सोनभद्र

आखिर सोनभद्र के भ्रष्टाचारियों को कौन दे रहा संरक्षण ?आदेश के बाद भी भ्रष्टाचार के मामले की क्यूँ दर्ज नहीं हो पाती एफ़आईआर

सोनभद्र। एक तरफ उत्तर प्रदेश की वर्तमान सरकार जीरो टॉलरेंस का नारा लगा रही है और इसमें कुछ सच्चाई भी नजर आ रही है क्योंकि कुछ मामलों में भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर कार्यवाही भी देखने को मिली हैं जबकि दूसरी तरफ सोनभद्र में भ्र्ष्टाचार का ग्राफ दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है।

ऐसा लगता है कि सोनभद्र में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है वह भी तब जब पूर्व में नॉकरशाही के उच्चतम पद पर बैठे सोनभद्र के पूर्व जिलाधिकारी पर भी भ्र्ष्टाचार पर प्रभावी अंकुश न लगा पाने की वजह से कार्यवाही भी हो चुकी है। आम जनता यह समझ नहीं पा रही है कि जिन मामलों में जांच के बाद भ्रष्टाचार व गमन साबित भी हो गया है और भ्रष्टाचार में लिप्त कर्मचारियों को निलंबित कर उन पर एफ़ आई आर दर्ज कराने का उच्चधिकारियों द्वारा आदेश दिए जाने के बाद भी उक्त आदेश केवल फाइलों तक सीमित क्यों रह जा रहे हैं ?

सोनभद्र की राजनीतिक गतिविधियों पर पैनी नजर रखने वालों की मानें तो एक राजनीतिक महंत जिनका कार्यक्षेत्र पूर्व में सोनभद्र नहीं था पर अब सोनभद्र की खनिज सम्पदाओं से आकर्षित हो अब सोनभद्र को अपने शिकंजे में रखने के प्रयास में लगे हैं और अब उन्हीं के संरक्षण व राजनीतिक दबाव के चलते उक्त भ्रष्टाचारियों पर कार्यवाही नहीं हो पा रही है।मसलन चतरा विकास खण्ड में तैनात एक ग्राम पंचायत सचिव पर सौचालय निर्माण में की गई अनियमितता की जांचोपरांत गमन की पुष्टि हो जाने के बाद भी उन्हीं के दबाव में लगभग 6 महीने तक विभाग मौन साधे रख उक्त कर्मचारी को बचाने की भरपूर कोशिश में लगा रहा पर जब मामला मीडिया की सुर्खियों में आ गया तो उच्चाधिकारियों द्वरा उक्त कर्मचारी पर कार्यवाही करते हुए निलंबित कर उनपर एफआईआर दर्ज करने का आदेश जारी तो कर दिया गया पर महीनों गुजर जाने के बाद भी एफआईआर दर्ज नहीं हो सकी।

इसी तरह कोन विकास खण्ड के एक पंचायत की जांच में प्रथम दृष्टया लगभग 300 सौचालय निर्माण न कराकर उसका धन गमन कर लिए जाने की जांच रिपोर्ट विभाग को मिल जाने के बाद भी उक्त रिपोर्ट को दबाए रखा गया है।विभागीय जानकारों की मानें तो यहां भी कार्यवाही उन्हीं राजनीतिक महामंडलेश्वर के दबाव में नहीं हो पा रही है।

खैर इस बात में कितनी सच्चाई है इस पर तो कुछ भी कह पाना कठिन है परन्तु यह तो कठोर सच्चाई है कि कोई तो है जो सोनभद्र के भ्रष्टाचारी कर्मचारियों को संरक्षण देकर सोनभद्र के विकास को अवरुद्ध करने में लगा है।अब देखना है कि सरकार के नुमाइंदे सरकार के जीरो टॉलरेंस की नीति को अमलीजामा पहनाने के लिए क्या कदम उठाते हैं ?क्या राजनीति के महामंडलेश्वर इसी तरह भ्रष्टाचार में लिप्त कर्मचारियों को अपने राजनीतिक रसूख के चलते बचाते रहेंगे अथवा इस प्रवृत्ति पर अंकुश भी लगेगा।

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