अंगना मोरे बदली का है साया रे
झूम के बरसा पानी सावन आया रे
प्यासे थे बगिया,झरने,नदिया,सागर
घाट पडे थे माटी के सूखे गागर
मेघ बदलने चला है सूनी काया रे
झूम के बरसा पानी सावन आया रे
छम-छम पायल बूंदो की बजती जाये
धरती धानी आंचल ओढे इतराये
ओट से झांके सूरज भी शरमाया रे
झूम के बरसा पानी सावन आया रे
बिजुरी चमके ओरी से टपका पानी
कहाँ से आयी इठलाती बरखा रानी
किस बिरहन ने राग मल्हारी गाया रे
झूम के बरसा पानी सावन आया रे
राज़ छुपाये रखा है अब तो खोलो
किसका नाम लिये फिरते हो ये बोलो
काले मेघा किसने तुझे रुलाया रे
झूम के बरसा पानी सावन आया रे
झूला डाले गोरी पेंग लगाती है
आम की डारी गीत कोयलिया गाती है
पुरवईया ने जी भर के तरसाया रे
झूम के बरसा पानी सावन आया रे
“हसन सोनभद्री“
(शायर एवं लेखक)
दिल्ली
9810827858