सोनभद्र। कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया को बहनों द्वारा भैया दूज का पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर बहनें अपने भाई के लिए व्रत रखती हैं। उक्त अवसर पर बहने नारायण, सूरज, चांद व अन्य प्राकृतिक दृश्य गोबर से बनाती हैं इसके साथ-साथ चौकीदार, ओखली मे गोबर से बने एक अलंकृत चौकियां बनाई जाती है जो सफेद रूई तथा सिंदूर से बनता है इससे संबंधित कहानियां कहती हैं, लोकगीत गाती हैं और एक विचित्र परंपरा है कि अपने प्रिय भाई को भैया खाऊं आदि गालियां देती है।
ऐसी मान्यता है कि आज के दिन भाई को जितना बुरा कहा जाएगा उसकी उतनी ही उम्रअधिक होगी। बहनें अपने भाइयों का नाम लेकर उनके चिरायु होने तथा भाभी के सौभाग्य की कामना करती हैं। अलंकरण के मध्य में एक मूर्ति बनाती हैं,इसे गोधन कहते हैं, गोदना बनाने से जो गोबर बच जाता है उसे सभी में बांट दिया जाता है स्त्रियां उस गोबर का गोल गोल पिंड बनाकर अपने घर ले जाती हैं तथाअनाज भंडार में उसे रख देती है ।ऐसी मान्यता है कि इससे अनाज बढ़ता है, खराब नहीं होता।
इस पर्व पर अनेकों प्रकार की लोक कथाएं लोकगीत कहने, गाने की परंपरा है।भाई दूज से जुड़ी पौराणिक कथा: मान्यताओं अनुसार इस दिन मृत्यु के देवता यमराज अपनी बहन यमुना के अनेकों बार बुलाने के बाद उनके घर गए थे। यमुना ने यमराज को भोजन कराया और तिलक कर उनके खुशहाल जीवन की प्रार्थना की। प्रसन्न होकर यमराज ने बहन यमुना से वर मांगने को कहा। यमुना ने कहा आप हर साल इस दिन मेरे घर आया करो और इस दिन जो बहन अपने भाई का तिलक करेगी उसे आपका भय नहीं रहेगा। यमराज ने यमुना को आशीष प्रदान किया। कहते हैं इसी दिन से भाई दूज पर्व की शुरुआत हुई।
एक कथा के अनुसार भैया दूज वाले दिन यमुना अपने भाई से मिलने गई थी और यमराज ने उनसे प्रसन्न होकर उसे वर दिया था कि जो व्यक्ति इस दिन यमुना में स्नान करेगा, वह यमलोक नहीं जाएगा है।
लोक कथा के अनुसार नरक चतुर्दशी एवं भैया दूज यमराज से संबंधित त्यौहार है और इस दिन यमराज को प्रसन्न करने के लिए पूजा पाठ हवन इत्यादि श्रद्धालुओं द्वारा किया जाता है। भारतीय लोक में यम के पूजा का विधि विधान है जो अपने आप में लोकजीवन, लोक कला, लोक साहित्य, लोक धर्म में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
भारतीय मृत्यु के देवता यमराज की पूजा करते हैं यह परंपरा सिर्फ हमारे देश में ही कायम है और अनंत काल तक कायम रहेगी। दूज का पर्व भाई-बहन के प्यार का प्रतीक है। इस त्योहार को भाई टीका, यम द्वितीया आदि नामों से भी जाना जाता है। ये पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को तिलक लगाकर उनकी लंबी उम्र और सुखी जीवन की कामना करती हैं।बिहार में भाई दूज पर एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है। इस दिन बहनें भाइयों को डांटती हैं और उन्हें भला बुरा कहती हैं और फिर उनसे माफी मांगती हैं। दरअसल यह परंपरा भाइयों द्वारा पहले की गई गलतियों के चलते निभाई जाती है। इस रस्म के बाद बहनें भाइयों को तिलक लगाकर उन्हें मिठाई खिलाती हैं।
भाई दूज से जुड़ी भगवान श्री कृष्ण और सुभद्रा की कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार भाई दूज के दिन भगवान श्री कृष्ण नरकासुर राक्षस का वध कर द्वारिका लौटे थे। इस दिन भगवान कृष्ण की बहन सुभद्रा ने फल,फूल, मिठाई और अनेकों दीये जलाकर उनका स्वागत किया था। सुभद्रा ने भगवान श्री कृष्ण के मस्तक पर तिलक लगाकर उनकी दीर्घायु की कामना की थी।
इस अवसर पर बहनों ने रोली, फल, फूल, सुपारी, चंदन और मिठाई की थाली सजा कर व चावल के मिश्रण से एक चौक तैयार कर किया जाता है-चावल से बने इस चौक पर भाई को शुभ मुहूर्त में बहनो द्वारस भाई को तिलक लगा कर गोला, पान, बताशे, फूल, काले चने और सुपारी देकर भाई की आरती उतार कर उपहार भेंट किया जाता है। इसी के साथ परम्परानुसार यमराज के नाम का चौमुखा दीपक जलाकर घर की दहलीज के बाहर रख कर मंगल कामना किया जाता है।