Tuesday, April 16, 2024
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बारूद की ढेर पर बसे शहर के लाखों की आबादी क्यों जी रही हैं खौफ की जिन्दगी……?

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विंध्यलीडर के सम्पादक राजेन्द्र द्विवेदी की खास रिपोर्ट

‘हम तो कोयला खाते हैं, कोयला पीते हैं और कोयले में जीते हैं. विकास के इस चकाचौंध में इलाके के लोगों की जिंदगी में आज भी अंधेरा है.’

उत्तर प्रदेश के रिहंद जलाशय से निकली हजारों कुंतल मछलीयों के कारण कोलकाता के रहवासियों को गंभीर बीमारियों से दो चार होना पड़ रहा है .

सिंगरौली जोन में 11 थर्मल पावर प्लांट, 16 कोल माइन्स, 10 केमिकल कारखाने, 8 एक्सप्लोसिव, 309 क्रशर प्लांट और स्टील, सीमेंट व एल्युमिनियम के एक-एक उद्योग हैं.

सोनभद्र । उत्तर प्रदेश के सोनभद्र और मध्य प्रदेश के जिला वैढन की उर्जाधानी सिंगरौली जो विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित क्षेत्रों में से एक सिंगरौली जोन में रहने वाल लोगों का जीवन का एक एक पल मौत के पास गिरवी हैं , जहां हवा में जहर घुला हुआ है. हर सांस सिंगरौली जोन में रहने वालों पर भारी है. काचन नदी के पानी में बर्फ जैसा सफेद लेकिन जहरीला फोम भरा हुआ है.बारूद की ढेर पर स्थापित सिंगरौली जोन के लोगों में एक अनजान और अनदेखा खौफ उनकी आंखों में साफ दिखाई देता है. 

5 जुलाई 2009 की वो काली रात हर किसी के जहन में याद है, इस दिन बारूद कंपनी में एक तेज धमाके के साथ विस्फोटक हुआ था, जिसमें 30 लोगों की मौत और 100 लोग घायल हो गए थे तो वहीं दूसरी ओर यहां के लोग कोयला खाते हैं, पीते हैं और इसी में जीते हैं. जिस वजह से यहां के लोग कई गंभीर बीमारियों की चपेट में हैं. मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, स्वाइन फ्लू जैसी बीमारियां से जिंदगी की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. लेकिन दमघोंटू हवा इस शहर के लोगों के लिए सबसे बड़ी मुसीबत बन गई है.

ऊर्जांचल का ‘काला हीरा’

मार्कण्डेय ऋषि के गुप्त काशी के नाम से जाना जाने वाला सोनभद्र उत्तर प्रदेश का और श्रृंगी मुनि की तपोभूमि सिंगरौली मध्य प्रदेश का वह जिला है जहां देश में सबसे अधिक मात्रा में बिजली व कोयले का उत्पादन किया जाता है. काले हीरे के साथ यहां की जमीं सोने भी उगलने वाली है. यानी जल्द ही यहां सोने का उत्पादन भी किया जानें लगेगा . दोनो प्रदेश को सबसे अधिक राजस्व भी इन्ही जिले से मिलता है, लेकिन विडम्बना यह है कि यहां के लोग पलायन करने को मजबूर हो रहें है. यहां की फिजाओं में जहर घुल गया है, जिससे लोगों को सांस लेने में भी दिक्कत है. हवा, पानी सब जहरीला है. यहां के लोगों की जिंदगी कोयले की काली राख से काली हो गई है. यहां के स्थानीय निवासी बताते हैं, ‘हम तो कोयला खाते हैं, कोयला पीते हैं और कोयले में जीते हैं. विकास के इस चकाचौंध में हम लोगों की जिंदगी में आज भी अंधेरा है.’

हवा में भी घुला कोयला

वैसे तो सिंगरौली का नाम बिजली व कोयले उत्पादन के लिए देश विदेश में जाना जाता है, लेकिन प्रदूषण के मामले में भी सिंगरौली जिला का नाम देश के टॉप टेन सूची में शामिल है. यहां की सड़कों पर कोयले की काली धूल दिखाई देती है. लोगों के घरों में कोयले की परत जम जाती है. सड़कों पर कोयले से लोड वाहन दौड़ते हैं. कोयले की काली धूल का गुबार भी हवा में घुल कर प्राणवायु को जहरीला बना दिया. यहां के लोग जब सांस लेते हैं तो उनके नाक से भी कोयले के कण दिखाई देते हैं. यानी सांसों में भी कोयले के कण हवा के साथ मिल गए हैं. इस इलाके के लोग प्रदूषण का दंश झेलने को मजबूर हैं.

दुनिया के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल

सिंगरौली क्षेत्र में सम्मिलित दोनो , तीनों प्रान्तो की सड़कों पर आपको हमेशा धुंध जैसी दिखाई देगी. यहां के निवासियों के आंखों में जलन और शरीर में एक अजीब सी बेचैनी तथा गले में घुटन महसूस किए जाने की शिकायत आम हैं . यहां शाम जल्दी ढल जाती है. पेड़ों के पत्ते काले दिखते हैं. उन पर जमा राख आपको आसानी से दिख जाएगी. स्थानीय लोगों के मुताबिक इस राख से उनकी जिंदगी तो काली हुई है. बागों में फल आना और फसल उत्पादन तक गिर गया है. विश्व भर के प्रदूषित क्षेत्रों का डाटा तैयार करने वाली अमेरिका की संस्था ब्लैक स्मिथ ने सिंगरौली को दुनिया के 10 सर्वाधिक प्रदूषित क्षेत्रों में शुमार किया. वहीं केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण एजेंसी ने भी इसे देश के 22 अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्रों की सूची में रखा है. धरती के 6 सर्वाधिक प्रदूषण चिंताओं में शुमार पारा यहां की हवाओं में घुल गया है और घुल रहा है. इसके लिए भी उड़न राख को जिम्मेदार बताया गया है.

रोजाना होते हैं तेज धमाके

शहर में प्रवेश करते ही आपका स्वागत तेज आवाज एवं कंपन के साथ होगा. आप ऐसा महसूस करेंगे की कहीं बड़ा ब्लास्ट हुआ है. धमाके की तेज आवाज सुनाई देगी. यदि आप पहली बार यहां आए हुए हैं तो यह तेज आवाज सुनकर डर जाएंगे. लेकिन सिंगरौली में रहने वाले लोगों की आदत में हो गया है. वे प्रतिदिन इन धमाकों को झेल रहे हैं।हैवी ब्लास्टिंग की तेज आवाज पूरे शहर में गूंजती है. बताया जाता है कि कोल माइंस कंपनियां मानकों को दरकिनार कर अनियंत्रित हैवी ब्लास्टिंग करती हैं, जिससे विस्थापित व आसपास के रहवासी आहत हैं. उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ , मध्य प्रदेश के सिंगरौली क्षेत्र के दर्जनों खदानों में ब्लास्टिंग की जाती है जिसकी धमक कई किलोमीटर दूर तक होती है. इससे प्रभावित लोगों में आक्रोश है. प्रभावित लोगों अक्सर प्रशासन से शिकायत करते रहते हैं. खदान में किए जा रहे हैवी ब्लास्टिंग से समूचा क्षेत्र कांप उठता है. ब्लास्टिंग इतने व्यापक स्तर पर होती है कि पूरा इलाका धधक उठता है. तेज धमाके की गूंज से इलाके के घरों में भारी दरारें आ गईं हैं. इससे पहले भी कई मकान गिर चुके हैं. 

बच्चों पर पॉल्यूशन का सबसे अधिक खतरा

सोनभद्र के प्रख्यात दंत चिकित्सक डॉ. जे एस चतुर्वेदी के मुताबिक पानी टीडीएस और फ्लोराइड के चलते दांतों और हडि्डयों पर असर पड़ता है. दांत बदरंग हो जाते हैं. हडि्डयां टूटने लगती हैं. शरीर में हवा, पानी या खाद्य के माध्यम से यदि पारा जा रहा है, तो ये एक तरह से स्लो पॉइजन है. लंग्स को ये डैमेज करता है. न्यूरोमस्कुलर संबंधी समस्याएं आती हैं. एयर पॉल्यूशन की वजह से सांस संबंधी बीमारी, स्किन डिसीस और TB आदि का खतरा बढ़ जाता है. महिलाओं में बांझपन हो सकता है.

सिंगरौली क्षेत्र में प्रदूषण रोकने NGT के दिए गए आदेशों का पालन न होने के संबंध में सोनभद्र के जिलाधिकारी चन्द्र विजय सिंह ने विंध्यलीडर को बताया कि बीते दिनों प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और कोल, ताप सहित अन्य कंपनियों के अधिकारियों की एक बैठक ली गई थी. इसमें NGT की ओर से जारी निर्देशों के पालन करने के लिए आदेश दिए हैं. मॉनीटरिंग सिस्टम बढ़ाने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को कहा है. सिंगरौली में प्रदूषण कंट्रोल करना हमारे लिए भी एक चुनौती का काम है. फिर भी हम लगातार इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं. पुलिस और खनिज विभाग कार्रवाई भी कर रहे हैं. धूल रोकने के लिए रोड पर पानी का छिड़काव भी कराया जा रहा है.

चिलकाटाड़ के हीरालाल के मुताबिक उनके 5 वर्षीय बेटे को अस्थमा है. उसे सांस लेने में परेशानी है. डॉक्टर को दिखाया तो बोले कि कोयले से होने वाले वायु प्रदूषण के चलते ऐसा हुआ है. इलाके में रहने वाले प्रेमप्रकाश के 14 वर्षीय पुत्र भी गंभीर रूप से अस्थमा का मरीज हैं जिससे कई बार उसकी सांस अटक जाती है। उसका बीएचयू में इलाज चल रहा है. चरगोड़ा गांव के 65 वर्षीय राजनारायण फ्लोरोसिस से प्रभावित है. 15 साल पहले दोनों पैर टेढ़े होने लगे। अब स्थिति यह है कि चलना मुश्किल हो गया है. कुशमाहा के वनवासी सेवा आश्रम से जुड़े पत्रकार जगत नारायण विश्वकर्मा ने यहां के प्रदूषण का मामला NGT से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में मामला उठाया. फ्लोराइड वाले पानी से न सिर्फ उनके पैर की हडि्डयां गल गईं जबकि आदि के सैकड़ों की तादात में ग्रामीण धनुषाकार हड्डियों के विकार से जूझ रहे हैं. किडनी के पास कैंसर भी हो गया है.

टीबी से हर साल हो रही हैं सैकड़ों लोगों की मौत

सोनभद्र के बभनी विकास खंड के शक्तिनगर , अनपरा , सहित आस पास के क्षेत्र और छत्तीसगढ़ के बैढ़न ब्लॉक के विंध्यनगर, नवजीवन विहार, देवसर ब्लॉक के कुर्सा और सरौंधा गांव और चितरंगी ब्लॉक के कोरसर, बर्दी व तमई गांव में टीबी के मरीज सबसे अधिक हैं. करीब 10 हजार की आबादी पर यहां हर साल 40 से 50 लोगों की मौत हो रही है. देश में 2020 में हर एक लाख लोगों पर 32 मौतें हुई हैं. जबकि 2021 में इन मौतों का आंकड़ा 80के पार कर गया था । प्रसिद्ध चेस्ट विशेषज्ञ डॉ एस के सिंह ने विंध्यलीडर को बताया कि सिंगरौली क्षेत्र में प्रदूषण जनित बीमारियों जैसे सर्दी-खांसी, फेफड़ों और सांस से संबंधी, ब्लड की सप्लाई बाधित होना, दमा आदि के ज्यादा मरीज हैं. 2020 में 805, 2021 में 976 और 2022 में औसतन 1128 टीबी के मरीज सामने आए हैं. देश में यह आंकड़ा प्रति लाख लोगों पर 188 है, प्रदेश में हर 10 लाख पर औसतन 857 टीबी के मरीज सामने आए हैं. टीबी की मॉनिटरिंग सरकार करती है, इसलिए इसके आंकड़े उपलब्ध भी हैं हालांकि इलाके की जनता तीन प्रान्तो में रहती और सरकारों में आपस में समन्वय स्थापित न होने से ये आंकड़े वास्तविकता से काफ़ी परे हैं वरना खांसी, अपंगता और कई बीमारियों को लेकर आज तक सरकार ने कोई सर्वे ही नहीं किया.

डेंजर जोन में यह इलाका 

सिंगरौली क्षेत्र में जहां पूरे समय धूल और धुएं से कोहरा छाया रहता है. यहां का एयर क्वालिटी इंडेक्स 900 से 1200 के बीच रहता है. जो मानक स्तर से 20 से 25 गुना ज्यादा है. एनसीएल के सूर्य किरण गेट पर ये औसतन 500 के ऊपर रहता है. यह भी लाइव अपडेट नहीं होता. यहां प्रदूषण के आंकड़े छिपाने के लिए एक दिन बाद मैन्युअल डाटा अपडेट किया जाता है. जबकि दिल्ली में जब पराली जलाने का समय होता है, तब AQI अधिकतम 400 तक पहुंचता है. इसका कारण कोयला, उसकी राख और कोयला ढोने वाले हजारों वाहनों का धुआं है.

डीजल से चलने वाले रोज हजारों वाहन लगभग एक से दो लाख चक्कर लगाते हैं. ओवरलोडिंग के चलते ईंधन की खपत बढ़ती है, जो धुएं में बदल जाती है. कोयले में जहरीला पारा होता है। पावर प्लांटों में कोयला जलाने से वातावरण में मिलकर लोगों के शरीर में प्रवेश करता है. 11 थर्मल पावर प्लांटों से बड़ी मात्रा में पारा निकलता है. 

NGT कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक सिंगरौली की जमीन भी दूषित हो चुकी है. मिट्‌टी की जांच में पारे की मात्रा अधिक मिली है. यहां प्रति किलो मिट्‌टी में 10.009 मिलीग्राम पारा मिला है, जबकि मानक 6.6 होना है. खाद्यान्न के सैंपल की जांच में भी इसकी पुष्टि हो चुकी है. इसी जमीन से पैदा होने वाली सब्जियां और अनाज खाकर लोग बीमारियों की चपेट में रहे हैं. रिहंद सहित उसकी सहायक नदियों और नालों का पानी पारायुक्त होने से मछलियां भी जहरीली हो रही हैं. प्रति किलो मछली में 0.505 मिलीग्राम पारा मिला है, जो 0.25 मिलीग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए. इतना ही नहीं एक रिपोर्ट के अनुसार दिन प्रतिदिन रिहंद जलाशय से हजारों कुंतल मछलीयों के कारण कोलकाता के रहवासियों को गंभीर बीमारियों से दो चार होना पड़ रहा है .

एनसीएल सिंगरौली के कोयला खदान के इलाके को करीब से दो दशकों से अधिक समय तक देखने का अनुभव रखने वाले वैढन के निवासी आशीष द्विवेदी बताते है कि खदानो में हैवी ब्लास्टिंग की वजह से लोगों के घरों की दीवारों में दरारें आ गई हैं. जब ब्लास्टिंग होती है तो पूरा इलाका सहम जाता है. इसी डर में यहां के लोगों की जिंदगी में भी उजाले के इस शहर में अंधेरा है.

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