सोनभद्र की ओबरा विधानसभा से जीत दर्ज कर विधायक संजीव गोंड़ एक बार फिर योगी सरकार 02 में मंत्री बन गए हैं। इस बार भी उन्हें राज्य मंत्री ही बनाया गया है । पिछली बार भी उन्हें सरकार के अंतिम वर्ष में राज्यमंत्री समाज कल्याण बनाया गया था।
मंत्री बनने से जहां एक तरफ कार्यकर्ताओं में जबरदस्त उत्साह देखा जा रहा है वहीं जिले के स्वास्थ्य विभाग में हड़कम्प मचा हुआ है । संजीव गोंड़ के मंत्री बनने से स्वास्थ्य विभाग अचानक क्यों बीमार हो गया, इसकी पड़ताल कर हम आपको आगे बताएंगे लेकिन इतना बता दे कि राज्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद से स्वास्थ विभाग की सांसें थम सी गयी हैं। हालांकि अभी मंत्री संजीव गोंड़ को कौन सा विभाग मिलेगा यह तय नहीं है, जो आगे कुछ घंटों में साफ हो जाएगा लेकिन सूत्रों की माने तो संजीव गोंड़ के राजमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण लेते ही स्वास्थ्य में महकमा बेचैन हो उठा है ।
दरअसल यहां आपको बताते चलें कि पिछले कार्यकाल के आखिरी महीनों में ओबरा विधानसभा के मकरा ग्राम पंचायत में अज्ञात बीमारी से लगभग 40 आदिवासियों की मौत हो गई थी । जिसके बाद इन मौतों को लेकर जिले की सियासत भी काफी गर्म हो गयी थी। हालांकि मकरा ग्राम पंचायत में कई टीमें जांच के लिए पहुंची लेकिन किसी जांच टीम ने न मौत के पीछे का कारण बताया और न किसी पर कोई कार्यवाही ही की ।
परन्तु सत्ताधारी दल से ओबरा विधानसभा से दुबारा टिकट मिलने पर नामांकन करने के बाद पत्रकारों से बात करते हुए मंत्री संजीव गोंड़ ने कहा था कि मकरा गांव में अबूझ बीमारी से आदिवासियों के असमय मृत्य की घटना बेहद दुखद है और उन्होंने माना कि अधिकारियों व कर्मचारियों की लापरवाही के कारण इतने लोगों की जानें गई हैं । उन्होंने नामांकन के दिन ही साफ कर दिया था कि यदि वे दोबारा चुनकर आते हैं तो उन लापरवाह अधिकारी कर्मचारी पर कार्यवाही होना तय है जिंन्होने अपने कर्तव्यों के निर्वहन में लापरवाही बरती है।
मंन्त्री जी के बस इसी बयान को लेकर स्वास्थ्य महकमा बीमार हो चला है । अब देखने वाली बात यह है कि मंत्री संजीव गोंड़ चाहे किसी भी विभाग के मंत्री बने लेकिन मकरा को लेकर उन्होंने जनता और पत्रकारों से जो वादा किया था वह कब पूरा करेंगे ? और दोषियों के खिलाफ क्या कार्रवाई होती है ?जनता को भाजपा सरकार की दूसरी पाली में लापरवाही बरतने वाले उन सरकारी सेवकों पर कार्यवाही का इंतजार है जिनकी उदासीनता गरीब आदिवासियों पर भारी पड़ गयी थी।