Friday, March 29, 2024
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लोक निर्माण विभाग का खेल निराला: कहीं टेंडर के नाम पर खेल तो कहीं बिना टेंडर के ही सेलेक्शन बांड बनाकर चहेतों को करोड़ों का भुगतान

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–शासनादेश के विपरीत 10 वर्षों से अधिक समय से जिले में जमे अधिकारी कर्मचारी भ्र्ष्टाचार को दे रहे बढ़ावा

— गजब हाल है इस विभाग का इसी जिले में ए ई ,प्रमोशन के बाद इसी जिले में एक्सईएन और उसके बाद इसी मंडल में अब ए सी का चार्ज लेने की तैयारी

सोनभद्र।एक तरफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भ्र्ष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की मुहिम छेड़े हुए हैं तो दूसरी तरफ सोनभद्र जिले में लोक निर्माण विभाग भ्र्ष्टाचार के नित नए कीर्तिमान बना रहा है।शासनादेश है कि एक अधिकारी/कर्मचारी एक जिले में तीन वर्ष ,एक मंडल में सात वर्ष से अधिक नहीं रह सकता क्योंकि नीति निर्धारकों को भी यह पता है कि जब अधिकारी एक जिले में तीन वर्ष से अधिक रह लेगा तो उसके विभाग में भ्र्ष्टाचार बढ़ने की सम्भावना भी बढ़ जाती है।शायद इसी लिए तबादले के लिए जो शासनादेश सरकार द्वारा जारी किया गया है उसमें स्पष्ट है कि तीन वर्ष से अधिक एक जनपद में तथा 7 वर्ष से अधिक एक मंडल में समय गुजार चुके अधिकारियों/कर्मचारियों को अन्य ज़िलों में स्थानांतरित कर दिया जाय।परन्तु भ्र्ष्टाचार में आकंठ डूब चुके कुछ अधिकारी ,कर्मचारी येन केन प्रकारेण कोई न कोई जुगाड़ लगा सोनभद्र जिले को छोड़ना ही नहीं चाहते।कार्यदायी संस्थाओं में एक सामान्य सी परम्परा रही है कि जब किसी अधिकारी या कर्मचारी की पदोन्नति होती है तो उसे उसके पदोन्नति से पूर्व वाले जिले में तैनाती नहीं दी जाती थी क्योंकि इससे भी भ्र्ष्टाचार बढ़ने की आशंका बनी रहती थी,परन्तु यहां तो इस परंपरा का भी पालन नहीं किया गया।

आपको बताते चलें कि लोक निर्माण विभाग में सोनभद्र में ही सहायक अभियंता के पद पर वर्षों तक कार्य करने के बाद पदोन्नति के बाद अधिशासी अभियंता के रूप में सोनभद्र में ही तैनाती दे दी गयी।सूत्रों पर भरोसा करें तो उक्त अधिशासी अभियंता द्वारा अपने एक चहेते ठेकेदार को किसी आपात अवस्था मे काम चलाने के लिए बने विभागीय नियमों की आड़ में करोडों का भुगतान भी किया जा चुका है।मसलन सेलेक्शन बांड ,लखटकिया अनुबंध, टी आई,व अन्य विभागीय नियम जो किसी आपदा के समय काम चलाने के लिए बनाए गए हैं उन नियमों की आड़ में चहेते ठेकेदारों को अनुचित लाभ पहुंचाने का उपक्रम लगातार जारी है।

इतना ही नहीं यदि विभागीय सूत्रों पर भरोसा करें तो अब कुछ अधिशासी अभियंता पदोन्नति के बाद इसी मंडल में ही चार्ज लेने के लिए विभाग के उच्चाधिकारियों से गेटिंग सेटिंग में लग गए हैं क्योंकि ऐसे अधिकारी/कर्मचारी जिले पर अपनी पकड़ ढीली नहीं पड़ने देना चाहते ।अब देखना होगा कि अधिकारियों की नियुक्ति व स्थानांतरण के लिए जो वर्तमान शासनादेश जारी हुआ है उसमें निर्धारित मानकों से खुद को कैसे बचाते हैं।

सूत्रों की मानें तो लोकनिर्माण विभाग से खनिज विकास निधि से कराए जाने वाले कार्यों के आवंटन हेतु निकली गयी निविदा में भी खेल किया गया है जिसमे लोक निर्माण खण्ड के एक डिवीजन द्वारा अपनी चहेती फर्म को 10 से अधिक कार्य विभागीय दर पर आवंटित कर दिया गया है जबकि उसके पूर्व में जो फ्रेश टेंडर हुआ था उसमें विभागीय दर से 20 से 30 प्रतिशत विलो तक टेंडर हुए हैं।ऐसे में सरकार की जीरो टॉलरेंस की नीति को चुनौती देते इस तरह के कर्मचारियों पर सरकार की नजर कब पड़ेगी यह भी विचारणीय प्रश्न है।

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