Friday, April 26, 2024
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गीता जयंती पर विशेष–गीता ज्ञान की ज्योति सोनभद्र नगर में जलाया था गीता प्रेमियों ने।

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दीपक कुमार केसरवानी की कलम से
चर्चा पुरानी जरूर है लेकिन पुरानी परंपरा आज भी कायम है। चर्चा हम कर रहे हैं गीता जयंती समारोह समिति द्वारा आयोजित गीता जयंती की।
वर्षों बाद भी जनपद मुख्यालय के रॉबर्ट्सगंज नगर में गीता प्रेमियों ने गीता ज्ञान का जो दीप प्रज्वलित किया वह अनवरत रूप से आज भी कायम है।
आयोजन के मूल में जनजाति विकास समिति के संस्थापक प्रेम नाथ चौबे, विंध्य संस्कृति शोध समिति ट्रस्ट के निदेशक/ इतिहासकार दीपक कुमार केसरवानी आदि लोग हैं।
बात उन दिनों की है जब सोनभद्र जनपद में वरिष्ठ समाजसेवी प्रेम नाथ चौबे द्वारा यथार्थ गीता का प्रचार- प्रसार अपने सहयोगियों के साथ किया जा रहा था। मैं भी उनके इस उत्कृष्ट, आध्यात्मिक, धार्मिक, प्रचार- प्रसार के कार्य में बतौर पत्रकार लग कर सम्मिलित था। इन्हीं के माध्यम से मेरा प्रथम साक्षात्कार परमहंस आश्रम शक्तेषगढ़ के परम पूज्य स्वामी अड़गड़ानंद जी महाराज से हुआ था। उस समय मैं आज समाचार पत्र का जनपद मुख्यालय से संवाददाता था। यद्यपि परमहंस आश्रम शक्तेषगढ़ चुनार मिर्जापुर जनपद का क्षेत्र था, लेकिन हम लोग ज्यादा से ज्यादा समाचार परमहंस आश्रम के गतिविधि, यथार्थ गीता के प्रचार–प्रसार और अन्य कार्यक्रमों का सोनभद्र हेड से लगाते थे और इस कार्य में हमारे समाचार पत्र से जुड़े हुए अधिकारी भी हमारा साथ देते रहे।

उस समय चौबेजी के पास एक फिएट कार हुआ करती थी, जिसको पप्पू भाई संचालित करते थे और हम अक्सर उस कार से अपनी इस आध्यात्मिक यात्रा को पूरा करते थे और यथार्थ गीता का प्रचार- प्रसार, आश्रम आने जाने आदि का कार्य करते थे।
कारवां बढ़ता गया लोग जुड़ते गए इस तर्ज पर यथार्थ गीता का प्रचार- प्रसार सोनभद्र में काफी चर्चित हुआ और विविध प्रकार के आयोजन प्रवचन आदि कार्यक्रम का आयोजन होने लगा।
मैं उस समय कचहरी में था और फुर्सत के समय में प्रेमनाथ चौबे के ऑफिस सिविल लाइन रोड पर स्थित जनजाति विकास समिति मे जाकर घंटों आध्यात्मिक चर्चा के साथ-साथ गरमा- गरम लाइ- चने का लुत्फ उठाते थे, इस कार्य में छोटे भाई रामकृपाल हमेशा आगे रहते थे। गीता प्रेमियों के साथ आश्रम की गतिविधियों, कार्यों, यथार्थ गीता और अन्य नवीन प्रकाशन पर चर्चा करते थे।

कुछ समय बाद यथार्थ गीता को अंतर्राष्ट्रीय धर्म ग्रंथ घोषित करने का आंदोलन प्रेमनाथ चौबे द्वारा चलाया गया था और इस कार्य में उनके ऑफिस के क्लर्क विनोद का भी काफी योगदान रहा, प्रतिदिन चिट्ठी पत्री को टाइप करना और रामकृपाल द्वारा प्रतिदिन डाकखाने सुपुर्द करने का सिलसिला अनवरत रूप से वर्षों तक जारी रहा। चौबेजी का आश्रम कब जाना होता था, यह निश्चित नहीं होता था, यद्यपि उस समय मोबाइल का जमाना नहीं था, लैंडलाइन से ही बातचीत होती थी, लेकिन गीता प्रेमियों के सूत्र इतने मजबूत होते थे कि आश्रम से संबंधित सटीक जानकारी हम लोगों को होती थी और चौबेजी बाबाजी के दर्शन के लिए चल देते थे, चाहे वह दिन हो, रात हो, दोपहर हो, गर्मी की तपती धूप हो आश्रम जाना सुनिश्चित था चाहे अकेले अथवा अन्य भक्तों के साथ। यहाँ आपको बताते चलें कि वर्तमान समय में आश्रम से जुड़े हुए ज्यादातर गीता प्रेमियों को प्रेम नाथ चौबे द्वारा ही जोड़ा गया है।

रॉबर्ट्सगंज नगर में स्वामी जी के आश्रम से जुड़ने के मुख्य सूत्रधार विनोद लाल श्रीवास्तव, कुसुमाकर श्रीवास्तव,, जायसवाल बंधु आदि लोग थे जब सभी गीता प्रेमी एक सूत्र में बंध गए तो अध्यात्म के क्षेत्र में एक नई क्रांति पैदा हुई। महमना की शिक्षा की बगिया में प्रतिवर्ष गीता जयंती के अवसर पर तमाम कार्यक्रम आयोजित हुआ करते थे और इनमें भाग लेने वाले लोगों को विजेता घोषित किया जाता था और गीता जयंती पर तमाम प्रकार के व्याख्यान हुआ करते थे।
सोनभद्र जनपद के लसड़ा गांव के निवासी पंडित राज नारायण पांडे जो गीता जयंती प्रतियोगिता में प्रतिभागी थे और विजयी भी हुए थे यह जानकारी मुझे थी। एक दिन मेरे मन में यह विचार आया कि जब हम लोग भगवान श्री कृष्ण के मुख से निकली हुई वाणी गीता की टीका यथार्थ गीता का प्रचार प्रसार आदि का कार्य कर रहे हैं तो क्यों ना सोनभद्र जनपद में गीता जयंती का आयोजन कराया जाए।
एक दिन दोपहर के समय जब हम लोग गीता की आध्यात्मिक चर्चा में व्यस्त थे उसी दौरान मैंने मौका देख अपना विचार प्रस्तुत किया, शायद मेरी बात चौबेजी को जच गई और उन्होंने कहा कि इसका आयोजन निश्चित रूप से होगा। यह बात शायद जुलाई-अगस्त में हुई थी और इस वर्ष नवंबर में ही गीता जयंती की तारीख थी। हम लोग गीता जयंती की तारीख आने के पूर्व ही तैयारी में लग गए क्योंकि पहला आध्यात्मिक आयोजन था और सहयोग राशि और तमाम कार्यक्रम के आयोजन में लगने वाले संसाधनों की कमी को भी पूरा करना था।

पीडब्ल्यूडी में दुबे जी एवं मास्टर प्लान ऑफिस में पांडे जी ने सहयोग किया और मुझे याद है कि पहला गीता जयंती समारोह का कार्यक्रम पीडब्ल्यूडी डाक बंगले में आयोजित हुआ, इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पत्रकारिता के मेरे गुरु स्वर्गीय महावीर प्रसाद जालान को प्रथम बार उस मंच पर सम्मानित किया गया था। उस समय आज अखबार में मैं न्यूज रिपोर्टिंग, फोटोग्राफी एवं बड़े भाई भोलानाथ मिश्र संचालक की भूमिका का बखूबी निर्वहन किया। ऐसे शुरू हुई है जनपद सोनभद्र मुख्यालय के रॉबर्ट्सगंज नगर में गीता जयंती समारोह।
इस कार्यक्रम के आयोजन से हमें कार्यक्रम में कमियों का बखूबी अंदाजा लग गया और यह महसूस किया गया कि क्यों ना इसकी एक समिति बना ली जाए और समिति के माध्यम से इस कार्यक्रम का आयोजन प्रतिवर्ष किया जाए।

अगले वर्ष गीता जयंती समारोह समिति की स्थापना की गई और इस समिति में सभी को समान अधिकार था मुख्य कर्ताधर्ता प्रेमनाथ चौबे को बनाया गया और उन्हीं के नेतृत्व में दूसरे वर्ष का आयोजन रामलीला मैदान में हुआ इस समारोह में राजा शारदा महेश इंटरमीडिएट कॉलेज के संस्कृत के प्रवक्ता पंडित राम जानकी देव पांडे (छोटका पंडित जी) को सम्मानित किया गया। इस अवसर पर उन्होंने सारगर्भित व्याख्यान गीता के संबंध में दिया था, अब विगत वर्षों की भांति इस वर्ष भी का स्लोगन देकर इस कार्यक्रम का आयोजन होने लगा। शुरुआती दौर में तो सिर्फ मौखिक आमंत्रण गीता प्रेमियों को दिया जाता था, लेकिन कालांतर में निमंत्रण पत्र भी छपवा कर प्रेषित किया जाने लगा।
गीता के व्यापक प्रचार- प्रसार एवं ज्यादा से ज्यादा संख्या में इस संस्था से जुड़ रहे गीता प्रेमियों श्रद्धा, विश्वास, आस्था से ऐसा प्रतीत हुआ कि इस दिशा में कुछ और कार्य होना चाहिए। पत्रकारिता, पुस्तक लेखन से मेरा ताल्लुक रहा और स्मारिका का विचार मेरे मन में आया और मैंने इस विचार को चौबे जी के समक्ष रखा दूसरे दिन गीता जयंती समारोह समिति से जुड़े हुए विशेष लोगों की एक बैठक जनजाति विकास समिति के कार्यालय में आयोजित हुई और इस बैठक में सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि सोनभद्र जनपद मुख्यालय रॉबर्ट्सगंज से दिव्य प्रभा नामक एक स्मारिका का प्रकाशन किया जाएगा। इस कार्य योजना की खबर प्रेमनाथ चौबे द्वारा स्वामी अड़गड़ानंद जी को दी गई और एक बैठक आश्रम में भी आयोजित हुई इस बैठक में पत्रिका के प्रकाशन संपादक व्यवस्थापन के लिए गीता प्रेमियों का चुनाव हुआ। बैठक में सर्वसम्मति से दिव्य प्रभा के प्रकाशन की अनुमति हमें मिल गई, इस आध्यात्मिक पत्रिका के प्रधान संपादक मुनीर बख्श आलम को बनाया गया और सारी व्यवस्थाओं का दामोदार प्रेमनाथ चौबे के कंधों पर रखा गया और शुरू हुआ धन-लेख संग्रहण का सिलसिला ,इस कार्य में आकाशवाणी केंद्र के कार्यक्रम अधिकारी डॉ जीपी निराला सहित सोनभद्र जनपद के ऊर्जांचल, दक्षिणांचल के भक्तजनों के सहयोग से दिव्य प्रभा के प्रकाशन का कार्य आरंभ हुआ।

गीता प्रेमियों के अपार प्रेम, श्रद्धा, विश्वास और दान के बल पर यह पत्रिका लगभग 10 वर्षों तक समस्याओं के बावजूद नियमित प्रकाशित होती रही।इसी प्रकार या कहें इसके साथ साथ समानांतर रूप से गीता जयंती समारोह का आयोजन कभी क्लब मैदान तो कभी डॉक्टर कुसुमाकर, दिवाकर, प्रभाकर भाई के परम पूज्य दिवंगत माता पिता डॉक्टर जयराम लाल एवं प्रभावती देवी के नाम पर ब्रह्मा बाबा की गली में निर्मित जयप्रभा मंडपम मैं आयोजित होता रहा और एक लंबा अरसा इस कार्यक्रम के आयोजन का बीत गया।
गीता जयंती के अवसर पर विद्वानों द्वारा यथार्थ गीता के संबंध में व्याख्यान और गीता के प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले गीता प्रचारको को प्रतिवर्ष सम्मानित किया जाता रहा।

5 मई 2017 की सुबह गीता प्रेमियों के लिए दुखद घड़ी रही, जब गीता जयंती समारोह समिति एवं दिव्य प्रभा पत्रिका की व्यवस्थापक प्रेमनाथ चौबे का देहावसान उनके निजी आवास पर हो गया। यह गीता प्रेमियों के लिए बहुत ही दुख, कष्ट, विषाद की घड़ी थी, जब हमने परमहंस आश्रम शक्तेषगढ़ चुनार के स्वामी अड़गड़ानंद जी के प्रिय शिष्य, आश्रम के प्रवक्ता, गीता जयंती के आयोजक, दिव्य प्रभा के व्यवस्थापक को खो दिया।
लेकिन स्वर्गीय प्रेम नाथ चौबे ने गीता जयंती समारोह समिति के माध्यम से प्रतिवर्ष गीता जयंती के आयोजन का जो गीता ज्ञान दीप प्रज्वलित किया था, उसे उनके सहयोगियों, गीता प्रेमियों और अर्थ दान करने वालो ने जलाएं रखा है। इसमें गीतकार जगदीश पंथी, डॉक्टर कुसुमाकर श्रीवास्तव, डॉक्टर बी सिंह, अरुण चौबे, सहित सभी गीता प्रेमियों के सहयोग से इस वर्ष भी गीता जयंती समारोह का आयोजन हो रहा है और भविष्य में भी होता रहेगा ऐसा हम गीता प्रेमियों का विश्वास है।

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