अजय भाटिया
चोपन । सोनभद्र। कूड़े में खाना तलाशते, कबाड़ बिनते, या हाथ में कटोरा लिए नन्हे मुन्ने बच्चे और किशोर आपको अक्सर ही बस/रेलवे स्टेशनों भीड़भाड़ वाले वाहन स्टैंडो, सार्वजनिक स्थलों और अथवा बाजारों में घूमते मिल जाएंगे।
जिन हाथों में किताबें और स्कूल बैग होने चाहिए थे उन हाथों में भिक्षाटन के लिए कटोरा जैसी स्थिति सरकार के अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार को मुंह चिढ़ाती दिखाई जान पड़ती हैं।
कहने को तो शासन प्रशासन ऐसे बच्चों के विकास के लिए कई योजनाएं और कार्यक्रम चलाता है लेकिन जागरूकता के अभाव में ऐसी योजनाएं कागजों तक ही सिमट कर रह गई है और स्थिति ज्यों की त्यों बनी रहती है।