फर्जी डिग्री विवाद में फंसे केशव प्रसाद मौर्य, कोर्ट ने जांच के दिए आदेश , 25 अगस्त को न्यायालय देगा फैसला कि आपराधिक मुकदमा चले या नहीं । नरेन्द्र मोदी , स्मृति ईरानी , के बाद केशव मौर्या का डिग्री प्रकरण आगामी चुनाव में बन सकता है भाजपा के गले की हड्डी । डिग्री के आधार पर उप मुख्यमंत्री द्वारा हासिल किया गये पेट्रोल पंप का आवंटन भी हो सकता है रद्द ।
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प्रयागराज । यूपी के उपमुख्यमंत्री और बीजेपी नेता केशव प्रसाद मौर्य इस समय फर्जी डिग्री विवाद में फंस गए हैं। बुधवार को प्रयागराज की एसीजेएम कोर्ट ने इस मामले में जांच के आदेश दिए हैं। केस की अगली सुनवाई 25 अगस्त को होनी है। यह आदेश आरटीआई एक्टिविस्ट दिवाकर त्रिपाठी की कोर्ट में दाखिल अर्जी पर दिया गया है।

केशव प्रसाद मौर्य पर आरोप हैं कि उन्होंने निर्वाचन आयोग के सामने अपनी शैक्षणिक योग्यता की जो भी जानकारी दी है, वह फर्जी है। सही क्या है और गलत क्या, यह तो कोर्ट के आदेश के बाद ही तय होगा लेकिन यह जानना रोचक होगा कि आखिर बीजेपी नेता ने अपनी तरफ से क्या जानकारी दी थी।
साल 2007 में बताई मध्यमा
लेकिन मामला इतना ही नहीं है, केशव प्रसाद मौर्य पर आरोप हैं कि उन्होंने अलग-अलग फर्जी डिग्रियों से अलग-अलग चुनाव लड़े हैं। साल 2017 में उन पर राजू तिवारी नाम के एक शख्स ने आरोप लगाया था कि मौर्य ने साल 2007 में प्रयागराज के पश्चिमी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ते समय हलफनामे में बताया था कि उन्होंने हिंदी साहित्य सम्मेलन से 1986 से प्रथमा, 1988 में मध्यमा और 1998 में उत्तमा की थी। हिन्दी साहित्य सम्मेलन की डिग्री प्रथमा को कुछ राज्यों में हाईस्कूल, मध्यमा को इंटर और उत्तमा को ग्रेजुएट के समकक्ष मान्यता दी जाती है।

साल 2012, 2014 में बताई बीए की डिग्री
केशव प्रसाद मौर्य पर आरोप हैं कि उन्होंने साल 2012 में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान सिराथू विधानसभा सीट से और साल 2014 में फूलपुर लोकसभा सीट से नामांकन के दौरान हलफनामे में अपनी डिग्री बीए बताई है। इसमें बताया गया है कि उन्होंने हिंदी साहित्य सम्मेलन से साल 1997 में बीए किया है।
दोनों बार पास करने का साल अलग
इस बारे में शिकायत करने वाले शख्स तिवारी का कहना था कि हिंदी साहित्य सम्मेलन बीए की डिग्री नहीं देता इसलिए हलफनामे में दी गई जानारी गलत है। और अगर वह उत्तमा को ही बीए की डिग्री बता रहे हैं तो दोनों के पास करने वाले साल अलग-अलग क्यों हैं। मतलब 2007 के हलफनामे में उत्तीर्ण करने वाला साल 1998 लिखा है जबकि साल 2012 और 2014 के चुनावी हलफनामे में यही 1997 लिखा गया है।

उल्लेखनीय हैं कि प्रदेश में वर्ष 2012 में जिन संस्थानों और कथित विश्वविद्यालयो को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग व माध्यमिक शिक्षा परिषद ने अपात्र एवम फर्जी बताया है उनमें हिन्दी साहित्य सम्मेलन ,प्रयाग भी शामिल है ।
आर टी आई ऐक्टिविस्ट दिवाकर त्रिपाठी ने ए सी जी एम कोर्ट में दाखिल अपने याचिका में कहा है कि श्री मौर्या पिछले विभिन्न वर्षो में पांच चुनाव लड़े थे जिनमें तीन बार एम एल ए ,एक बार फूलपुर लोकसभा तथा एक बार विधान परिषद का , इन सभी चुनाव में श्री मौर्या ने अलग अलग हलफनामा/शपथपत्र भरा है जो कि गलत और अवैधानिक है । राजनीति पर नजदीक से नजर रखने वाले जानकारों का कहना है कि आने वाले उत्तर प्रदेश के चुनाव में श्री मौर्या के साथ साथ भाजपा के लिए भी यह मुद्दा परेशानी का सबब बन सकता है ।