर प्रधानमंत्री ने ऐसा नहीं किया, तो इसके कारण बाद की घटनाओं में ढूंढ़े जा सकते हैं।

 - Satya Hindi

अचानक कांग्रेस पर टूट पड़ी मोदी ब्रिगेड

स्मृति ईरानी के नेतृत्व में केंद्र सरकार और बीजेपी के नेता कांग्रेस पर हमलावर हो गये। कांग्रेस को नरेंद्र मोदी की जान का दुश्मन बताया जाने लगा। गांधी परिवार पर हमले का दस्तूर बीजेपी ने इस घटना में भी जारी रखा। यह बात तो स्पष्ट है कि पंजाब की सियासत में बीजेपी अभी बहुत पीछे है और इन हथकंडों से वहां की सियासी सूरत नहीं बदलने वाली है। ऐसा लग रहा है मानो पंजाब से उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश की सियासी आग में घी डाले जा रहे हों।

उत्तराखण्ड के लिए कांग्रेस पर हमले की रणनीति समझ में आने वाली है जहां यह सवाल ज़रूर उठेंगे कि जब रूद्रपुर में मोबाइल से रैली हो सकती है तो फिरोजपुर में क्यों नहीं हुई? गांधी परिवार पर हमले के जवाब में कांग्रेस भी सामने आएगी, यह तय है।

सवाल यह उठता है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस इतनी महत्वपूर्ण हो चुकी है कि उस पर हमला करने के लिए इतना घुमावदार रास्ता ढूंढ़ा जाए? उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी मज़बूती से चुनाव मैदान में खड़ी है और बीजेपी को चुनौती दे रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘लाल टोपी’ वाला जुमला उछालकर एक तरह से समाजवादी पार्टी को अपने प्रतिद्वंद्वी के तौर पर पहचान चुके हैं। मगर, राजनीति में प्रतिद्वंद्वी की पहचान में भ्रम रखने की परंपरा है। ऐसा इसलिए कि इससे प्रतिद्वंद्वी को ही फायदा होता है। 

कांग्रेस पर हमले से होगा बीजेपी को फायदा?

बीजेपी के रणनीतिकारों को लगता है कि यूपी में कांग्रेस मज़बूत होगी तो वोट बंटेंगे और इसका फायदा बीजेपी को मिलेगा। रणनीति में बदलाव की यही मूल वजह है। निश्चित रूप से यूपी में कांग्रेस के लिए यह वरदान साबित हो सकता है। सवाल यह है कि क्या वास्तव में कांग्रेस के मज़बूत होने से बीजेपी को फायदा होगा? सच यह है कि कांग्रेस के मज़बूत होने से बीजेपी को भी नुक़सान होगा और समाजवादी पार्टी को भी।

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का वोट बैंक मज़बूत हुआ है इससे विरोधी भी इनकार नहीं कर सकते। ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ के नारे ने महिलाओं को लामबंद किया है। लड़कियों के लिए हुई मैराथन इसका प्रमाण है। कई इलाक़ों में ब्राह्मण भी कांग्रेस के पक्ष में खड़े हो सकते हैं। दलित वर्ग में भी कांग्रेस की मौजूदगी है। अगर कांग्रेस बढ़ती है तो नुक़सान बीजेपी को ज़्यादा होगा। यानी कांग्रेस पर हमला करने की बदली हुई रणनीति उत्तर प्रदेश में बीजेपी का नुक़सान ही करेगी।

अंत में, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी साख को ही दांव पर लगा दिया है। सुरक्षा में चूक को लेकर प्रधानमंत्री की प्रतिक्रिया पंजाब के मुख्यमंत्री को इंगित करते हुए इतने व्यक्तिगत स्तर पर होगी, सोचा नहीं जा सकता था। 2014 के बाद से अब तक प्रधानमंत्री की जान को ख़तरे में डालने वाली 9 घटनाएँ हो चुकी हैं। लेकिन, अब तक इनमें एक भी घटना ऐसी नहीं है जिसमें सुरक्षा में चूक या साज़िश बेनकाब हुआ हो। यह भी महत्वपूर्ण है कि दिल्ली, बंगाल, पंजाब या यूपी में चुनाव के वक़्त ही पीएम की सुरक्षा को आंच आती है। सवाल यह है कि क्या फिरोजपुर रैली रद्द होने के पीछे पीएम की जान को ख़तरे की थ्योरी सवाल ही बनी रहेगी या फिर इसका कोई जवाब मिलेगा ?

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