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17 जनवरी को धूमधाम से मनाया जायेगा गुरु गोविंद सिंह जी महाराज का प्रकाशपर्व

गुरु महाराज ने समाज को दिया

धर्म का मार्ग ही सत्य का मार्ग है और सत्य की ही सदैव विजय होती है।

न किसी से डरो न किसी को डराओ का संदेश

।। अजय भाटिया।।
चोपन । सोनभद्र । आगामी 17 जनवरी, बुद्धवार को पूरे देश में खालसा पंथ के संस्थापक, सिखों के दसवें और अंतिम गुरु गुरु गोविंद सिंह जी महाराज का 357 वां प्रकाश पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा।इस निमित्त हर जगह गुरुद्वारों को सजाया संवारा जा रहा है । इसी कड़ी में चोपन की सिख संगत भी स्थानीय गुरुद्वारा को सजाने संवारने में पूरे मनोयोग से जुटी है।

नानकशाही कैलेंडर के अनुसार गुरु महाराज का जन्म वर्ष 1666 में पौष माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन ( 22/12/1666) को पटना ( बिहार) में महाराज गुरु तेगबहादुर एवं माता गूजरी के यहाँ हुआ था। आप का जन्म दिवस इस वर्ष 17 जनवरी 2024, बुद्धवार को है।

गुरु गोविंद सिंह जी के बचपन का नाम गोविंद राय था। आप अपने पिता नौवें गुरु गुरु तेगबहादुर जी के कश्मीरी पंडितों के धर्म की रक्षा हेतु 11 नवम्बर 1675 को चांदनी चौक दिल्ली में मुगल बादशाह औरंगजेब के हाथों अपना शीश कटवा कर बलिदान हो जाने के बाद गुरु गद्दी पर बैठे। आपको 29 मार्च 1976 को दसवां गुरु घोषित किया गया। आप की जन्मस्थली ही आज तखत श्री हरमंदिर जी पटना साहिब गुरुद्वारा के नाम से जानी जाती है जो सिखों की धार्मिक आस्था का महत्वपूर्ण केन्द्र है।
आप बचपन से ही सरल सहज भक्ति भाव वाले कर्मयोगी थे। आप की वाणी में मधुरता, सादगी- सौजन्यता और वैराग्य की भावना कूट कूट कर भरी थी।
आपने 1699 में वैशाखी के दिन धर्म की रक्षा के लिए खालसा पंथ की स्थापना की और पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब को गुरु रुप में प्रतिष्ठित किया।मुगल शासकों के अन्याय अत्याचार और पापों को खत्म करने एवं धर्म की रक्षा के लिए आपने मुगलों से 14 युद्व लडें और पूरे परिवार को धर्म की बेदी पर बलिदान कर दिया। आप सरबंस दानी, कलगीधर, दशामेश, बांजावाले और संत सिपाही आदि अनेकानेक नामों से जाने गये।
दशम ग्रंथ में उल्लेखित बचित्तर नाटक आपकी आत्मकथा को दर्शाता है। आपकी कृतियों का संकलन ही दशम ग्रंथ का मूल है। आप एक महान लेखक, मौलिक चिन्तक तथा संस्कृत सहित कई भाषाओं के ज्ञाता थे। 52 कवि और साहित्य मर्मज्ञ आपके दरबार में शोभायमान थे। आपने समाज को प्रेम सदाचार और भाईचारे का संदेश देते हुए कहा कि ” धर्म का मार्ग ही सत्य का मार्ग है और सत्य की सदैव विजय होती है”। न किसी से डरो और न किसी को डराओ का संदेश देते हुए आपने लिखा कि ” भै काहू को देत नहि, नहि भै मानत आन “। आपके चारों पुत्र अजीज सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह ने बाल्यकाल में ही सहर्ष धर्म की रक्षा हेतु अपना बलिदान दे दिया लेकिन अधर्म स्वीकार नहीं किया। 7 अक्टूबर 1708 में आपकी सांसारिक यात्रा 42 वर्ष की आयु में नादेड़( महाराष्ट्र) में पूरी हुई।

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