भारत का एक ऐसा गांव जहां किसी के घर में नही है रसोई और न ही बनता है खाना , हैरत तो यह की कोई भूखा भी नहीं रहता है !
भारत का एक ऐसा गांव जहां के घरों में नहीं है किचन, लेकिन फिर भी लोगों का भर जाता पेट, वजह जान जरूर मिलेगी सीख। गुजरात घूमने जा रहे हैं ? तो मेहसाणा जिले के एक अनोखे गांव को खोज कर घूमना ना भूलें। इस गांव के सभी लोगों के घर में जलता नही है चूल्हा ताज्जुब तो यह की कोई भूखा भी नहीं रहता है । यह गांव एकता और भाईचारे की गजब मिसाल है। लोग दूर-दूर से इसका अन्वेषण करने आते हैं।
अहमदाबाद । गुजरात । 11 अक्टूबर 24 । हम और आपके मन में गांव का नाम सुनकर झोपड़ी, कुंआ, खेत-खलिहान का ख्याल आता है। हलांकि, अब भारत के ज्यादातर गांव विकसित हो चुके हैं। यहां पर अब पक्के मकानों के साथ अब रसोई भी बनने लगी है, जहां चूल्हे के बजाय गैस पर खाना बनता है ।
आज हम आपको भारत के एक ऐसे गांव के बारे में बताएंगे, जहां किसी भी घर में खाना नहीं बनता। दिलचस्प बात तो यह है, यहां किसी के भी घर में रसोई है भी नहीं। इसका मतलब ये नहीं कि यहां के लोग खाना नहीं खाते या बनाते नहीं। ये लोग भी वो सब करते हैं जो हम और आप करते है , लेकिन कुछ अलग ही अंदाज में। चलिए आपको भी इस गांव की पुरानी परंपरा बताते हैं, जो शायद आपको ताज्जुब कर सकती है। यह गांव है गुजरात के मेहसाणा जिले का गांव चादणकी।
यह एक ऐसा अनोखा गांव है, जहां पक्की सड़क है और 24 घंटे बिजली रहती है। यहां एक भी मच्छर नहीं है और साफ सफाई इतनी कि यहां आने वाला देखता रह जाए। शैचालय के मामले में यह गांव नम्बर एक पर है। इस गांव की 1300 आबादी में से 900 युवा काम के सिलसिले में अमेरिका और अहमदाबाद में जाकर बस गए हैं।
लोगों के बाहर जाकर बसने के बाद अब इस गांव में सिर्फ बूढ़े लोग ही रहते हैं। अकेलेपन के कारण यहां के बुजुर्ग ने एक शानदार योजना बनाई है। इस योजना के तहत किसी को अपने घर में खाना नहीं बनाना पड़ता। सुबह, दोपहर और शाम को एक ही रसोई में पूरे गांव का चाय, पानी और खाना बनाती है। एक ही जगह पर बैठकर हर रोज 60 से 100 बुजुर्ग प्रेम से खाना खाते हैं।
आजादी के बाद यहां अब तक पंचायत चुनाव नहीं हुए हैं। जिसका असर गांव के विकास में देखने को मिलता है। यहां बिजली, पानी की कोई कमी नहीं है। पक्की सड़के होने के कारण लोगों की किसी परेशानी का सामना भी नहीं करना पड़ता।
आपके मन में सवाल जरूर होगा कि घरों में आने वाले मेहमानों का खाना कैसे बनता होगा, तो बता दें कि मेहमान किसी का भी हो, खाना गांव की रसोई में ही बनता है। दिलचस्प बात तो यह है कि इस गांव में पहले महिला और फिर पुरुष खाना खाते हैं।
यह गुजरात का एकमात्र ऐसा गांव है, जहां सामुदायकि भोजन कक्ष है। त्योहारों पर भी बाहर रहने वाले लोग अपने गांव में आकर एक साथ खाना खाते हैं। किसी के घर में चूल्हा नहीं जलता। यहां गांव के सरपंच और युवाओं ने एक समिति का गठन किया है, ताकि लोगों को स्वस्थ और पौष्टिक भोजन मिल सके।
इस गांव को निर्मल और तीर्थ गांव जैसे अवॉर्ड भी मिल चुके हैं। इसके अलावा गांव की ग्राम पंचायत को समरस महिला ग्राम पंचायत का भी अवार्ड मिल चुका है। यह गांव आज भी एकता और भाईचारे की गजब मिसाल है। इस गांव को एक्सप्लोर करने के लिए लोग दूर- दूर से आते हैं।