Friday, March 29, 2024
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स्वास्थ्य विभाग के संरक्षण में पल रहे दलालों के चक्कर में प्रसूता की गई जान, परिजनों ने किया हंगामा

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दुद्धी। सरकारी अस्पतालों पर दलालों का जमावड़ा और उनके चक्कर में फंस कर मरीजों की जान जाने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। ताजा मामला दुद्धी से जुड़ा हुआ है। सरकारी अस्पताल में फैले दलालों के चक्कर में फंस कर रविवार की तड़के एक महिला की मौत हो गई। इससे खफा परिजनों ने जमकर हंगामा किया। पुलिस ने किसी तरह मामले को शांत कराया। परिजनों की तहरीर पर पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है।

मिली जानकारी के मुताबिक सफीकुन बानो (30 वर्ष) पत्नी जमालुद्दीन निवासी डूमरडीहा को परिजन शनिवार की रात्रि करीब 11 बजे डिलवरी के लिए दुद्धी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया जहां सीएचसी दुद्धी में इमरजेंसी ड्यूटी पर तैनात चिकित्सक ने प्रसूता की स्थिति गंभीर देख जिला अस्पताल के लिए रेफर कर दिया लेकिन अस्पताल के बाहर मंडरा रहे दलालों ने मरीज के परिजनों को अपने झांसे में फांस लिया और दुद्धी के ही एक निजी हॉस्पिटल में ले जाकर प्रसव के लिए भर्ती करा दिया। यहां देर रात प्रसव तो हो गया लेकिन जच्चा बच्चा की हालत खराब होती चली गई। स्थिति जब नियंत्रण से बाहर हो गई तो उसे एंबुलेंस से राबर्ट्सगंज स्थित एक निजी अस्पताल भेजकर भर्ती करा दिया गया। वहां इलाज के दौरान प्रसूता की मौत हो गई। नवजात शिशु गंभीर हालत में राबर्ट्सगंज के ही निजी अस्पताल में भर्ती है।

सुबह 10 बजे के करीब जैसे ही महिला का शव एंबुलेंस से दुद्धी पहुंचा, महिला के घर वालों ने दुद्धी में संचालित उक्त निजी हॉस्पिटल पर शव के साथ पहुंचकर हंगामा शुरू कर दिया। उनका कहना था कि दलालों ने कमीशन के चक्कर में उन्हें गुमराह कर दूद्धि में संचालित उक्त हॉस्पिटल में भर्ती करा दिया। यहां उसे सही उपचार नहीं मिल पाया जिससे उसकी मौत हो गई।

हंगामा की सूचना पाकर कोतवाली दुद्धी के प्रभारी निरीक्षक राघवेंद्र सिंह, एसआई एनामुल हक मय पुलिस फोर्स के साथ मौके पर पहुंचे और लोगों को समझा-बुझाकर किसी तरह शांत कराया। इसके बाद शव को कब्जे में लेकर पीएम के लिए भेज दिया। महिला के परिजनों ने कोतवाली में तहरीर भी दी है जिसके आधार पर पुलिस सच्चाई जांचने में जुटी हुई है।

लोग बताते हैं कि 102 नंबर एंबुलेंस के कुछ चालक और उनके सहयोगी दुद्धी सीएचसी से जिला अस्पताल के लिए रेफर हुए मरीजों को लेकर चलते जरूर हैं लेकिन रास्ते में मरीज को गुमराह कर सेटिंग वाले प्राइवेट हॉस्पिटल में मरीज को भेज देते हैं। वहीं दुद्धी क्षेत्र के कटौली में खुले एक फार्मेसी कॉलेज से एलोपैथ में डीफार्मा और बी फार्मा करने वाले छात्र जो तीन महीने की मेडिकल ट्रेनिंग के लिए सीएचसी आ रहे होते हैं। उसमें से कुछ छात्र-छात्राएं निजी अस्पतालों में काम भी करते हैं। वह भी सरकारी अस्पताल से जब कोई प्रसूता या गंभीर मरीज जिला अस्पताल रेफर होता है तो उसे कमीशन के चक्कर में जिस निजी अस्पताल में काम कर रहे होते हैं, उसके दबाव में मरीज को झांसा देकर जिला अस्पताल की जगह निजी अस्पताल पहुंचवा देते हैं। इनके अलावा दलाल किस्म के लोग सरकारी अस्पतालों के परिसर में घूमते मिल जाएंगे। आम आदमी यह समझता है कि इलाज कराने आये हैं लेकिन माजरा मरीजों को फांसकर निजी अस्पताल पहुंचाने का होता है। सारा खेल खुली आंखों के सामने होता है, इसके बावजूद जिम्मेदारों की नजर ऐसे लोगों पर क्यों नहीं पड़ती? समझ से परे है।

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