Friday, April 19, 2024
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आज से इलाहाबाद हाईकोर्ट में लागू होगा ऑड-इवन फॉर्मूला, नाराज बार एसोसिएशन करेगा विरोध

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प्रयागराज । प्रदूषण पर लगाम के लिए दिल्ली में लागू किया जा चुका वाहनों का ऑड-इवन फॉर्मूला सोमवार से इलाहाबाद हाईकोर्ट में मुकदमों की लिस्टिंग में लागू किया जा रहा है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के आदेश के अनुसार सोमवार से अदालतों में लगने वाले सभी मुकदमे ऑड-इवन नंबर से लिस्ट होंगे। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने इस फॉर्मूले पर असहमति जताते हुए इसका विरोध करने की बात कही है।

नई व्यवस्था के अनुसार एकल पीठ के समक्ष प्रतिदिन 100 नए दाखिल मुकदमे और अतिरिक्त वाद सूची के 30 केस से अधिक नहीं लगेंगे। इसी प्रकार दो न्यायाधीशों की खंडपीठ के समक्ष 60 नए और 20 मुकदमे अतिरिक्त सूची के लगेंगे। सभी मुकदमे दाखिले की तिथि के अनुसार ऑड-इवन नंबर से लगेंगे। जहां बंच केसेस होंगे, वहां पहले लीडिंग केस का ऑड-इवन नंबर देखा जाएगा। 

किसी केस में सात दिन के भीतर तिथि तय की गई है तो उसे तिथि निर्धारित करने वाले जज की ही पीठ में लगाया जाएगा। इस नियम के बावजूद कोर्ट अपने आदेश से किसी केस की तिथि तय कर सुनवाई कर सकेगी। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अमरेंद्र नाथ सिंह ने ऑड-इवन फॉर्मूले से असहमति जताते हुए कहा कि एसोसिएशन इस फॉर्मूले का विरोध करेगा।

उन्होंने कहा कि नया फॉर्मूला पहले से परेशान वकीलों की कठिनाई बढ़ाएगा। वैसे ही वकीलों को सुनवाई का लिंक नहीं मिल रहा है। बहस की बजाय तारीख लग रही है। महीनों पहले दाखिल मुकदमों की सुनवाई कब होगी, पता नहीं चल रहा है। घूम-फिर कर कोर्ट में वही मुकदमे आ रहे हैं। पूर्व अध्यक्ष आरके ओझा का कहना है कि बार-बेंच का मधुर रिश्ता बेमानी हो गया है। 

बार को विश्वास में लिए बिना नित नए प्रयोग किये जा रहे हैं। ऐसी परंपरा उचित नहीं है। पूर्व अध्यक्ष अनिल तिवारी का कहना है कि बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों व वरिष्ठ अधिवक्ताओं से परामर्श करके उचित निर्णय लिया जाना चाहिए। बार को विश्वास में लिए बिना कोई फॉर्मूला लागू करने से समाधान की बजाय परेशानी ही बढ़ेगी।

पूर्व उपाध्यक्ष एसके गर्ग का कहना है कि यह परंपरा रही है कि बार और बेंच के बीच मधुर रिश्ता रख वादकारी हित को सर्वोच्च मानकर न्याय प्रक्रिया चलायी जाए। इस परंपरा का लोप हो रहा है। पूर्व संयुक्त सचिव प्रशासन संतोष कुमार मिश्र कहते हैं कि हाईकोर्ट का रोस्टर भी कोरोना वेरिएंट की तरह रोज बदल रहा है। एक परेशानी खत्म होती है तो दूसरी शुरू हो जा रही है। 

कांस्टीट्यूशनल एंड सोशल रिफार्म के राष्ट्रीय अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता एएन त्रिपाठी का कहना है कि बार एसोसिएशन को विश्वास में लेकर ही सुनवाई प्रक्रिया तय करने से न्याय देना सुलभ होगा। दाखिले की अवधि के अनुसार केस लगाए जाएं और पीठों को उचित संख्या में केस का वितरण कर वादकारी को न्याय दिलाया जाए।

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