Sunday, April 28, 2024
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शनि प्रदोष व्रत : भगवान शिव की ऐसे करें आराधना, जानें पूजा मुहूर्त और महत्व

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शनिवार को दिन शनि देव को समर्पित है. लेकिन इस बार शनिवार को शनि देव के साथ साथ शिव जी को भी प्रसन्न करने का शुभ संयोग बनने जा रहा है. पंचांग के अनुसार 18 सितंबर 2021, शनिवार को भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि है. इस तिथि को प्रदोष व्रत के रूप जानते हैं.

उषा वैष्णवी

सोनभद्र । हिंदू धर्म में त्रयोदशी को बेहद शुभ माना जाता है. त्रयोदशी तिथि भगवान शंकर को समर्पित है. इस दिन प्रदोष व्रत रखा जाता है. हर माह में त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत पड़ता है. माह में दो बार प्रदोष व्रत पड़ता है. एक शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में. साल में कुल 24 प्रदोष व्रत होते हैं. इस दिन विधि-विधान से भगवान शिव की पूजा- अर्चना की जाती है. इस बार भादो मास में 18 सितंबर को शनि प्रदोष व्रत रखा जाएगा ।

प्रदोष तिथि के दिन भगवान शिव की पूजा अर्चना होती है. हर महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है. इस बार प्रदोष व्रत शनिवार को पड़ रहा है, इसलिए इसे शनि प्रदोष व्रत कहते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सप्ताह के सातों दिन के प्रदोष व्रत का अपना विशेष महत्व होता है. बुध प्रदोष व्रत करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है. इस व्रत को करने से संतान पक्ष को लाभ होता है।

शनि देव भगवान शिव के भक्त हैं

शनि देव को ज्योतिष शास्त्र में क्रूर और न्याय करने वाला ग्रह माना गया है. शनि जब अशुभ होते हैं तो व्यक्ति हर कार्य में बाधा और परेशानी का सामना करना पड़ता है. शनि देव जब अधिक परेशान करने लगें तो भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए. मान्यता है कि शनि देव, शिव भक्तों को परेशान नहीं करते हैं. एक पौराणिक कथा के अनुसार शनि देव ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी, तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने शनि देव को सभी ग्रहों का न्यायाधीश यानि दंडाधिकारी नियुक्त किया था।

प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में की जाती है.

प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में की जाती है.

प्रदोष व्रत की पूजा-विधि

प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में की जाती है. प्रदोष काल संध्या के समय सूर्यास्त से लगभग 45 मिनट पहले शुरू हो जाता है. प्रदोष व्रत के दिन व्यक्ति को जल्दी उठकर स्नान कर लेना चाहिए और स्नान करने के बाद साफ- स्वच्छ वस्त्र पहन लें. घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करने के बाद भगवान भोलेनाथ का गंगा जल से अभिषेक करें. वहीं, भगवान भोलेनाथ को पुष्प अर्पित करें।

इस दिन भोलेनाथ के साथ ही माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा भी करें. किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है. भक्त भगवान शिव को भोग लगाएं. इस बात का ध्यान रखें भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है और भगवान शिव की आरती करें।

प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार 18 सितंबर 2021, शनिवार को भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी की तिथि प्रात: 06 बजकर 54 मिनट से आरंभ होगी. त्रयोदशी तिथि का समापन 19 सितंबर को प्रात: 05 बजकर 59 मिनट पर होगा. प्रदोष व्रत में प्रदोष काल की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है।

ये है कथा

वही, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रदोष के पीछे एक कथा जुड़ी हुई है. कथाओं के अनुसार भगवान चंद्र को क्षय रोग था, जिसके चलते उन्हें मृत्युतुल्य कष्ट हो रहा था. भगवान शिव ने उस दोष का निवारण कर उन्हें त्रयोदशी के दिन पुन:जीवन प्रदान किया था. इसीलिए इस दिन को प्रदोष कहा जाने लगा. हालांकि, प्रत्येक प्रदोष की व्रत कथा अलग-अलग है।

स्कंद पुराण में प्रदोष व्रत के महामात्य का वर्णन मिलता है. इस व्रत को करने से सभी तरह की मनोकामना पूर्ण होती है. इसमें एक विधवा ब्राह्मणी और शांडिल्य ऋषि की कथा के माध्यम से इस व्रत की महिमा का वर्णन मिलता है. पद्म पुराण की एक कथा के अनुसार चंद्रदेव जब अपनी 27 पत्नियों में से सिर्फ एक रोहिणी से ही सबसे ज्यादा प्यार करते थे और बाकी 26 को उपेक्षित रखते थे, उपेक्षित पत्नियों ने उन्हें कुष्ठ रोग का श्राप दे दिया था।

ऐसे में अन्य देवताओं की सलाह पर उन्होंने शिवजी की आराधना की और जहां आराधना की वहीं पर एक शिवलिंग स्थापित किया. शिवजी ने प्रसन्न होकर उन्हें न केवल दर्शन दिए, बल्कि उनका कुष्ठ रोग भी ठीक कर दिया।

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