Friday, March 29, 2024
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धरती का बढ़ता तापमान और जीवन पर उसका असर ,आखिर कहां गई हरियाली ?

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विश्व पर्यावरण दिवस स्पेशल

राजेन्द्र द्विवेदी / ब्रजेश पाठक

वनवासी सेवा आश्रम के अध्यक्ष अजय शेखर ने बताया कि 60 के दशक में सोनभद्र में हरियाली के ऐसी स्थिति थी की जमीन पर सूर्य की रोशनी पड़ना मुश्किल था। लेकिन आज इन जंगलों की हालत को देखकर बहुत दु:ख होता है । जंगल लगभग खत्म हो गए हैं और उनका मानना है कि इसके जिम्मेदार वन विभाग के अधिकारी है।उन्होंने सीधा आरोप लगाया कि इनके संरक्षण में ही जंगल काटे जाते है और अगर हरियाली वापस लानी है तो पहले इनके ऊपर ही लगाम लगाना पड़ेगा।

जब बाड़ ही खेत को खाने लगेगी और वन कर्मचारियों द्वाराअपने रिश्तेदारों को श्रमिक और ठेकेदार बनाकर प्लांटेशन के करोड़ों रुपए फर्जी तरीके से अपने सगे सम्बन्धियों के खातों में ट्रांसफर कराये जाते रहेंगे , और इसी तरह पौधरोपण कागजों में होता रहेगा , तब तक यूं ही वन क्षेत्र और वन घटते रहेगें । वर्षों से हरियाली वापस लाने की लड़ाई लड़ रहे बलिराम सिंह को अभी भी यकीन है कि उनकी जीत होगी और उन्हें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर पूरा यकीन है। वे मानते हैं कि यदि मामला मुख्यमंत्री तक पहुंचेगा तो कार्यवाही तय है ।

सोनभद्र । आज पूरा देश विश्व पर्यावरण दिवस मना रहा है । बढ़ते प्रदूषण व विकास की अंधी दौड़ के कारण जिस तरह से पर्यावरण को नुकसान पहुंचा है वह पर्यावरण प्रेमियों के लिए बेहद चिंता का विषय है ।
केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार तक पर्यावरण बचाने को लेकर लगातार काम कर रही है जिसमे पौधरोपण से लेकर पेड़ों के कटान पर प्रतिबंध जैसे कई उपाय हैं पर सिकुड़ते जंगल सरकारी मंशा व वन विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रहे। सवाल यही है कि सरकार के इतने प्रयास के बाद भी जंगल क्यो सिकुड़ते जा रहे हैं।भारतीय वन सर्वेक्षण की एक रिपोर्ट ने वन विभाग के साथ-साथ सरकार की भी नींद उड़ा दी है । भारतीय वन सर्वेक्षण 2021 ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया है कि यूपी के 10 जिलों में हरियाली कम हो गई, यानी जंगल गायब हो गए या फिर इनका क्षेत्रफल कम हो गया। इन 10 जिलों में सर्वाधिक हरियाली सोनभद्र, मिर्जापुर और चंदौली जिलों में कम हुई है।भारतीय वन सर्वेक्षण के खुलासे के बाद जिलों में तैनात वन विभाग के अधिकारी भी सकते में हैं और इस रिपोर्ट पर सवाल खड़े कर रहे हैं।

विश्व पर्यवारण दिवस पर विंध्य लीडर ने अपने सामाजिक सरोकार को समझते हुए सोनभद्र और चंदौली जनपद में पड़ताल कर वहां की हरियाली को देखा । आज हम आपको बताएंगे कि भारतीय वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट की जमीनी हकीकत क्या है । आज की इस रिपोर्ट के माध्यम से विंध्य लीडर यह खुलासा करने का सार्थक प्रयास करेगा कि कैसे इन 10 जिलों की हरियाली गायब हो गयी ? आखिर क्या भूमिका है वन विभाग के कर्मचारियों का सिकुड़ते जंगल की भूमि व हरियाली गायब होने में

आपको बताते चलें कि इन दिनों देश के सामने प्रदूषण एक बड़ी समस्या बना हुआ है । बढ़ते प्रदूषण को लेकर कई बार कोर्ट को भी टिप्पणी करनी पड़ी है । प्रदूषण नियंत्रण को लेकर राज्य सरकारें कई कानून भी बनाये । हर साल लाखों की संख्या में वृक्षारोपण कर रिकार्ड भी बनाये जा रहे हैं लेकिन वावजूद इसके हर साल प्रदूषण की समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है जिसे लेकर प्रधानमंत्री मोदी से लेकर राज्य सरकारें लगातार जागरूकता के कार्यक्रम चला रही हैं मगर फिर भी सारे काम बेअसर नजर आ रहे हैं ।

जब हरियाली गायब तो यह सुख कहा मयस्सर ?

हाल ही में भारतीय वन सर्वेक्षण की एक रिपोर्ट ने न सिर्फ केंद्र बल्कि योगी सरकार के पौधरोपण कार्यक्रम पर सवाल खड़ा करते हुए सभी की नींद उड़ा दी । भारतीय वन सर्वेक्षण रिपोर्ट 2021 के मुताबिक यूपी के 10 जिलों से हरियाली गायब है अर्थात पिछली रिपोर्ट में दर्ज हरियाली के क्षेत्रफल से इस रिपोर्ट में कम है ।
इस सर्वेक्षण रिपोर्ट के सामने आने के बाद वन विभाग में हड़कम्प मचा हुआ है और अधिकारी सकते में हैं । क्योंकि योगी पार्ट वन में अधिकारियों ने सर्वाधिक पेड़ लगाकर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराया था । ऐसे में अब बड़ा सवाल यही खड़ा हो रहा है कि जब प्रदेश सरकार हरियाली के लिए हर साल करोङो रुपये खर्च करती है और हर साल वृक्षारोपण कर रिकार्ड बनाये जाते हैं तो आखिर जंगल की हरियाली जाती कहाँ है । आखिर सरकार की इतनी कवायद के बाद भी जंगल सिकुड़ कैसे रहे हैं ?

भारतीय वन सर्वेक्षण के मुताबिक 10 जिलों में सबसे ज्यादा सोनभद्र में लगभग 103 वर्ग किलोमीटर हरियाली कम हुई है । इसलिए सबसे पहले हमारी टीम सोनभद्र से ही अपनी पड़ताल शुरू की और वहां पर्यावरण से जुड़े लोगों से बातचीत की। वनवासी सेवा आश्रम के अध्यक्ष अजय शेखर ने बताया कि 60 के दशक में सोनभद्र में हरियाली के ऐसी स्थिति थी की जमीन पर सूर्य की रोशनी पड़ना मुश्किल था। लेकिन आज इन जंगलों की हालत को देखकर बहुत दु:ख होता है । जंगल लगभग खत्म हो गए हैं और उनका मानना है कि इसके जिम्मेदार वन विभाग के अधिकारी है।उन्होंने सीधा आरोप लगाया कि इनके संरक्षण में ही जंगल काटे जाते है और अगर हरियाली वापस लानी है तो पहले इनके ऊपर ही लगाम लगाना पड़ेगा।

विंध्य लीडर ने अपनी पड़ताल को आगे बढ़ाया तो एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट हाथ लगी जिसे सहायक वन संरक्षक संजीव कुमार, रॉबर्ट्सगंज रेंज ने 2019 में डीएफओ कैमूर वन्य जीव प्रभाग मिर्जापुर को लिखा था। जिसमें साफ तौर पर संजीव कुमार ने यह लिखा था कि घोरावल रेंज के परसौना गांव में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कार्यकाल में ग्रीन यूपी क्लीन यूपी योजना के अंतर्गत 160 हेक्टेयर क्षेत्र में 176000 पौधे 24 ग्रिडों में रोपित किए गए थे । जिसको उस बीट के वन दरोगा अंजनी कुमार मिश्र द्वारा पैसा लेकर वन क्षेत्र में स्थित पौधरपण क्षेत्र को नष्ट करा कर लोगों को कब्जा करा दिया गया। और जांच के समय वहां पर कच्चे और खपरैल के मकान के साथ फसल खड़ी है। जंगल को बचाने के लिए उचित कार्यवाही जरूरी है।

वन विभाग के बड़े अधिकारी संजीव कुमार की इस रिपोर्ट से साफ पता चलता है कि सरकार हरियाली लाने के लिए भले ही करोड़ों रुपए खर्च कर दे लेकिन विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों की वजह से ही हरियाली गायब हो रही है।

अब विंध्य लीडर ने अपनी पड़ताल को आगे बढ़ाते हुए डीएफओ सोनभद्र के पास पहुंचा । जब हमारी टीम ने सोनभद्र से हरियाली गायब होने का सवाल पूछा तो डीएफओ साहब पहले तो जंगल के महत्व के बारे में बताने लगे फिर भारतीय वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट पर ही सवाल खड़ा करते हुए रिपोर्ट में दिए गए आंकड़े को गलत बताने में जुट गए।
अब यहां गौर करने वाली बात यह है कि जब देश की सबसे बड़ी एजेंसी की रिपोर्ट पर ही डीएफओ साहब को एतराज है क्योंकि एजेंसी ने उन्ही के कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिया है तो इनके जैसे अधिकारियों के भरोसे जंगल कैसे सुरक्षित बचेगा यह कहना भी कठिन है।

सोनभद्र में जमीनी हकीकत परखने के बाद हमारी टीम को यह तो अंदाजा लग चुका था कि अधिकारी जितनी हरियाली दिखलाते हैं दरअसल उतनी होती नहीं, हरियाली बढ़ाने के आधे से ज्यादा कार्यक्रम तो कागजों में ही चलते हैं । अब हमारी टीम सोनभद्र से सटे चंदौली जनपद पहुंची तो वहां हमारी टीम की मुलाकात एक दशक से भी ज्यादा समय जंगल की हरियाली को बचाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे बलिराम सिंह से हुई।

बलिराम सिंह ने पर्यावरण को लेकर जिस तरह के खुलासे किए उसे सुनकर न सिर्फ मुख्यमंत्री बल्कि पूरे पर्यावरण प्रेमियों के होश उड़ जाएंगे ।

भारतीय वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक चंदौली जिले में लगभग 11 वर्ग किलोमीटर हरियाली कम हो गयी है । जब हमने बलिराम सिंह से यह जानने की कोशिश की कि जब हर साल पेड़ लगाए जाते हैं, रिकार्ड बनते हैं, फिर हरियाली कम कैसे हो जाती है ? तो
इस सवाल पर बलिराम सिंह ने खुलासा करते हुए बताया कि 2003 से लेकर अब तक काशी वन प्रभाग के जयमोहनी रेंज नौगढ़ में कराए गए प्लांटेशन में हुई गड़बड़ी को लेकर उन्होंने इसकी शिकायत प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक की ।

उन्होंने आगे बताया कि कैसे जयमोहनी रेंज के कर्मचारियों ने अपने रिश्तेदारों को श्रमिक और ठेकेदार बनाकर प्लांटेशन के करोड़ों रुपए फर्जी तरीके से अपने सगे सम्बन्धियों के खातों में ट्रांसफर करा दिए । और पौधरोपण कागजों में ही हो गया ।

बलिराम सिंह ने बताया कि उन्होंने इस फर्जीवाड़े को लेकर लगभग 200 बैंक खातो में किए गए ट्रांजेक्शन व वन विभाग के कर्मचारियों तथा उनके रिश्तेदारों के सम्बंध के सुबूत प्रधानमंत्री कार्यालय भेजा था । जिसके बाद प्रधानमंत्री कार्यालय से उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को इस पर जांच के लिए आदेशित भी किया गया। लेकिन भ्रष्टाचारियों की मजबूत जड़ों के कारण आज तक जांच लटका पड़ा है । यह सब सबूत व बयान सामने आने के बाद हमारी टीम को यह यकीन हो चला था कि वन माफियाओं के सिंडिकेट में कैसे वन कर्मी व अधिकारी काम कर रहे हैं और सरकार को हर साल करोड़ों का चूना लगा रहे हैं ।वर्षों से हरियाली वापस लाने की लड़ाई लड़ रहे बलिराम सिंह को अभी भी यकीन है कि उनकी जीत होगी और उन्हें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर पूरा यकीन है। वे मानते हैं कि यदि मामला मुख्यमंत्री तक पहुंचेगा तो कार्यवाही तय है ।

पर्यावरण दिवस पर विंध्य लीडर द्वारा इस खबर को प्रकाशित करने के पीछे हमारा एक ही मकशद है कि पर्यावरण से खिलवाड़ करके आज हम इस मुहाने पर आ गए हैं जहां जीवन बचाने के लिए एक बड़ा संघर्ष हमारे सामने खड़ा हो गया है बढ़ते तापमान और उससे उपजा पृथ्वी पर जीवन का संकट और यह संघर्ष इसलिए खड़ा हुआ कि जिस जंगल से हमें जीवन मिलता है इंसान उस जीवन को भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा दिया।हमें उम्मीद है इस खबर को देखने के बाद शायद सिस्टम में कुछ सुधार हो और शायद कुछ भ्रष्ट अधिकारियों व कर्मचारियों के बीच घूम रही नोटों की हरियाली वापस जंगलों में आ जाय ।

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