स्वीकृति की प्रत्याशा में शासनादेश के विपरीत आखिर क्यूँ निकाल रहा लोक निर्माण विभाग टेंडर ?आखिर इसकी क्या कहानी है ? विंध्यलीडर की पड़ताल करती एक रिपोर्ट

सोनभद्र।वर्तमान सरकार ने आते ही विभिन्न कार्यदायी संस्थाओं में फैले भ्र्ष्टाचार पर नकेल लगाने के लिए नियम कायदे में बदलाव किया।इन्हीं में से एक नियम यह भी था कि किसी भी कार्य का बिना वित्तीय स्वीकृति के टेंडर न निकाला जाय।इसके पीछे का कारण यह था कि पूर्व में स्वीकृत की प्रत्याशा में टेंडरिंग करा कर विभाग अपने चहेते ठेकेदारों को कार्य देने के लिए अन्य ठेकेदारों के साथ बार्गेनिग करता था।यदि बाकी ठेकेदार विभागीय अधिकारियों की बात नहीं मान कर उनकी चहेती फर्मो/ठेकेदारों के खिलाफ टेंडर भर देते थे तो उक्त कार्यों की वित्तीय स्वीकृति वर्षों तक लटकी रहती थी जिसकी वजह से विभाग की बात न मानने वाले ठेकेदारों का टेंडर प्रक्रिया में लगा लाखों रुपए वर्षो तक फंसा रहता था जिसकी वजह से उन्हें वित्तीय संकट का भी सामना करना पड़ता था।
दूसरी तरफ विभागीय अधिकारियों की चहेती फर्मों या फिर ऐसी फर्मे जिनका संचालन माफियाओं के हाथ मे था उनकी बात न मानने से ठेके प्राप्त करने को लेकर हत्याएं भी हो रहीं थीं।इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर वर्तमान सरकार ने स्वीकृति की प्रत्याशा में टेंडर निकालने पर प्रतिबंध लगा दिया है।शासनादेश के मुताबिक यदि विशेष परिस्थितियों में टेंडर निकालना आवश्यक हो तो उसके लिए शासन से स्वीकृति लेने का प्राविधान किया गया है।
परन्तु सोनभद्र में तो लगता है कि शासन के नियम बेमानी हो गए हैं।यहां खनिज विकास निधि से करोड़ों रुपए के कार्य वित्तीय स्वीकृति के बिना ही निकाल दिया गया है।स्वीकृति की प्रत्याशा में निकाले गए उक्त टेंडर को मैनेज करने के लिए कुछ ठेकेदार भिन्न भिन्न तरह के हथकंडे अपना रहे हैं।कभी प्री बिड मीटिंग के नाम पर अधिकारियों व ठेकेदारों को एक जगह बैठा कर उन्हें यह समझाया जा रहा कि टेंडर को लेकर कम्पटीशन से अंततः ठेकेदारों को ही नुकसान होगा तो कभी यह कहा जा रहा कि यदि विभाग की बात नहीं माने और टेंडर डाल दिया तो उक्त कार्य की वित्तीय स्वीकृति नहीं मिलेगी और पैसा भी फंस सकता है।
इतना ही नही विभाग द्वारा शुद्धि पत्र जारी कर टेंडर की शर्तों में कुछ इस तरह परिवर्तन किया जा रहा कि छोटे ठेकेदार उनकी शर्त ही पूरी न कर सकें और वह स्वंय ही छंट जांय।
मसलन लोक निर्माण विभाग सोनभद्र के प्रांतीय खण्ड से निकले कुछ बड़े काम जो ए सी स्तर के हैं जब निविदाएं निकाली गई तो उन निविदाओं को भरने के लिए एक शर्त यह थी कि निविदादाता को कार्य की एस्टीमेटेड लागत का 02 प्रतिशत ही धरोहर धनराशि के रूप में देना था पर जब उन कार्यों पर टेंडर मैनेज नहीं हो पाया और टेंडर पड़ने लगे तो मैनेज के कार्य मे लगे लोगों ने विभागीय अधिकारियों की सांठ गांठ से टेंडर डालने की अंतिम तारीख से एक दिन पूर्व ही शुद्धि पत्र जारी कर उक्त कार्यों की धरोहर धनराशि में बेतहाशा वृद्धि कर अप्रत्यक्ष रूप से ठेकेदारों को रोकने का खड़यँत्र किया जा रहा है।
इतना ही नहीं लोक निर्माण विभाग की यदि पिछले कुछ दिनों की क्रियाकलापों पर गौर करें तो आप साफ समझ सकते हैं कि सरकार चाहे जितना भी जतन कर ले,नियम कानून बना दे पर उसको जमीन पर यह लोग उतरने ही नहीं देंगे।दबी जुबान कुछ ठेकेदारों ने भी कहा कि सब मैनेज हो गया।जो नही मानेगा उसे बांस कोर्ट में हाजिरी लगानी पड़ सकती है और आप तो जानते ही हैं कि जिसकी लाठी उसकी भैंस।आखिर जिस विभाग में ठेकेदारी करनी है ठेकेदार उसी विभाग से कितना लड़ पायेगा ?
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