(सोनभद्र से समर सैम की रिपोर्ट)
सोनभद्र। प्लांटेशन के निकट भैंस चराने को लेकर एक बुज़ुर्ग आदिवासी को वन विभाग की पुलिस ने लाठियों से पीट दिया। पीटने से बचाने आयी उस बुज़ुर्ग की बहू को भी लात घूसों से पीटा गया। साड़ी और ब्लाउज़ तक खुलेआम फाड़ डाला गया। ये घटना उत्तर प्रदेश के नक्सल प्रभावित आदिवासी जिला सोनभद्र के मांची थाना क्षेत्र की है। रामगढ़ वन रेंज के केवटम के जंगल में 28 अगस्त की सुबह एक आदिवासी अपनी भैस का दूध दुहने में मस्त था तभी वन विभाग के फारेस्टर और रेंजर वहां आ धमके।
प्लांटेशन के भीतर भैंस चराने का इल्ज़ाम लगाकर एक बुजुर्ग आदिवासी का कान खींचते हुए लाठियों से पीटना शुरू कर दिया। बचाने आयी उसकी बहु को भी लात घूसों से पीटा। आदिवासी महिला की साड़ी और ब्लाउज़ भी फाड़ डाला। ये अपमानित कर देने वाला ह्रदयविदारक नज़ारा देखकर आदिवासी घटना स्थल पर एकत्रित होने लगे। आक्रोशित आदिवासियों ने फारेस्टर और रेंजर को दौड़ाते हुए वन चौकी तक ले गये। अपमान और पीड़ा से आक्रोशित आदिवासियों ने चौकी को घेर कर फारेस्टर और रेंजर से गाली गलौच करने लगे। वन अधिकारी ने बंदूक निकालकर आदिवासियों की तरफ फायर झोंक दिया। संयोग अच्छा था कि उसी समय एक दरोगा ने सामने खड़ी आदिवासी महिला को अंतिम छड़ में खींचकर नीचे गिरा दिया वरना गोली उस महिला को लग सकती थी। वाइरल वीडियो में साफ देखा जा सकता है। इस मामले में रामगढ़ वन रेंज के रेंजर सत्येंद्र सिंह तथ्यों से अलग ही राप अलाप रहे हैं। उनका कहना है कि आदिवासियों द्वारा प्लांटेशन में भैंस चराया जा रहा था। जिसे पकड़कर वन चौकी ला रहे थे। तभी अचानक आदिवासियों ने चौकी पर हमला बोलकर भैंस छुड़ा ले गए।
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फ़िलहाल भुक्तभोगी तेजन के जिस्म पर लाठियों के चोट के निशान कुछ अलग ही दास्तन ब्यान कर रहे हैं। वहीं बुज़ुर्ग ससुर तेजन को बचाने पहुंची बहु मुन्नी देवी को भी लात घूसों से पीटा गया। पीड़िता मुन्नी देवी की फटे कपड़े चीख़ चीखकर शहादत दे रहे हैं कि सभ्य आधुनिक समाज ने भले ही चाँद पर तिरंगा फहराकर अपनी बादशाहत क़ायम कर दी हो। परन्तु वह मानसिक रूप से आज भी पसाड़ कालीन और उतना ही बरबर है। सरकारी चोला ओढ़कर आदिवासियों पर किये जा रहे ज़ुल्मों सितम की अंतहीन कहानी का कोई ओर और छोर निकट भविष्य में दिखाई पड़ने की आशा नज़र नहीं आ रही। सभ्य समाज आज भी आदिवासियों के लिए उतना ही बरबर और रक्त पिशाचर है, जितना सदियों पहले था।अगर कुछ बदला है तो बस प्रताड़ित करने का सरकारी हतकण्डा।सरकारी ठप्पे के साथ आज भी आदिवासियों के ऊपर ज़ुल्मों सितम की सभी हदें पार की जा रही है।
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खैर बवाल की जानकारी मिलते ही सीओ सदर आशीष मिश्रा ने दलबल के साथ वन चौकी पहुंचकर हालात को काबू में किया। अब जांच के नाम पर बेगुनाह आदिवासियों के ऊपर सरकारी कार्यों में बाधा डालने, सरकारी सम्पति को छति पहुंचाने एवं सरकारी कर्मचारियों पर ड्यूटी के दौरान हमला करने जैसे संगीन धाराओं में मुकदमा पंजीकृत कर जेल भेजने की तैयारी चल रही है। वनवासियों का वन में वास करना वन विभाग के चलते मुश्किल हो गया है। देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वनों पर पहला अधिकार वनवासियों का बताते नहीं थकते। वहीं उनकी हुकूमत में वन विभाग आदिवासी समाज का जंगल में रहना दुश्वार किये हुए है। वन विभाग सोनभद्र सैकड़ों आदिवासियों को विभिन्न मुकदमों में जेल भेज चुका है।
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जांच में आदिवासियों की पीड़ा और अपमान नहीं दिखाई पड़ेगा ?। आदिवासी बुज़ुर्ग तेजन के जिस्म पर लाठियों के टैटू नज़र नहीं आयेंगे ?। भरी सभा में द्रोपदी के चीरहरण को आज तक याद किया जा रहा है। लेकिन जांच में लाचार और बेबस मुन्नी देवी की फटी साड़ी और फटा ब्लाउज़ नहीं दिखाई देगा। और न ही जांच में आदिवासियों की तरफ बंदूक तानकर फायर करता हुआ अधिकारी ही दिखाई देगा। भाजपा सरकार जहाँ एक ओर आदिवासियों को मुख्य धारा से जोड़ने का असफल प्रयास कर रही है। वहीं दूसरी ओर वन विभाग मुख्य धारा से जोड़ने के सभी रास्ते ब्लॉक करता जा रहा है। अब जंगल को भी सरकारी सिस्टम वनवासियों के लिए नरक बनाता जा रहा है। नगरीकरण में ऑलरेडी इनके लिए सर्वाइव करने की कोई जगह नहीं है। आखिर ये अभागे जायें तो कहां जायें। हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि ज़ुल्म की टेनी कभी फलती नहीं। नाव कागज़ की कभी चलती नहीं।