Wednesday, April 24, 2024
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सपा की मुसीबत बढ़ाएंगे आजम और शिवपाल , राजभर ने भी बनाया दबाव

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यूपी विधानसभा का मानसून सत्र शुरू हो चुका है. इस बार सदन में आजम और शिवपाल सपाइयों से दूरी बनाए रहे तो वहीं सुभासपा के विधायकों ने हंगामे में सपा विधायकों का साथ नहीं दिया.ऐसे में सपा की मुसीबतें बढ़ गई है.

माना जा रहा है कि अखिलेश के अहम के आगे पार्टी को नुकसान ही उठाना पड़ेगा. देखने वाली बात यह होगी कि आजम, शिवपाल और राजभर अपने पत्ते कब और कैसे खोलते हैं, क्योंकि इन नेताओं के अपने पत्ते खोलते ही प्रदेश की राजनीति में एक बड़ा तूफान आना तय है.

राजेन्द्र द्विवेदी /ब्रजेश पाठक की लखनऊ से खास रिपोर्ट

लखनऊ : उत्तर प्रदेश विधान सभा का मानसून सत्र आज हंगामे के साथ शुरू हुआ. राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान समाजवादी पार्टी के विधायक बराबर नारेबाजी करते रहे. यह बात और थी कि सहयोगी दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर और उनके विधायक इस विरोध और नारेबाजी में शामिल नहीं हुए.

वहीं सपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री मोहम्मद आजम खान शपथ ग्रहण करने तो विधान सभा पहुंचे, लेकिन सदन की कार्रवाई में हिस्सा नहीं लिया. सपा के टिकट पर ही जसवंतनगर विधानसभा सीट से जीतकर आए अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल सिंह यादव सदन में तो दिखे, लेकिन उन्होंने सपाइयों का समर्थन नहीं किया और न ही विरोध की तख्तियों को हाथ लगाया.


एक सप्ताह चलने वाला विधान सभा का बजट सत्र समाजवादी पार्टी के लिए मुसीबतें लेकर आया है. हाल ही में सीतापुर जेल से रिहा हुए पूर्व मंत्री आजम खान अपनी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव से नाराज हैं. यह बात और है कि आजम ने अखिलेश को लेकर कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है, लेकिन हर जगह अपनी चिरपरिचित शैली में नाराजगी जताने से भी नहीं चूक रहे हैं. सीतापुर जेल में आजम और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल यादव की मुलाकातों ने भी अखिलेश की मुसीबतें बढ़ाई है.

दरअसल आजम और शिवपाल दोनों ही सपा के दिग्गज नेता रह चुके हैं. दोनों ही नेताओं ने पार्टी के कई दौर देखे हैं. इस समय दोनों ही नेता सपा मुखिया अखिलेश यादव की उपेक्षा से बुरी तरह आहत हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि आजम और शिवपाल ने अपने सम्मान से समझौता न करने का फैसला किया है और अब वह ज्यादा समय सपा के साथ रहने वाले नहीं हैं.

एक बात और भी है. काफी समय से प्रदेश के अधिकांश मुस्लिम समुदाय का वोट समाजवादी पार्टी को ही मिलता रहा है. इसके बावजूद पिछले दिनों कई ऐसे अवसर आए जब सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव मुसलमानों के साथ खड़े दिखाई नहीं दिए. ऐसे में मुसलमानों को भी लगता है कि उन्हें अब सपा के बजाय कोई और रास्ता देखना चाहिए. जाहिर है कि आजम पार्टी के बड़े नेता होने के साथ ही मुस्लिम समुदाय में भी मजबूत पकड़ रखते हैं.

ऐसे में शिवपाल और आजम मिलकर जो भी फैसला लेंगे वह समाजवादी पार्टी के लिए बड़ा नुकसान पहुंचाने वाला होगा. यही कारण है कि आजम और शिवपाल अपनी नाराजगी बराबर जाहिर करते हैं. दोनों ही नेता सपा विधान मंडल दल की बैठक से भी दूर रहे. चूंकि आजम को जेल से रिहा हुए बहुत कम समय हुआ है, इसलिए माना जा रहा है कि वह अपने समर्थकों और शुभचिंतकों से मशविरा करने के बाद ही अपने पत्ते खोलेंगे.


वहीं शिवपाल यादव ने स्पष्ट कर दिया है कि अब सपा के विधायक जरूर हैं, किंतु सपा की नीतियों और उनके एजेंडे का समर्थन नहीं करेंगे. आज शिवपाल यादव विधानसभा में सपा सदस्यों के साथ ही बैठे थे, लेकिन उन्होंने सपा विधायकों के साथ तख्तियां लहराने और विरोध में नारे लगाने में सपा नेताओं का साथ नहीं दिया.

सपा की तीसरी मुसीबत हैं सुभासपा के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर. ओम प्रकाश राजभर ने आज जिस तरह अखिलेश को ठंडे कमरे से निकलकर सियासत करने की सलाह दी है और विधान सभा में विरोध को गलत बताया है, उससे साफ है कि राजभर भी लंबे समय तक सपा के साथ रहने वाले नहीं हैं.

निश्चित रूप से राजभर ने या तो कोई नया ठिकाना तलाश लिया है अथवा कहीं न कहीं उनकी बात चल रही है. सभी जानते हैं कि 2024 में लोक सभा के चुनाव होने हैं. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी राजभर को फिर से अपने साथ गठबंधन में ले सकती है.

इससे राजभर को सत्ता का सुख भोगने का अवसर मिलेगा, तो वहीं भाजपा को 2024 की जीत को आसान बनाने का मौका मिलेगा. यह भी हो सकता है कि राजभर आजम और शिवपाल के संपर्क में हों और भविष्य में उनके साथ तीसरे मोर्चे की राजनीति का मन बना रहे हों.

यह सभी परिस्थितियां सपा के लिए मुश्किल भरी हैं. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव किसी भी सूरत में शिवपाल के मामले में झुकने को तैयार नहीं हैं. आजम खान की नाराजगी दूर करने के लिए भी अभी तक उनकी ओर से कोई पहल नहीं की गई है.

ऐसे में माना जा रहा है कि अखिलेश के अहम के आगे पार्टी को नुकसान ही उठाना पड़ेगा. देखने वाली बात यह होगी कि आजम, शिवपाल और राजभर अपने पत्ते कब और कैसे खोलते हैं, क्योंकि इन नेताओं के अपने पत्ते खोलते ही प्रदेश की राजनीति में एक बड़ा तूफान आना तय है.

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