उत्तर प्रदेशदेशसोनभद्र

दो दशकों से अधिक समय से मांस खाने वाली इस मछली के बिक्री पर लगा है बैन , फिर भी धड़ल्‍ले से हो रही बिक्री, इसके सेवन से कैंसर तक के होने का रहता खतरा !

सड़क किनारे दुकान लगाकर दो दर्जन से अधिक स्थानों पर व्यापारी सोनभद्र में मछली बेच रहे हैं। जबकि केंद्र सरकार और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने थाई मांगुर प्रजाति की मछली की बिक्री पर पिछले दो दशकों से अधिक समय से रोक लगा रखी है। थाई मांगुर प्रजाति की मछली मांस खाती है। इसके सेवन से कई गंभीर रोग हो सकते हैं। जागरुकता के अभाव में लोग इसका सेवन कर रहे हैं।

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जिले के स्वास्थ्य अधिकारी का कही नहीं है अता पता

सोनभद्र। 8 दिसम्बर 24 । नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल और भारत सरकार ने वर्ष 2000 में विदेशी थाई मछली पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बावजूद खुलेआम थाई मछली बेची और खरीदी जा रही है। सिर्फ सोनभद्र जिले के शहरी क्षेत्र के रॉबर्ट्सगंज से लेकर चोपन  , ओबरा , डाला रेणुकूट अनपरा और शक्तिनगर तथा सिंगरौली तक दो दर्जन से अधिक स्थानों पर सड़क के किनारे इस मछली की बिक्री हो रही है।

सेहत के लिए बेहद खतरनाक थाई मांगुर

जिला प्रशासन के नाक के नीचे खुलेआम इस तरीके से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल और केंद्र सरकार के आदेश की धज्जियां उड़ाई जा रही है, महत्वपूर्ण बात यह है कि थाई मांगुर प्रजाति की मछली स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है।

फिर भी सोनभद्र के विभिन्न क्षेत्रीय बाजारों में वाराणसी के रास्ते लाकर ,अवैध तरीके से इसका कारोबार हो रहा है। विदेशी मांगुर मछली को देसी मांगुर बताकर बाजारों में बेचा जाता है। लोग बड़े शौक से इस मछली को खाते हैं।

मांस खाती है थाई मांगुर मछली

मांगुर मछली पर प्रतिबंध लगाने के पीछे इससे होने वाला पर्यावरण और स्वास्थ्य को नुकसान है। मांगुर मछली के खाने से कैंसर और कई गंभीर रोग हो सकते हैं। यह मछली मांस खाती है, जिसकी वजह से इसका शरीर बहुत तेजी से बढ़ता है।

मांगुर मछली में आयरन और लेड बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है, जिसके कारण यह इंसान और पर्यावरण दोनों के लिए खतरनाक है। कहा जाता है कि मांगुर मछली जिस तालाब या जलाशय में रहती है, वहां दूसरी प्रजाति की एक भी मछली या कीड़े-मकोड़े तक नहीं बचते। यह मछली दूसरी मछलियों को भी अपना शिकार बनती है।

व्‍यापारी सोनभद्र में कर रहे हैं प्रतिबंधित मछली की बिक्री

एनजीटी और केंद्र सरकार के प्रतिबंध के बावजूद सोनभद्र में भी बड़े आराम से इस मछली की बिक्री हो रही है। देश के विभिन्न स्थानों से वाराणसी के रास्ते से लाकर स्थानीय व्यापारी यहां पर थाई मांगुर मछली की बिक्री कर रहे हैं। सोनभद्र में रोहू, कतला, ग्रास कार्प, मीनार कार्प, सिल्वर आदि प्रजाति की मछलियों को बेचने वाले रॉबर्ट्सगंज निवासी एक व्यापारी का कहना है कि मांगुर मछली अंगुलिका (मछली का बच्चा) की बिक्री पांच रुपये से लेकर दस रुपये प्रति पीस तक की जाती है।लगभग एक उंगली साइज की यह मछली तीन महीने में ही आधा किलो तक वजन की विकसित हो जाती है। जबकि सामान्य मछली को इतना विकसित होने में छह से आठ महीने का समय लगता है। काफी कम समय में इस मछली के तेजी से बढ़ने की वजह से इसकी खूब डिमांड है।

सोनभद्र  जिला मुख्यालय से लेकर शक्तिनगर तक इस मछली को जिले के स्थानीय विक्रेता वाराणसी  के कई सप्लायर आपूर्ति करते हैं। थाई मांगुर मछली की बिक्री पर पूरी तरह से प्रतिबंध है। एनजीटी और केंद्र सरकार द्वारा इस पर रोक लगाया गया है। सोनभद्र में इस तरह की हो रही बिक्री कि जांच कर स्वास्थ्य से खेलने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए ।

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