Thursday, March 28, 2024
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‘किंग’ से किंग मेकर कैसे बन गए यूपी के ब्राह्मण ?

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यूपी चुनाव से पहले हर दल ने कमर कस ली है लेकिन सबकी नजर इस बार सिर्फ और सिर्फ ब्राह्मण वोट पर है. फिर चाहे सपा हो या बसपा या फिर कांग्रेस, आखिर ऐसा क्या हुआ है कि यूपी में ब्राह्मणों को रिझाने में हर दल एड़ी चोटी का जोर लगा रहा है.

लखनऊ । उत्तर प्रदेश ज्यों-ज्यों विधानसभा चुनाव की ओर सरक रहा है, त्यों-त्यों राजनीतिक दलों की सरगर्मियां बढ़ती जा रही हैं. यूं तो चुनाव के लिए कई मुद्दे पहले से ही लहलहा रहे हैं, लेकिन एक नया मुद्दा सभी दल नए सिरे से उगाने में लग गए हैं. वो है “ब्राह्मणों की हमदर्दी”. शायद ये पहला चुनाव होगा जिसमें मुस्लिम वोट, दलित वोट यहां तक कि राम मंदिर को भी छोड़कर सभी पार्टियां सिर्फ ब्राह्मणों को रिझाने में जुट गयी हैं.

आखिर क्यों सभी राजनीतिक दल मुस्लिमों, दलितों और अन्य जातियों को छोड़कर सिर्फ ब्राह्मणों को ही रिझाने या मनाने में लग गए है . इतिहास में झांके तो हमेशा मुस्लिमों को रिझाने की भरसक कोशिश होती रही है या फिर दलितों पर डोरे डालने की कोशिश की जाती रही है. जातिगत वोट बैंक की राजनीति के इतर देखें तो राम मंदिर हर चुनाव में ख़ास मुद्दा बना रहा है, लेकिन इस मुद्दे ने कभी किसी राजनितिक दल को सत्ता तक नहीं पहुंचाया.

भाजपा के लिए तो ये मुद्दा “जन्म सिद्ध अधिकार” जैसा है. इस चुनाव में राम मंदिर मुद्दा भाजपा के लिए सपने के पूरा होने जैसा है, क्योंकि भव्य राम मंदिर बनने के लिए आधारशिला भी रखी जा चुकी है. सर्वोच्च अदालत ने सारे रास्ते भी साफ़ कर दिए है. इतनी बड़ी सफलता का परचम हाथ में होने के बावजूद भाजपा को भी करीब तीन करोड़ ब्राह्मण पार्टी से मुंह मोड़ते दिख रहे हैं.

ब्राह्मण वोट बैंक पर सबकी नजर

माना जा रहा है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में ब्राह्मणों ने कमल का साथ दिया था इसीलिए भाजपा सत्ता तक आसानी से पहुंच गयी थे. लेकिन सत्तासीन होने के बाद राज्य में ब्राह्मणों के साथ सौतेला व्यवहार ऐसा शुरू हुआ जो अब भाजपा के लिए गले की हड्डी बन गया है. सत्ता में भागीदारी से जो दरार पड़ी तो बिकरू कांड के आरोपी विकास दुबे के अपेक्षित एनकाउंटर के बाद गहरी खाई में तब्दील हो गई. 56 मंत्रियों के मंत्रीमंडल में महज़ आठ ब्राह्मणों को जगह दी गई थी, वो भी कम वजनी विभागो के साथ नवाजे गए.

इससे ये सम्भावना बलवती हो गयी कि कहीं इस बार ब्राह्मण वोट मुट्ठी से न फिसल जाए. चुनाव सिर पर आते देख पार्टी के आकाओं और संघ को इसका एहसास हुआ और सत्ता वापसी के लिए संगठन इस खाई को पाटने में जुट गया.

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