Sunday, May 19, 2024
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क्या आप भी बनना चाहते हैं मजिस्ट्रेट तो तत्काल करें आवेदन विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट सोनभद्र के पद हेतु

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चयन हेतु निर्धारित अर्हता व अन्य शर्तों एवं विवरण हेतु माननीय उच्च तथा जनपद न्यायालय के वेबसाइट एंव न्यायालय सोनभद्र के वेबसाट का अवलोकन किया जा सकता है। आवेदन करने की अंतिम तिथि 05.09.2023 है।

सोनभद्र । Sonbhdra News । क्या आप भी बनना चाहते हैं मजिस्ट्रेट यदि हां तो विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट सोनभद्र के पद पर भर्ती हेतु करे आवेदन। गौरतलब है कि यमुना शंकर पाण्डेय, विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट, सोनभद्र का कार्यकाल दिनांक 01.09.2023 को पूर्ण हो रहा है। उक्त पद पर नियुक्ति हेतु उच्च न्यायालय इलाहाबाद के पत्र संख्या- 9316/2023/SJM/AdminG-1 दिनांकित 15.07.2023 द्वारा आवेदन पद आमंत्रित किये गये है। चयन हेतु निर्धारित अर्हता व अन्य शर्तों एवं विवरण हेतु माननीय उच्च तथा जनपद न्यायालय के वेबसाइट एंव न्यायालय सोनभद्र के वेबसाट का अवलोकन किया जा सकता है। आवेदन करने की अंतिम तिथि 05.09.2023 है।

जज और मजिस्ट्रेट में क्या है अंतर ? जानें दोनों के अधिकार और कार्य

विश्‍व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में न्यायपालिका संविधान का अंग है। यह नागरिकों की रक्षा और सुरक्षा करने के साथ उनके अधिकारों की भी रक्षा करता है। यह अंतिम प्राधिकरण होता है, जहां पर नागरिक कानूनी मामलों में संवैधानिक व्यवस्था और लॉक के तहत न्‍याय पा सकते हैं। यह नागरिकों, राज्यों और अन्य पार्टियों के बीच विवादों पर कानून लागू करने और निर्णय लेने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सुप्रीम कोर्ट हो या फिर जिला स्‍तर का न्यायालय, ये देश में कानून व्‍यवस्‍था को बनाए रखने के लिए कार्य करते हैं।

इस न्‍यायिक व्‍यवस्‍था में जिला स्‍तर पर न्‍याय देने का कार्य जज और मजिस्ट्रेट करते हैं। कई लोग इन दोनों को एक ही मानते हैं। हालांकि, एक जज और मजिस्ट्रेट के अधिकार एवं कार्य में काफी अंतर होता है। यहां पर हम आपको इन दोनों के कार्य और अधिकार के बारे में पूरी जानकारी देंगे।

जज और मजिस्ट्रेट की चयन प्रक्रिया

संविधान के अनुसार भारतीय न्याय व्यवस्था में थ्री लेयर कोर्ट सिस्टम है। सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट और लोअर कोर्ट। जिला जज बनने के लिये आपके पास लॉ में स्नातक की डिग्री होनी आवश्यक है। इसके साथ ही आपके पास वकालत करने का सात वर्ष का अनुभव होना जरूरी है। जिसके बाद आप परीक्षा में बैठ सकते हैं। भारत के प्रत्येक राज्य में राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा न्यायिक सेवा परीक्षा, जिला या अधीनस्थ न्यायालय की परीक्षा का आयोजन किया जाता है। यह परीक्षा राज्य के अनुसार अलग- अलग हो सकती है। जज की नियुक्ति उच्च न्यायालय द्वारा की जाती है। वहीं कोई भी छात्र लॉ की डिग्री लेने के बाद सीधे PCS-J यानी प्रोविंशियल सिविल सर्विस (ज्यूडिशियल) के एग्जाम में पास होकर मजिस्ट्रेट बन सकता है। एग्जाम देकर मजिस्ट्रेट बनने वाले कुछ सालों तक सेकेंड क्लास मजिस्ट्रेट रहते हैं, फिर प्रमोट हो जाते हैं।

कोर्ट में दो तरह के मामले आते हैं

मजिस्ट्रेट और जज में अंतर जानने से पहले यज जान लें कि, न्‍याय के लिए दो तरह के मामले होतें हैं, सिविल मामले और क्रिमिनल मामले। सिविल मामले ऐसे मामले होते हैं, जिसमें अधिकार और क्षतिपूर्ति की मांग की जाती है। वहीं दूसरे होते हैं क्रिमिनल मामले। हिन्दी में इन्हें दांडिक मामले या फौजदारी मामले भी कह सकते हैं। ये ऐसे मामले होते हैं जिनमें दंड की मांग की जाती है।

जानें मजिस्ट्रेट और जज में अंतर

मजिस्ट्रेट और जज में रैंक और अधिकार का अंतर होता है। एक मजिस्ट्रेट फांसी या उम्रकैद की सजा नहीं दे सकता। मजिस्ट्रेट के लेवल में भी कई स्तर होते हैं। इनमें जो सबसे ऊपर का पद होता है, वो होता है सीजेएम यानी चीफ ज्यूडिशियल मैजिस्ट्रेट। महानगरों में इसे चीफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट भी कहते हैं। एक जिले में एक सीजेएम होता है। जिला मजिस्ट्रेट का मुख्य कार्य सामान्य प्रशासन का निरीक्षण करना, भूमि राजस्व वसूलना और जिले में कानून-व्यवस्था को बनाए रखना है। यह राजस्व संगठनों का प्रमुख होता है। यह भूमि के पंजीकरण, जोते गाए खेतों के विभाजन ,विवादों के निपटारे, दिवालिया, जागीरों के प्रबंधन, कृषकों को ऋण देने और सूखा राहत के लिए भी जिम्मेदार होता है।

जिले के अन्य सभी पदाधिकारी उसके अधीनस्थ होते थे और अपने-अपने विभागों की प्रत्येक गतिविधि की जानकारी उसे उपलब्ध कराते हैं। जिला मजिस्ट्रेट के कार्य भी इनको सौंपे जाते हैं। जिला मजिस्ट्रेट होने के नाते वह पुलिस और जिले के अधीनस्थ न्यायालयों का निरीक्षण भी कर सकते हैं। सीजेएम के ऊपर जज होते हैं। जज की रैंक में आते हैं डिस्ट्रिक्ट जज और एडीजे यानी एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज। इस लेवल पर जब जज सिविल मामले देखते हैं, तो उन्हें कहते हैं डिस्ट्रिक्ट जज, लेकिन यही जज जब क्रिमिनल मामले देखते हैं तो उन्हें सेशन जज कहते हैं। सेशन जजऔर डिस्ट्रिकट जज एक ही होता है, जो दोनों तरह के मामलों की सुनवाई करता है। डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन कोर्ट के फैसलों को हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।

जानें मजिस्ट्रेट के प्रकार और सजा देने का अधिकार

मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट : यह किसी भी जिले के मजिस्ट्रेट के पद का सर्वोच्च पद होता है। जिले के समस्त न्यायिक मजिस्ट्रेट को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नियंत्रित करता है। कोई भी मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट मृत्यु दंड और आजीवन कारावास नहीं दे सकता। ये ऐसा दंड नहीं दे सकते जो 7 साल से ज्यादा की कारावास की अवधि का है।

मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी : ये मजिस्ट्रेट किसी भी मामले को प्रारंभिक रूप से सुनते हैं। कोई भी मामला प्रारंभिक रूप से प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट के पास ही जाता है। यह कोर्ट भारतीय न्यायपालिका का अत्यंत अहम अंग है। यदि इनकी कोर्ट में किसी आरोपी पर दोष सिद्ध होता है तो प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट आरोपी को उस अपराध के अंतर्गत अधिकतम 3 वर्ष तक का कारावास और 10 हजार तक का जुर्माना लगा सकता है। कोई भी प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट 3 वर्ष से अधिक का कारावास और 10 हजार से ज्यादा का जुर्माना नहीं लगा सकता।

मजिस्ट्रेट द्वितीय श्रेणी : इसी पद से न्‍याय पालिका में मजिस्ट्रेट का क्रम शुरू होता है। सिविल से जुड़ा कोई भी मामला सबसे पहले इसी न्यायालय में आता है। आपराधिक मामलों में द्वित्तीय श्रेणी मजिस्ट्रेट का न्यायायल एक साल से अधिक अवधि के कारावास और 5000 रुपये तक का जुर्माना या इन दोनों को एक साथ किसी भी सिद्ध दोषी को दे सकता है।

महानगर मजिस्ट्रेट : वहीं महानगरों के लिए महानगर मजिस्ट्रेट जैसे पद रखे गए हैं। इन पदों में मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट और महानगर मजिस्ट्रेट को रखा गया है। मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट को वही सब शक्तियां प्राप्त होती है जो मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को प्राप्त होती है। महानगर मजिस्ट्रेट को वही सब शक्तियां प्राप्त होती हैं जो प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट को प्राप्त होती हैं।

कार्यपालक मजिस्ट्रेट : इसके अलावा राज्य सरकार अपनी इच्‍छा अनुसार प्रत्येक जिले और महानगर में जितने चाहे उतने कार्यपालक मजिस्ट्रेट नियुक्त करती है और उनमें से एक को जिला मजिस्ट्रेट नियुक्त करती है।

जजों का प्रकार और अधिकार

सत्र न्यायाधीश : सत्र न्यायालय (सेशन कोर्ट) की अध्यक्षता उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त न्यायाधीश द्वारा की जाती है। उच्च न्यायालय अतिरिक्त और साथ ही सहायक सत्र न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है। सत्र न्यायाधीश या अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश कानून द्वारा अधिकृत किसी भी सजा को पारित कर सकते हैं। लेकिन मौत की सजा दी जाती है तो इस सजा की उच्च न्यायालय द्वारा पुष्टि अनिवार्य है।

अतिरिक्त / सहायक सत्र न्यायाधीश : ये उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त किए जाते हैं। ये सेशन जज की अनुपस्थिति के मामले में हत्या, चोरी, डकैती, पिक-पॉकेटिंग और ऐसे अन्य मामलों से संबंधित मामलों की सुनवाई कर सकते हैं। एक सहायक सत्र न्यायाधीश कानून द्वारा अधिकृत किसी भी सजा को मृत्युदंड या आजीवन कारावास या दस वर्ष से अधिक के कारावास की सजा को छोड़कर अन्य सजा को पारित कर सकता है।

चूंकि यहां बात विषेश न्यायिक मजिस्ट्रेट पद की हो रही है तो यह जान लें कि स्थान विशेष जिस माननीय उच्च न्यायालय के क्षेत्र में आता है उसे अधिकार है कि स्थान विशेष या किसी जिले में सीमित अधिकारों के साथ, अदालतों पर लम्बित मामलों का दबाव कम करने हेतू इस पद एक निश्चित मानदेय के आधार पर निर्धारित मानदंडों को पूरा करने वाले अभ्यर्थी की नियुक्ति माननीय उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित चयन समिति कर सकती हैं ।

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