Wednesday, April 24, 2024
HomeUncategorized'अंतिम सफर' जिसे कमलेश्वर पूरा नहीं कर पाए.……

‘अंतिम सफर’ जिसे कमलेश्वर पूरा नहीं कर पाए.……

-

पंकज श्रीवास्तव

6 जनवरी : 89वीं जयन्ती पर कमलेश्वर का पुण्य स्मरण

कहानी,उपन्यास,पत्रकारिता,स्तंभ लेखन, फिल्म पटकथा जैसी अनेक विधाओं में कमलेश्वर ने अपनी लेखन प्रतिभा का परिचय दिया।कमलेश्वर की कलम से निकलने वाले शब्दों का रंग स्याह न होकर पानी जैसा था,जिस भी विधा को वह छूती,उसी के रंग और लहजे में खुद को ढाल भी लेती

आज जब मीडिया पर मुट्ठी भर औद्योगिक घरानों का आधिपत्य हो गया है,जब मीडिया घरानों के लिए सबसे बड़ी विज्ञापनदाता स्वयं सरकार हो,वैचारिक रूप से परिपक्व और प्रतिबद्ध संपादकों की जगह प्रबंध सम्पादकों ने ले ली हो । सत्ता चारण मीडिया के लिए गोदी मीडिया जैसे शब्द गढ़े गए हों,और आम पाठक/श्रोताओं के बीच बौद्धिक स्वीकृति पा चुके हों । तब यह जानना खासा दिलचस्प होगा कि जब आपातकाल के सेंसरशिप के दौर में कमलेश्वर से कहा गया कि वे छपने से पूर्व पत्रिका’सारिका’ सरकारी अफसरों को दिखाएं तो उन्होंने विरोधस्वरूप पत्रिका के पन्नों को पूरी तरह काला कर अपना विरोध जताया था।

बाद में वे दूरदर्शन के महानिदेशक बनाए गए, लेकिन इसके पूर्व उनकी मुलाक़ात इंदिरा गांधी से हुई, इस मुलाकात के दौरान कमलेश्वर ने बहुत दृढ़ता से इंदिराजी को बताया था कि उन्होंने अपने सम्पादकीय और अन्य लेखों में आपातकाल का जमकर विरोध किया था। इंदिरा गांधी उनकी इस साफगोई से बहुत प्रभावित हुई थीं।

मनोहर श्याम जोशी ने अपने बारे में कभी कहा था, ‘जो भी विधा मुझे अपने पास बुलाएगी,मैं वहां चला जाऊंगा…’उनकी यह बात उनसे ज्यादा कमलेश्वर पर लागू होती है ।कहानी,उपन्यास,पत्रकारिता,स्तंभ लेखन, फिल्म पटकथा जैसी अनेक विधाओं में उन्होंने अपनी लेखन प्रतिभा का परिचय दिया।कमलेश्वर की कलम से निकलने वाले शब्दों का रंग स्याह न होकर पानी जैसा था,जिस भी विधा को वह छूती,उसी के रंग और लहजे में खुद को ढाल भी लेती.

कमलेश्वर बीसवीं सदी के सबसे सशक्त लेखकों में से एक हैं।वे स्वातंत्र्योत्तर भारतके सर्वाधिक क्रियाशील, विविधतापूर्ण और मेधावी हिंदी लेखक हैं।उनका लेखन केवल गंभीर साहित्य से ही जुड़ा नहीं रहा,बल्कि उनके लेखन के कई तरह के रंग देखने को मिलते हैं।वे अपनी पीढ़ी के अकेले ऐसे लेखक रहे हैं,जो अपने अंतिम समय तक लेखन को नहीं छोड़ते,या यूं कहें कि लेखन उनका पीछा नहीं छोड़ता.उनका उपन्यास ‘कितने पाकिस्तान’ हो या फिर भारतीय राजनीति का एक चेहरा दिखाती फ़िल्म ‘आंधी’, कमलेश्वर का काम एक मानक के तौर पर देखा जाता रहा है।उन्होंने सम्पादन क्षेत्र में भी एक प्रतिमान स्थापित किया।उन्होंने मुंबई में टीवी पत्रकारिता की,वो बेहद मायने रखती है।

कमलेश्वर (6जनवरी,1932-27जनवरी,2007)का जन्म उत्तरप्रदेश के मैनपुरी जिले में हुआ।उन्होंने 1954 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए. किया।जिस वक्त हिन्दी कहानी ऐय्यारी,आदर्श एवं पूर्वाग्रह की भूल-भुलैया में भटक रही थी,उस वक्त कमलेश्वर ने राजेंद्र यादव और मोहन राकेश के साथ मिलकर नई कहानी आंदोलन खड़ा किया और कहानी को भोगे गये जीवन के यथार्थ से जोड़ने एवं पूर्वाग्रह मुक्त करने का महान कार्य किया।उनकी कहानी आधुनिक मानव का एक छटपटाहट के साथ अत्याधुनिकता की परिधि में छलांग लगाने की तैयारी से उपजी विद्रूपताओं..कुरूपताओं की कहानी है।उनकी कहानी सीधे सपाट शब्दों में मनुष्य की ग्रंथियों को परत दर परत खोलती है।

अपनी कहानियों में कमलेश्वर बहुत सहज दिखते हैं.आम लोगों के लिए उनकी भाषा में ही कहानी कह देने की कला ही वह वजह रही कि‘रजा निरबंसिया’के प्रकाशित होते ही पाठकों ने उसे हाथों-हाथ लिया.उनकी पहली कहानी 1948में प्रकाशित हो चुकी थी,परंतु’राजा निरबंसिया'(1957) से वे रातों-रात बड़े कथाकार बन गए।उपन्यासकार के रूप में ‘कितने पाकिस्तान’ने इन्हें सर्वाधिक ख्याति प्रदान की और इन्हें एक कालजयी साहित्यकार बना दिया।हिन्दी में यह प्रथम उपन्यास है,जिसके 2002से 2008 तक 11संस्करण छपे।कमलेश्वर ने अपने 75 साल के जीवन में 12उपन्यास,17कहानी संग्रह और क़रीब 100 फ़िल्मों की पटकथाएँ लिखीं।उनकी अनेक कहानियों का उर्दू में भी अनुवाद हुआ है।


कमलेश्वर की अंतिम अधूरी रचना ‘अंतिम सफर’ उपन्यास है,जिसे कमलेश्वर की पत्नी गायत्री कमलेश्वर के अनुरोध पर तेजपाल सिंह धामा ने पूरा किया और हिन्द पाकेट बुक्स ने उसे प्रकाशित किया और बेस्ट सेलर रहा।

नई कहानियों के अलावा ‘सारिका’,‘श्रीवर्षा’, ‘कथा यात्रा’,‘गंगा’ आदि पत्रिकाओं का सम्पादन तो किया ही ‘दैनिक भास्कर’ के राजस्थान संस्करणों के प्रधान सम्पादक भी रहे।इनमें भी खासकर नई कहानियां और सारिका का सम्पादन.कमलेश्वर ने जिस नए कहानी आन्दोलन का सूत्रपात किया,वह था ‘सारिका’पत्रिका द्वारा चलाया गया ‘समानांतर कहानी आन्दोलन’.सारिका ने ही पहली बार दलित लेखन को साहित्य जगत में जगह दी, इसमें भी मराठी के दलित लेखन को.यह समय की नब्ज पकड़ना था.

उपन्यास लेखन के साथ कमलेश्वर फिल्म पटकथा और संवाद लेखन का भी हिस्सा रहे.उनके उपन्यासों पर आधारित फिल्में–‘आंधी’(काली आंधी), ‘मौसम’(आगामी अतीत) और कहानी पर आधारित ‘फिर भी’(तलाश) इसके प्रमुख उदाहरण हैं.समय बीतने के साथ‘सारा आकाश’,‘रजनीगंधा’ और ‘छोटी सी बात’ जैसी सार्थक फिल्मों का श्रेय उनको जाता है।उनकी कोई भी और कैसी भी फिल्म बगैर किसी सामाजिक सन्देश के ख़त्म नहीं होती,और औरत वहां चाहे जिस रूप में भी आई हो,उसका एक उजला पक्ष उसमें कहीं न कहीं दबा दिख जाता है. ‘काली आँधी’पर गुलज़ार द्वारा निर्मित’ आँधी’ नाम से बनी फ़िल्म ने अनेक पुरस्कार जीते।

कमलेश्वर भारतीय दूरदर्शन के पहले स्क्रिप्ट लेखक के रूप में भी जाने जाते हैं।एक टीवी पत्रकार और इस माध्यम के लेखक के रूप में वे हर जगह अपनी विशिष्टता बनाए और बचाए रहते हैं, और अपनी वह जुदा पहचान भी…।1980-82 तक कमलेश्वर दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक भी रहे।‘परिक्रमा’और ‘बंद फाइलें’‘जलता सवाल’उनके द्वारा लिखित ऐसे कार्यक्रम थे जो टीवी पत्रकारिता के क्षेत्र में एक नया इतिहास लिखते हैं.’परिक्रमा’ ने लगातार सात साल तक दूरदर्शन पर अपना वर्चस्व बनाए रखा.यह अपने तरह की एक अकेली घटना थी.

धार्मिक और ऐतिहासिक धारावाहिकों के बाद यह अकेला धारवाहिक था, जिसका हिंदीभाषी प्रांतों की जनता बेसब्री से इंतजार करती थी.भारतीय दूरदर्शन श्रृंखलाओं के लिए दर्पण, चन्द्रकान्ता,बेताल पच्चीसी, विराट युग आदि लिखे।भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर आधारित पहली प्रामाणिक एवं इतिहासपरक जन- मंचीय मीडिया कथा ‘हिन्दुस्तां हमारा’ का भी लेखन किया।’कामगार विश्व’में उन्होंने ग़रीबों,मज़दूरों की पीड़ा-उनकी दुनिया को अपनी आवाज़ दी।लोकप्रिय टीवी सीरियल’चन्द्रकांता’के अलावा ‘एक कहानी’ जैसे धारावाहिकों की पटकथा लिखने वाले भी कमलेश्वर ही थे।

भारतीय कथाओं पर आधारित पहला साहित्यिक सीरियल’दर्पण’भी उन्होंने लिखा। दूरदर्शन पर साहित्यिक कार्यक्रम’पत्रिका’ की शुरुआत इन्हीं के द्वारा हुई तथा पहली टेलीफ़िल्म’पंद्रह अगस्त’ के निर्माण का श्रेय भी इन्हीं को जाता है।कश्मीर एवं अयोध्या आदि पर वृत्त चित्रों का लेखन-निर्देशन और निर्माण भी किया।

27जनवरी,2007को उनकी मृत्यु पर उनके सह-आंदोलनकर्मी और हिंदी साहित्यिक पत्रिका हंस के संपादक राजेंद्र यादव ने कहा-कमलेश्वर का जाना मेरे लिए हवा-पानी छिन जाने जैसा है।

सम्बन्धित पोस्ट

Stay Connected

0FansLike
0FollowersFollow
3,912FollowersFollow
0SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

error: Content is protected !!