—चुनावी चर्चाओं की मानें तो किसी पार्टी का टिकट बन्द कमरे में मिल रहा तो किसी का चाय पान की दुकानों पर
–टिकट के लिए दावेदार लगा रहे स्वंयम्भू टाइप के नेताओं व उनके चेले चपाटियों के चक्कर
—शाम ढलते ही चट्टी चौराहे पर लकदक पोशाकों में टिकट बेचने वालों की सजने लगती है दुकानें
सोनभद्र। नगर पंचायत व नगर पालिकाओं के चुनावों की रणभेरी बज चुकी है और जैसे जैसे चुनाव नजदीक आता जा रहा है वैसे वैसे सभी प्रमुख पार्टियों के स्वंयम्भू टाइप के नेताओं के यहाँ चुनाव लड़ने के इच्छूक नेताओं की भीड़ जुटनी शुरू हो चुकी है।भिन्न भिन्न पार्टियों के चिन्हित रंगों की लकदक विभिन्न पोशाकों में सजे नेताओं व उनकी खास मंडली वाले उनके आस पास रहने वाले स्वंयम्भू टाइप के उनके चेले चपाटियों से चट्टी चौराहे दिन भर गुलजार बने रह रहे हैं।
कोई इस दुकान पर टिकट बेच रहा तो कोई उस दुकान पर।दिन भर चाय पान की दुकान पर केवल चुनाव पर ही भाषण चल रहा।कोई इस प्रत्याशी पर दांव लगा रहा तो कोई उस प्रत्याशी पर।कुछ तो ऐसे भी मिल जाएंगे जो इस चौराहे पर फला की जीत के कसीदे पढ़ रहे तो चौराहा बदलते ही उनका प्रत्याशी भी बदल जाता है।अब ऐसे में जनता कन्फ्यूजन में पड़ जाती है कि उक्त चौराहावीर नेता आखिर किस प्रत्याशी के पक्ष में है ?
अब भोली भाली जनता को क्या पता कि उक्त चौराहावीर टाइप के नेता किसी प्रत्याशी के पक्ष में नहीं अपितु वह केवल अपनी गोटी फिट करने में लगा है।फिलहाल इन गोटियांफिट नेताओं की चट्टी चौराहों पर बढ़ती भीड़ ने प्रत्याशियों के पसीने छुड़ा दिए हैं।चुनाव लड़ने के इच्छूक नेताओं ने चट्टी चौराहे पर हो रहे बेतहाशा चाय पान के खर्च से घबराकर चौराहों पर लगने वाली भीड़ से किनारा कसने की जुगत भिड़ा रहे हैं।
पर चुनाव के रण में कूदने के इच्छूक नेताओं के मन मे दुविधा पैदा हो जा रही है कि यदि चौराहे पर जाते हैं तो इन चौराहावीर पहलवानों की भीड़ से कैसे बचा जा सकता है और बिना चौराहे पर गए अपने विरोधियों के माहौल के बारे में पता कैसे चलेगा ? फिलहाल इन्हीं सब हालातों व माहौल के बीच चुनाव अपने परिणाम की तरफ बढ़ रहा है और देखना दिलचस्प होगा कि इन सभी लोकतांत्रिक चुनोतियों से पार पाता हुआ कौन विजयी होता है ?