Uncategorized

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग बना ‘मूकदर्शक’ , प्रदूषण पर नाराज – सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली । उच्चतम न्यायालय शुक्रवार को वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) से नाराजगी जताते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के मामले में कोई ठोस उपाय करने की बजाय वह ‘मूकदर्शक’ बना रहा।

न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति जॉर्ज मसीह की पीठ ने अदालती कार्यवाही में वर्चुअल माध्यम से उपस्थित हुए राजेश वर्मा से कहा अगर आयोग नागरिकों को यह संदेश नहीं देता कि अगर वे (जनता) कानून का उल्लंघ न करते हैं तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की, तो आयोग के दंडात्मक प्रावधान केवल कागजों पर रह जाएंगे।

शीर्ष अदालत ने महसूस किया कि आयोग ने उस तरह से काम नहीं किया जैसा कि उससे अपेक्षा की गई थी और प्रदूषण की तरह इसके नियम भी हवा-हवाई हैं।

शीर्ष अदालत ने आयोग से कहा कि वह तीन अक्टूबर तक अनुपालन रिपोर्ट अदालत में पेश करे, जिसमें अब तक किए गए कार्यों और वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के तत्कालिक प्रस्तावों का विवरण दिया गया हो।

सर्दियों की शुरुआत से पहले पड़ोसी राज्यों हरि याणा और पंजाब में पराली जलाने से कथित तौर पर एनसीआर में गंभीर वायु प्रदूषण हुआ है। यह दिल्ली की खराब वायु गुणवत्ता के लिए प्रमुख कारकों में से एक के तौर पर सामने आया है।

शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि सीएक्यूएम अधिनियम का एक भी प्रावधान लागू नहीं किया गया है और आयोग के एक भी निर्देश का अनुपालन नहीं किया गया है। सु नवाई के दौरान पीठ ने कहा, “आयोग द्वारा निपटाए गए महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक पराली जलाने का मुद्दा है।”

पीठ ने कहा कि पराली जलाने के मुद्दे से निपटने के लिए एक भी समिति नहीं बनाई गई और सीएक्यूएम अधिनियम का पूरी तरह से अनदेखी की गई। हालांकि, आयोग के अध्यक्ष ने कहा कि तीन उपसमितियां हर तीन महीने में एक बैठक कर रही हैं। इस पर पीठ ने कहा, “हमें आश्चर्य है कि वे तीन महीने में केवल एक बार बैठक करके उन कार्यों को कैसे पूरा कर रही हैं।”

पीठ ने कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए कि जमीनी स्तर पर पराली जलाने के विकल्प के रूप में उपकरणों का उपयोग किया जाए।

शीर्ष अदालत ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता है कि सीएक्यूएम ने कोई कार्रवाई नहीं की, लेकिन उन्होंने उस तरह से काम नहीं किया जैसा कि उनसे अ पेक्षित था।

पीठ ने कहा, “यह अधिनियम अब तीन साल से अधिक समय से अस्तित्व में है, आयोग द्वारा अब तक मुश्किल से 85-87 निर्देश जारी किए गए हैं। यह पता चलने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई कि निर्देशों का पालन ​​नहीं किया गया है।”

शीर्ष अदालत ने कहा कि आयोग को व्यापक अधिकार दिए गए हैं। इसमें प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों को बंद करने का निर्देश देना भी शामिल है।

पीठ ने कहा, “हमारा मानना ​​है कि हालांकि आयोग ने कुछ कदम उठाए हैं, लेकिन आयोग को और अधिक सक्रिय होने की जरूरत है। आयोग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके प्रयास और जारी किए गए निर्देश वास्तव में प्रदूषण की समस्या को कम करने में का रगर साबित हों…।”

पीठ ने आगे कहा, “आयोग को तुरंत कदम उठाना चाहिए ता कि यह सुनिश्चित हो सके कि पराली जलाने से बचनेसीएक्यूएम के अध्यक्ष ने शीर्ष अदालत के समक्ष द लील दी कि पंजाब और हरियाणा के अधिकारियों और प्रदूषण बोर्ड के साथ बैठकें की गई थीं और उन्हो ंने अपने मुख्य सचिवों को चेतावनी जारी की है।

न्यायमित्र के रूप में अदालत की सहायता कर रही वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने कहा कि यदि उनके कानून का उल्लंघन किया जा रहा है, तो उनके आयोग के पास कार्रवाई करने का अधिकार है। पीठ ने कहा, “लेकिन वे (आयोग) मूकदर्शक बने हुए हैं। “

2017 में पराली जलाने से रोकने के लिए उपकरणों के लिए किसानों को हजारों करोड़ रुपये की पेशकश की गई थी।

उन्होंने कहा, “हमें लगा कि इससे रोकने में मदद मिलेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और इसीलिए आज सीएक्यूएम आया है और अब किसी अधिकारी को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।

केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने सफाई देते हुए कहा कि चेयरमैन ने दो सप्ताह पहले ही कार्यभार संभाला है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!