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–सविदा / निविदा कर्मीयो का दर्द कौन सुनेगा ? आखिर इनकी लडाई कौन लडेगा ?
लखनऊ। नये साल के आगमन होते ही ठंड ने अपना रौद्र रूप दिखान शुरू कर दिया और ठंड बढते ही बिजली विभाग में अनुरक्षण का काम बढना शुरू हो गया । लोगो ने अपने घरो मे हीटर, ब्लोअर चलाने शुरू कर दिये जिसकी वजह से बिजली की खपत बढ गयी और लाईनो पर लोड फिर से बढ गया ,नतीजा हर जगह फाल्ट होने शुरू हो गये।
उसके बाद ही विभागीय अभियन्ताओ को बड़का बाबू ने फर्मान सुनाया कि डिस्कनेक्शन अभियान चलाओ और विभागीय अभियन्ताओ ने अपने से नीचे वालो को यह फर्मान जारी कर दिया कि बिल वसूलो या कनेक्शन काटो और सारी जिम्मेदारी आ गयी विभाग में गरीब ठेके पर रखे निविदा/संविदा के कर्मचारियो पर। विभाग के उच्चाधिकारियों के इस फ़रमान को पूरा करने के लिए बहुत मामूली सी तनख्वाह पाने वालो की फौज निकल पड़ती है सीढी ले कर साहब के हुक्म की तामील करने और बिना पूरे सुरक्षा इन्तेजाम के चल दिए।
ट्विटर पर आगयी फोटो कि फलानी जगह आज अभियान चला और इतने डिसकनेक्शन हुए। फोटो मे एक निविदा कर्मी जो कि अपने आप को सविदा कर्मी मानता है लोहे की सरिया से बने एक जुगाड से बिना किसी सुरक्षा उपकरण के खम्बे पर चढता दिखाई देता है। कुछ खोजबीन करेंगे तो पता चलेगा कि सीढी, कार्यदायी संस्था ने उपलब्ध ही नही कराई और ना ही दस्ताने और ना ही अर्थिंग राड, बस हाथ मे प्लास पकड़ा दिया और जुगाड से खम्बे पर चढ गये लाईन काटने।यदि कोई हादसा हो गया तो उक्त गरीब का पूरा परिवार हाय हाय कर के रह जाता है। उक्त हादसे में या तो वो निविदा कर्मी आंशिक रूप से या पूर्ण रूप से विकलांग हो जाता है और कई बार तो वह अपनी जान से हाथ भी धो लेता है ।किसी को कोई चिन्ता नही होती, बस एक पाच लाख रूपय का चेक उस मृतक के परिजनो के हाथो मे थमा कर विभागीय आका अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं और अखबार के किसी कोने मे एक छोटी सी खबर प्रकाशित हो जाती है और घटना को सब भूल जाते है। ना तो कार्यदायी संस्था पर कोई कार्रवाई होती है और ना जिम्मेदार अधिकारियो पर ही कोई उगली उठाता है ?
इनके अपने नेता भी इनकी बात को आगे नही बढा पाते क्योकि जिन लोगो पर इन सब की जिम्मेदारी है वो खुद ही डर के मारे आत्महत्याऐ कर रहे हैं और उनके उपर वालो को अवैध रूप से बैठे बडका बाबू इतना प्रताडित कर रहे है कि उनको हार्ट अटैक पड़ रहे है।नतीजा विभाग निजीकरण की तरफ तेजी से बढ़ने लगा है और कोई इसको बचाने के लिए आवाज उठाने वाला नही बचा तो इस आवाज को उठाने के लिए और अपनी जायज मागो को मनवाने के लिए श्रमिक वर्ग को खुद ही संगठित हो कर आवाज उठानी पड़ रही।इन श्रमिकों को अपने नेताओ से पूछना पडेगा कि आखिर समझौता होने के बाद अब तक महीनों से ऊपर हो जाने के बाद भी उसे लागू क्यो नही करा पाऐ ? जब कि संघर्ष समिति और अभियन्ता संघ और जूनियर इन्जीनियर संगठन लगभग हर हफ्ते मंत्री जी के दरबार मे सलाम बजाने पहुच ही जाते है। वैसे उच्च न्यायालय इलाहाबाद मे भी कोई तारीख नही पड़ रही है सुनवाई की। इन सब बातों के बीच अगर कोई वर्ग सफर कर रहा है तो वो है श्रमिक वर्ग। यानि जिनके कन्धो पर इस विभाग को चलाने की जिम्मेदारी है, तो जुमलेबाजी छोड़ो क्योंकि अपने हक को हासिल करने के लिए यदि यह श्रमिक वर्ग आंदोलन की राह पकड़ लेगा तो क्या होगा विभाग का ? क्यो कि सबसे बडी जिम्मेदारी इन्ही श्रमिकों के कंधों पर है और सबसे कम वेतन भी इन्हीं को ही है और विभाग इन्हीं को दोयम दर्जे की व्यवस्था में रख दिया है।खैर जो मैने महसूस किया और जो चर्चा सुनी व स्थितिया देखी वह लिख दी, श्रमिको के हित में चलने वाला युद्ध अभी शेष है ।