Saturday, April 20, 2024
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मिलार्ड शारदा मंदिर के पीछे हुए खदान हादसे में मारे गए श्रमिकों के न्याय का क्या हुआ,जनता को अब भी है इंतजार

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(समर सैम)
सोनभद्र। 27 फरवरी 2012 को बिल्ली मारकुंडी खनन बेल्ट में शारदा मंदिर के पीछे एक खदान की पहाड़ी का आधी रात के वक्त टीला धंसने से एक दर्जन मज़दूर असमय काल के गाल में समा गए थे। मजिस्ट्रेटी जांच के बाद शासन ने दस मज़दूरों के अवैध खनन के चलते टीला धंसने से हुई मौत की बात को उस वक्त स्वीकार किया था। आज तक सिस्टम के हाथों हलाक़ किये गए इन अभागे मज़दूरों के परिजनों को किसी प्रकार का मुआवज़ा भी नहीं दिया गया सरकार द्वारा और न ही इन अभागों के साथ न्याययोचित तरीक़े से इंसाफ ही किया गया।एफआईआर नम्बर275सन2012 थाना ओबरा जनपद सोनभद्र की जांच मामले में यह तथ्य सामने आया था कि खनन माफियाओं द्वारा वन, राजस्व एवं एससीएसटी भूमि पर नाजायज़ कब्जा करके शारदा मंदिर के पीछे बिल्ली स्टेशन रोड, बिल्ली मारकुंडी में बोल्डर, पत्थर का अवैध खनन एवं परिवहन का काला कारोबार संचालित किया गया था। इस बीच अनियंत्रित एवं अवैध खनन के दौरान पहाड़ की कोख में जमकर विस्फोटक भरा गया। जिसके कारण उक्त भयानक हादसा पेश आया, जिसमें दर्दनाक तरीके से एक दर्जन के करीब मज़दूरों की जान चली गई थी। 2012 के उक्त खनन हादसे के बाद तत्कालीन सरकारी अमला ने कुम्भकर्णी नींद से जागकर आनन फानन में उक्त एफआईआर दर्ज किया था। इस हादसे में एक दर्जन से अधिक लोगों के विरुद्ध गंभीर धाराओं में आरोप पत्र धारा 304,379,409,286 आईपीसी व3/57/70 उत्तर प्रदेश उप खनिज परिहार नियमावली व4/5 विस्फोटक अधिनियम व 4/21 खान एवं खनिज अधिनियम 1957 न्यायालय में प्रेषित किया गया था। बावजूद इसके अवैध खनन, परिवहन एवं अभियुक्तगण के अवैध कृत्य पर आज तक कोई अंकुश नहीं लग सका।

इस मुकदमे के अनुसार अवैध खनन के मास्टरमाइंड आरोपियों का अलग अलग तरीके व अलग अलग नामों से खनन परिवहन का काला कारोबार आज तक तेजी से फलफूल रहा है। सपा एवं बसपा शासन काल की उपज ये व्हाइट कॉलर खनन कारोबारियों का आज भी काला साम्राज्य खनन बेल्ट में बहुत तेजी से बढ़ता जा रहा है। बाद फर्क पड़ा है तो इतना कि चोला इनका बदल गया है। सपा के ठप्पा को छुपाने के लिए भगवा गमछा बांध लिया है उक्त खनन सिंडिकेट ने। परन्तु इनकी निष्ठा आज भी पूर्वर्ती सरकारों के साथ ही है। आज भी इस हादसे में मारे गए आदिवासी मज़दूरों का परिवार न्याय की उम्मीद में आस लगाये बैठा है।
मिलार्ड इस हादसे के मुख्य आरोपी आज भी व्हाइट कॉलर के साथ धड़ल्ले से अवैध खनन के खेल में संलिप्त हैं। मजिस्ट्रेटियल जांचोपरांत भी अपराधियों का सिस्टम बाल भी बांका नहीं कर सकी जबकि सुनियोजित तरीके से मारे गए मज़लूम मज़दूरों का पूरा चमन ही वीरान हो गया।जांच की रस्म अदायगी के बाद भी इस उजड़े चमन में आज भी वीरानी छाई हुई है। इस हादसे के मास्टरमाइंड आज भी कानून के पकड़ से दूर खुलेआम अवैध खनन का खेल बदस्तूर खेल रहे हैं। इस घटना की जांच मुख्य विकास अधिकारी महेंद्र कुमार सिंह को मिली थी। जिन्होंने ढाई साल से अधिक समय लगा दिया जांच कम्पलीट कर शासन प्रशासन को सौंपने में। मजदूरों का कत्लगाह बन चुका सोनभद्र का खनन बेल्ट इसी नाम से ज़माने भर में रुस्वा है। ऐसा वहां के चिंता जनक हालात के करण हुआ है।डीजीएमएस वाराणसी परिक्षेत्र प्रसाद का कहना है बेतरतीब अवैध खनन के कारण सोनभद्र की पत्थर खदानें सही माने में खनन लायक नहीं है। डेंजर जोन में पहुंच चुकी, सभी पत्थर खादानों को बंद कर देना चाहिए। इसके बाद भी पत्थर खादानों में उत्खनन बस्तुर जारी है। साथ ही मज़दूरों की दर्दनाक मौतों का सिलसिला भी जारी है। मज़दूरों की मौतों पर शासन प्रशासन की निर्लज्जता देखकर ऐसा कहीं से नहीं लगता कि आये दिन मरने वाले अभागे मज़दूरों की गिनती इंसानों में होती हो। ऐसी विभस्त मौतें तो जानवरों की भी नहीं होती मिलार्ड। वादी ए कैमूर में आबाद इस खनन बेल्ट में हर दिन औसतन दो मज़दूर सिस्टम के हाथों क्रूर काल के गाल में समा रहे हैं। इस पर भी सिस्टम की कुम्भकर्णी नींद नहीं टूट रही है। जांच के नाम पर लीपापोती कर खनन सिंडीकेट को बचाने का ही काम किया जाता है। अब तक जो भी हादसों के लिए जांच टीम गठित हुई, उससे शायद ही किसी हादसों का शिकार मज़लूम मज़दूरों के परिजनों का भला हुआ हो। परन्तु शायद ही कभी जांच में हादसों का शिकार मज़दूरों के हत्यारे बेनक़ाब हुए हों। इसके पीछे पुलिस प्रशासन समेत जिला प्रशासन की वे कर गुज़ारियां हैं, जिसके कारण मज़दूरों की संघठित हत्या लोगों को मौत नज़र आती है।

खनन कर्ता का चोला पहने सफेदपोश संगठित हत्यारों ने जिला प्रशासन के सहयोग से खनन क्षेत्र में ऐसा जाल बुना है जो किसी मज़दूर की हत्या को हादसा साबित करने का जुगाड़ ढूंढ ही लेता है। वहीं इसके साथ ही उनकी करतूतों का राजफाश भी नहीं होता। हालांकि इसके लिए करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाया जाता है। इनसब बातों में कितनी सच्चाई है, ये सिस्टम को भली भांति पता है। कैमूर वन्य बेल्ट के विभिन्न इलाकों में मौत का कुंड बन चुकी है पत्थर की अवैध खदानें। इस पत्थर खादानों में संगठित अपराध का ऐसा खेल दुनिया में विरलय ही देखने को मिलेगा। कभी पत्थर की अवैध खादानों में टीला धंसने, ट्रेक्टर व टिपर पलटने, बेतरतीब ब्लास्टिंग, कम्प्रेसर चलवाकर, कभी रहस्यमय परिस्थितियों का हवाला देकर, तो कभी पत्थर की खादानों में रहस्यमय परिस्थितियों में डूबकर मरने वालों की संख्या भी पुलिस एवं प्रशासन की कुम्भकर्णी नींद ख़त्म नहीं कर पाती। समय समय पर सूबे की सत्ता पर काबिज़ पार्टी के माननीयों की महेरबानी से खनन माफियाओं द्वारा सोनभद्र में बस्तुर अवैध खनन का खेल निरन्तर बेरोकटोक जारी है। 2012 में शारदा मंदिर के पीछे पत्थर खदान में हुए हादसे की मजिस्ट्रेटियल जांच पूरी होने के बाद भी आज तक मारे गए मज़दूरों के परिजनों को इंसाफ नहीं मिल पाया। और न ही मज़दूरों के हत्यारों को सलाख़ों के पीछे कैद किया गया। वह सफेदपोश बने आज भी अवैध खनन का खेल बस्तुर खेल रहे हैं। इस पर एक शेर बस बात ख़त्म, पीड़ित किसके हाथों में अपना लहू तलाशे। तमाम शहर ने पहन रखे हैं दस्ताने।

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