जब गुरुजी को हो गया अपने ही विद्यालय की नाबालिग छात्रा से प्यार और लिख दिया लव लेटर,उसके बाद……
उत्तर प्रदेश के कन्नौज के एक प्राथमिक विद्यालय के गुरु जी अपने ही स्कूल में पढ़ने वाली नाबालिग छात्रा से दिल लगा बैठे।उक्त छात्रा के प्यार में पागल गुरु जी ने उसको प्रेम पत्र भी लिखकर दे दिया। छात्रा ने जब यह बात अपने परिजनों को बताई तो गुरु जी उनसे क्षमा याचना कर अपनी गलती न स्वीकार करते हुए छात्रा के परिजनों से ही भिड़ गए। पीड़ित छात्रा के पिता ने कोतवाली में तहरीर दे न्याय की गुहार लगाई है।
मामला कन्नौज सदर कोतवाली क्षेत्र के एक गांव का है। यहां के जूनियर हाईस्कूल में कक्षा 8 की एक छात्रा पर प्राइमरी स्कूल के शिक्षक का दिल आ गया। वह पढ़ाई के बहाने छात्रा से छेड़छाड़ भी करने लगे।स्कूल की शीतकालीन छुट्टी होने से पहले शिक्षक ने छात्रा से पत्र के जरिए अपने दिल की बात बताई। इतना ही नहीं गुरुजी ने छात्रा को मिलने के लिए भी बुला लिया। छात्रा शिक्षक की इस हरकत से घबरा गई और अपने परिजनों को पत्र देते हुए पूरा मामला बता दिया।
छात्रा के पिता का कहना है कि जब हम लोग शिक्षक के पास पहुंचे और उनकी इस तरह की हरकत करने पर माफी मांगने के लिए कहा, तो वह उल्टा उन लोगों से ही झगड़े पर आमादा हो गया और स्कूल से भगा दिया। पीड़ित पिता ने सदर कोतवाली पुलिस को तहरीर देकर शिक्षक पर कार्रवाई की मांग की है।लड़की के पिता ने बताया कि शिक्षक की पहली बार शिकायत की है, इससे पूर्व कोई शिकायत नहीं की थी।
शिक्षक ने छात्रा को लिखे लव लेटर में लिखा है कि ‘ हम तुमसे बहुत प्यार करते है।छुट्टियों में तुम्हारी बहुत याद आया करेगी। हम तुम्हें बहुत मिस करेंगे। अगर तुम्हें फोन मिले तो फोन कर लिया करना। शिक्षक से फोन पर भी बात कर सकती हो। छुट्टियों से पहले एक बार हमसे मिलने जरूर आना और प्यार करती हो तो जरूर आओगी। अगर हम तुम्हें 8 बजे बुलाए तो तुम जल्दी स्कूल आ सकती हो। अगर आ सको तो हमें बता देना और हम तुमसे बहुत सी बातें करना चाहते हैं। तुम्हारे पास बैठकर एक दूसरे को अपना बनाकर जीवनभर के लिए तुम्हारे होना चाहते है। हम तुम्हे हमेशा प्यार करते रहेंगे।पत्र पढ़कर फाड़ देना और किसी को दिखाना नहीं।
शिक्षक के इस तरह के पत्र पर क्या कहा जा सकता है।आखिर हमारे समाज की दिशा किस तरफ जा रही है।क्या यह वही देश है जहां गुरुकुल पद्धति के विद्यालयों में लोग अपने बच्चों को भेजने के बाद निश्चिंत हो जाते थे कि अब हमारा बच्चा समाज मे जीने लायक बनकर ही गुरुकुल से बाहर आएगा।शिक्षक की समाज मे जो इज्जत थी वह इसीलिए तो थी।पर इस बदलते परिवेश ने हमें कहाँ पहुंचा दिया है यह विचारणीय प्रश्न है ।इस तरह की घटनाओं से समाज की नींव हिल जाती है, इसे बचाने की जिम्मेदारी इन नींव के पत्थरों को ही है।