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वह पत्थर व्यापारी है या कानून का शातिर खिलाड़ी

सोनभद्र।वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार बनने से पहले खनन उद्योग वह भी खासकर गिट्टी बालू के व्यापार में माफियाओं के बोलबाले की खबरें अक्सर मीडिया की सुर्खियां बटोर रही थीं।अखिलेश सरकार के पांच वर्ष गुजरने के बाद हुए विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में खनन उद्योग से अखिलेश यादव के परिवारीजनों की संलिप्तता का मुद्दा भी भाजपा ने उठाया और विधानसभा चुनाव के बाद सपा को करारी हार मिली और भाजपा की सरकार बनी।उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार के मुखिया बने योगी आदित्यनाथ और वह मुख्यमंत्री की कुर्सी सम्भालते ही भ्र्ष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई और खनन मंत्रालय अपने पास ही रखा।मुख्यमंत्री की सख्त छवि को देखते हुए लगने लगा था कि उत्तर प्रदेश से खनन माफियाओं का अंत हो जाएगा पर जैसे जैसे समय गुजरता गया वैसे वैसे ही खनन उद्योग से जुड़े माफियाओं ने अपने हाथ पांव पसारने शुरू कर दिया और परिणाम यह हुआ कि सिर्फ चेहरे तो बदल गए पर खनन क्षेत्र में फिर वही खेल शुरू हो गया।

यहां आपको बताते चलें कि सोनभद्र में कागज में बन्द खदानों में खनन का होना और लीज एरिया के आस पास के इलाके में बढ़ कर अवैध खनन करना और इस तरह के अवैध खनन से निकली खनन सामग्री को बाजार तक पहुचाने के लिए फर्जी परमिट अथवा बिना परमिट या फिर ओभरलोड ट्रकों से खनन सामग्री का परिवहन यहां तक कि पत्थर की खदानों में पिलरिंग के नाम पर उनकी एरिया को बढ़ा देने का खेल आदि सभी कार्य पूर्व की सरकारों की भांति ही चलने लगे हैं।हाँ परिवर्तन हुआ तो सिर्फ यह कि पहले खनन क्षेत्र में इस तरह के खेल यदि फलाँ व्यापारी खेलता था तो इस सरकार में सिर्फ चेहरा बदल कर फलाँ व्यापारी खेलने लगा।अर्थात खनन क्षेत्र में सिर्फ सिंडिकेट चलाने वालों का चेहरा बदल गया और नए खिलाड़ी के चारों तरफ खाकी और खादी की नई टीम काम करने लगी और खाकी व खादी उक्त खनन व्यवसाई के सिंडिकेट को सेफ रखने के लिए कानून की चूहेदानी में सुराख ढूंढ कर उसे कानूनी शिकंजे से बचाने का हर सम्भव उपाय ढूंढ ही लेती है।

आपको बताते चलें कि खनन क्षेत्र से जुड़े एक व्यवसायी के कारनामों को सुनकर आप यह कहने को मजबूर हो जाएंगे कि क्या योगी सरकार में भी ऐसा हो सकता है ?वह कानून का तोड़ ऐसा निकालता है कि उसके कारनामों को देखकर आप कह सकते हैं कि वह पत्थर का व्यापारी है अथवा कानून का शातिर खिलाड़ी ?आपको बताते चलें कि उसके अवैध पत्थर की लीज की किसी की शिकायत पर हुई जांचोपरांत जिलाधिकारी ने उसकी पत्थर खदान को विधि विरूद्ध पाते हुए उसकी लीज को निरस्त कर दिया ।जिलाधिकारी के निरस्तीकरण कार्यवाही के खिलाफ उक्त खनन व्यवसायी की अपील सुनवाई के बाद दिए गए निर्णय में आयुक्त विंध्याचल मंडल ने अपने निर्णय में उक्त खनन व्यवसायी के बारे में लिखा है कि पुलिस अधीक्षक सोनभद्र के पत्र एसटी -एसपी -76 /2020 दिनांक 18-8-2020 द्वारा रिपोर्ट दी गयी है कि खनन व्यापारी धीरज रॉय पुत्र वशिष्ठ रॉय निवासी न्यू कालोनी ओबरा थाना ओबरा के द्वारा बिल्ली मारकुंडी खनन क्षेत्र में जबरन अवैध खनन कराने, आस पास के खनन एरिया में जबरन कब्जा कराने, नाजायज गोल बनाकर लोगों पर दबाव बनाने तथा खनन के अपने पार्टनरों का हिसाब नहीं करने तथा अपने खिलाफ शिकायत करने वालों को धमकाने की शिकायत मिलती रहती है जो मुख्य रूप से खनन से सम्बंधित होती हैं। इनकी खदानों के अगल बगल के व्यवसाई तथा भूस्वामी इनके द्वारा उनके एरिया में अतिक्रमण की शिकायत करते रहते हैं।इनके विरुद्ध थाना ओबरा में कई अभियोग पंजीकृत होने के कारण शांति भंग होने से इनकार नहीं किया जा सकता।आगे मंडलायुक्त लिखते हैं कि अपर जिलाधिकारी व पुलिस अधीक्षक की रिपोर्ट के परिशीलन से यह निष्कर्ष निकलता है कि खनन व्यवसायी धीरज रॉय द्वारा क्षेत्र में आतंक का माहौल बनाया गया है तथा इनके कृत्य से क्षेत्र के लोगों को क्षति के साथ ही अवैध खनन को बढ़ावा मिलता है।यहां आपको बताते चलें कि मण्डलायुक्त के द्वारा उक्त व्यवसायी के बारे में इतना स्पष्ट लिखने के बाद भी उक्त व्यवसायी के खिलाफ पुलिस या प्रशासन की कार्यवाही शून्य ही है वह भी तब जब एक आम आदमी के खिलाफ एक दो मुकदमा दर्ज होते ही पुलिस उसके खिलाफ गैंगेस्टर एक्ट की कार्यवाही शुरू कर देती है पर उक्त व्यवसायी के खिलाफ आधा दर्जन से अधिक मुकदमे दर्ज होने व पुलिस अधीक्षक द्वारा अपनी रिपोर्ट में यह उल्लेख करने की उक्त खनन व्यवसायी नाजायज गोल बना कर क्षेत्र में भय का माहौल बना रहा है, के बाद वह भी तब जब पुलिस अधीक्षक उच्चधिकारियों को प्रेषित रिपोर्ट में स्वंय स्वीकार कर रहे हों कि उक्त से समाज को शांति भंग का ख़तरा हो सकता है, उस पर किसी तरह की कार्यवाही का न होना पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा करता है।

इतना ही नहीं है कोतवाली राबर्ट्सगंज में एफ आई आर नंबर 0 372—सन 2022 जो खान निरीक्षक ईश्वरचंद ने 467 468 471 आदि आईपीसी व अन्य धाराओं में दर्ज कराई गई है f.i.r. का मुख्य तथ्य यह है कि चेकिंग के दौरान खनन सामग्री लेकर परिवहन कर रहे वाहन चालक के पास से वाहन पर लदी गिट्टी के परिवहन का प्रपत्र mm11 फर्जी पाया गया ।लोडिंग पॉइंट की तस्दीक करने के लिए ड्राइवर को लेकर जब खान निरीक्षक ड्राइवर के बताए अनुसार लोडिंग प्वाइंट अर्थात सुरेश क्रेशर कंपनी क्रेशर पर पहुंचे तब वहां गोविंद मुंशी द्वारा दो अन्य गाड़ियों का प्रपत्र लगाए जाने पर जरिए मोबाइल परिवहन प्रपत्र mm11 मंगाया गया ।जांच में उक्त दोनों mm11 प्रपत्र भी फर्जी पाए गए ।इस आधार पर ईश्वर चंद खनिज निरीक्षक द्वारा ड्राइवर व उक्त व्यक्ति जो परमिट गोविंद मुंशी के मोबाइल से मंगाए जाने पर लेकर आया था एवं सुरेश क्रेशर कंपनी व अन्य के विरुद्ध एफ आई आर दर्ज कराई गई ।इसके बाद हुई पुलिसिया कार्यवाही सवालों के घेरे में है ।जानकारों का कहना है कि उक्त एफआईआर में जब एक पत्थर खदान के संचालक की गर्दन फसने लगी तब अचानक पुलिस ने अपना गेयर चेंज कर दिया और सुत्रों के मुताबिक उक्त लीज होल्डर को बचाने के लिए ही उक्त एफआईआर की विवेचना कर रहे विवेचक जो सही दिशा में विवेचना को ले जा रहे थे,को ही बदल दिया गया।इसके बाद उक्त विवेचना को लटकाकर कानून की चूहेदानी से उक्त पत्थर व्यवसायी की गर्दन बचाने के लिए सुराख ढूंढे जा रहे हैं।अब आप खुद समझिए कि वह पत्थर व्यवसायी कानून से कैसे खेल रहा है।लगता है कि उसे नियम कानून की कोई परवाह नहीं है ,बेपरवाह वह दिन रात नियमों को धत्ता बताते हुए योगीराज में भी बेधड़क अवैध खनन व परिवहन को अंजाम दे रहा है।

खनन से जुड़े जानकारों की मानें तो उसके कारनामों का अंत यहीं नहीं है यह तो कुछ ऐसे मामले हैं जो बाहर आ गए अंदरखाने में उक्त खनन सिंडिकेट के अनगिनत ऐसे मामले हैं जो बाहर आने से पहले ही खाकी व खादी के सहयोग से रफा दफा कर दिए जाते हैं।यदि सही से जांच हो जाय तो उक्त खनन व्यवसायी का बहुत बड़ा खनन स्कैंडल सामने आ सकता है जिसमे अवैध खनन से निकलने वाली खनिज संपदा को बाजार तक पहुंचाने के लिए पुरानी सरकार की तरह ही फर्जी परमिट या फिर बिना परमिट के सहारे ही ट्रकों को पास कराने के खेल का खुलासा हो सकता है।सूत्रों के अनुसार शायद यही वजह है कि राबर्ट्सगंज कोतवाली में दर्ज एफआईआर न.372/2022 में जब पूर्व विवेचक सही दिशा में जांच को आगे बढ़ाते हुए कानून का शिकंजा एक खनन व्यवसायी की गर्दन के आस पास तक पहुंचाने ही वाले थे कि कानून का यह खिलाड़ी अपनी रसूख के बल पर विवेचक ही बदलवा दिया और अपनी गर्दन बचाने के लिए कानून के सुराख ढूंढ रहा है।

सोनभद्र के खनन क्षेत्र में चल रही कुछ गतिविधियों को देखकर उसके बारे में यही कहा जा सकता है कि जिनके कंधों पर नियमों को पालन कराने की जिम्मेदारी है वह कहीं न कहीं खनन से जुड़े कुछ सिंडीकेट की तरफ से आंख मूंद उनके काले कारनामों को बढ़ावा दे रहे हैं।सवाल यही है कि क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक इस तरह की सूचनाएं नहीं पहुंच रही हैं वह भी तब जब वह खुद इस विभाग के मंत्री भी हैं क्योंकि यदि वहां तक इन गतिविधियों की जानकारी होती तो निश्चित ही विधि सम्मत कार्यवाही होती ? यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि सोनभद्र का खनन क्षेत्र बिल्ली मारकुंडी ओबरा विधानसभा में आता है और ओबरा विधानसभा से विधायक योगी सरकार में राज्यमंत्री भी हैं तो क्या यह मान लिया जाय कि मंत्री जी की निगाहें खनन क्षेत्र में चल रही इस तरह की गतिविधियों पर नहीं पड़ रही या फिर मामला कुछ और ही है।

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