लीडर विशेषसोनभद्र

बासकोर्ट के सहारे लोक निर्माण विभाग का टेंडर फ़िक्स मैच में बदला

समर सैम की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट

सोनभद्र। वाह रे पी.डब्ल्यू. डी. तूने तो कमाल कर दिया , धोती फाड़के रुमाल कर दिया। जनपद सोनभद्र में जिला खनिज न्यास मद व कुछ विभागीय मदों से कराये जाने वाले कार्यो का पी.डब्ल्यू.डी. विभाग ने टेंडर निकाला है। बहुत ही शातिराना ढंग से अपने चहेते ठेकेदारों अथवा उनकी फर्मों के लिए टेंडर प्रक्रिया में लोचा किया जा रहा है। टेंडर प्रक्रिया एक तरह से कागजी कोरम भर रह गईं है टेंडर एक तरह से क्रिकेट के फिक्स मैच की तरह हो गईं है और पी.डब्लू.डी. के इस फ़िक्स मैच में अब ताबड़तोड़ बल्लेबाजी देखने को मिलेगी।सूत्रों के मुताबिक एक माननीय महामंडलेश्वर के आते ही मैच का परिणाम बिल्कुल से बदल गया। पी.डब्लू.डी. के मुफ़ीद पिच पर बल्लेबाजी के लिए तैयार ठेकेदार एक झटके में मायूस हो गए। अब उन्हें लगने लगा है कि उनको बल्लेबाजी का मौका ही नहीं मिलेगा। बल्लेबाजी करने से रोक दिए गए इन ठेकेदारों में इतनी भी हिम्मत नहीं कि यह गेंदबाजी कर सके। क्योंकि मोर्चा माननीय महामंडलेश्वर ने संभाल लिया है। वरना बल्लेबाजी से वंचित कर दिए गए ठेकेदार अपनी इन स्विंग एवं ऑउट स्विंग गेंदबाजी से विकेट उखाड़कर फेंक देते। कुछ तो ऐसे भी हैं जो गुगली फेंकने में भी एक्सपर्ट हैं। लेकिन वह भी मौके कि नज़ाकत को देखते हुए मौन धारण किये हुए हैं।

उन्हें पता है कि अब ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला क्योंकि मैच पूरी तरह फ़िक्स हो चुका है। माननीय महामंडलेश्वर के खौफ़ का आलम यह है कि फ़िक्स मैच से वंचित कर दिए गए ठेकेदारों की बुलन्द आवाज़ अब गले में घुटकर रह गई। जो ठेकेदार बढ़ौली चौराहे पर ढींगे हांका करते थे कि हम किसी से नहीं दबते। डंके की चोट पर ठेकेदारी करते हैं। माननीय महामंडलेश्वर के रेफरी की भूमिका में आ जाने से इन डिंगयामार ठेकेदारों की हालत पतली हो गई। अपने साथ होने वाली ज्यादतियों को किसी से शेयर करने की भी इनकी हिम्मत नहीं हो पा रही है। सूत्रों की मानें तो इस फ़िक्स मैच में सभी ज़िम्मेदारों का कमीशन परसेंटेज भी फ़िक्स हो चुका है। अपने अधिकारों के हनन पर ठेकेदारों का कहना है कि बाबू आन्हर माई आन्हर
हमै छोड़ सब भाई आन्हर
के-के, के-के दिया देखाई

बिजुली अस भउजाई आन्हर॥

अर्थात उन्हें यह भी समझ नहीं आ रहा कि फरियाद कहाँ करें ?आखिर कौन सुनेगा उनकी जब फैसला बास कोर्ट से होने लगे तो समझिए बेड़ा गर्क। टेंडर मैनेज कर अपने चहेते फर्मों को आवंटित किये जाने का खेल नियमों को ताक पर रखकर खेला जा रहा है। इसके लिए लगातार रणनीति बनाई जा रही है। नाम न छापने की शर्त पर पीडब्ल्यूडी के एक इंजीनियर बेहद दिलचस्प अंदाज़ में बताते हैं कि ठेकेदारों को मैनेज करना विभाग के बूते से बाहर है। मेंढक और ठेकेदारों को एक तराजू पर नहीं तौला जा सकता। ठेकेदारों को समझावन बुझावन के लिए बाहुबलियों की ज़रूरत पड़ती है। तब किसी की भी ना नुकुर हलक से नहीं निकलती। तब सर झुकाकर सभी मैनेज की शर्त मान लेते हैं।

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक ऐसा ही हुआ 20 अक्टूबर की शाम को जब माननीय महामंडलेश्वर ने सर्किट हाउस में पंजीकृत चुनिंदा ठेकेदारों के साथ टेंडर मैनेज को लेकर एक गुप्त बैठक आयोजित की। यह बैठक विभाग और ज़िम्मेदार अधिकारियों के सहमती से आयोजित की गई थी। इस तरह से शासनादेश की धज्जियां उड़ाते हुए पीडब्ल्यूडी के टेंडर में खेल खेला जा रहा है। आपको बताते चलें कि खनिज न्यास मद से कराये जाने वाले कार्यों का पीडब्ल्यूडी विभाग द्वारा जो भी टेंडर निकाले गए हैं, वह साइट भी ठीक से नहीं खुल रही। कुछ असन्तुष्ट ठेकेदार आरोप लगा रहे हैं कि इस साइट को विभाग अपने हिसाब से ओपेन कर रहा है। आधी रात में एक दो घण्टे के लिए ही साइट खुलती है। खुलने का समय चहेते ठेकेदारों को बता दिया जाता है वह खोल कर अपलोड कर लेते हैं फार्म। दूसरा कोई ठेकेदार चाहे तो उसे दुश्वारियों का सामना करना पड़ रहा है।

वहीं दिलचस्प बात यह भी है कि प्रकाशित टेंडर में स्वीकृति की प्रत्याशा शब्द का इस्तेमाल किया गया है। इसका अर्थ यह है कि बिना स्वीकृति के ही टेंडर जारी किया गया है। ऐसे में यदि टेंडर मैनेज नहीं हुआ तो स्वीकृति प्रदान ही नहीं होगी और टेंडर निरस्त हो सकता है।अर्थात यदि धन स्वीकृत नहीं हुआ तो सम्बंधित ठेकेदारों का धन एवं वक़्त दोनों बर्बाद होगा इसकी ज़िम्मेदारी कौन लेगा। इस पर ठेकेदारों का कहना है कि ऐसा जानबूझकर किया गया है। सबकुछ ओके है स्वीकृति पांच मिनट में मिल जायेगी। अगर कोई ठेकेदार जबरन टेंडर डाल देगा तब स्वीकृति नहीं मिलेगी। पहले जिसका कमीशन आ जायेगा एडवांस में उसी को काम मिलेगा। इसी लिए स्वीकृति की प्रत्याशा शब्द को कमीशनखोरी के चलते बदनाम किया जा रहा है। बाकी बाँसकोर्ट के आदेश ने सब कुछ पहले ही डिसाइड कर दिया है।

तक़रीबन 100 करोड़ से अधिक का टेंडर मिर्जापुर मंडल से एसी के द्वारा भी जारी किया गया है। सभी की लास्ट डेट 22अक्टूबर रखी गई थी जिसे फिलहाल कुछ समय के लिए बढ़ा दिया गया है। इसमें से तक़रीबन चार या पांच कामों को विभाग की आधिकारिक साइटों पर लोड नहीं किया गया है। इसपर पी.डब्ल्यू.डी. के एक सहायक अभियंता का कहना है कि अपलोड कुछ तकनीकी कमियों के कारण नहीं हुआ है। मोती लाल नेहरू प्रयागराज में प्रोजेक्ट्स पेंडिंग है इसलिए अपलोड नहीं किया गया। दिलचस्प बात यह है प्रोजेक्ट्स फ़ाइनल न होने के बाद भी कैसे टेंडर प्रकाशित कर दिया गया।

यह सरकारी काम है कोई मौसी जी का घर नहीं। आखिर कमीशनखोरी के लिए नियम एवं कायदे को हाशिये पर क्यों टांगा जा रहा है। दूसरे ठेकेदारों को भयाक्रांत कर उन्हें टेंडर से क्यों वंचित किया जा रहा है। आखिर निर्भीक एवं ईमानदार सीएम योगी आदित्यनाथ की सरकार के इकबाल को रसातल में मिलाने की साजिश कौन रच रहा है ? समय की शिला पर खड़ी जनता सब कुछ देख रही है । लगता है कि अब जनता जनार्दन कि अदालत में ही इस बात का फ़ैसला होगा। तक़रीबन 10 वर्ष पूर्व उत्तर प्रदेश में पी.डब्ल्यू.डी. विभाग में माफियाओं की दखलंदाजी बढ़ते ही मैनेज टेंडर को लेकर ठेकेदारों की ताबड़तोड़ हत्यायें होने लगी थी। जिसकों गंभीरता से लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सख़्त आदेश दिया था कि सरकारी विभाग से निकलने वाले टेंडर में पारदर्शी प्रक्रियाओं का पालन सुनिश्चित किया जाये। टेंडर मैनेज और माफियाओं की दखलंदाजी पर पूरी तरह से अंकुश लगाया जाये।

परन्तु सारे नियम कायदे को ताक पर रख कमीशनखोरी को सकुशल सम्पन्न कराने के लिए ज़िम्मेदारों ने माननीय महामंडलेश्वर की चौखट पर फ़रियाद लगाई। फिर क्या था सर्किट हाउस में बासकोर्ट की अदालत में चुनिंदा ठेकेदार, जेई एवं एई पेश हुए। बासकोर्ट के एक आदेश पर मैच पूरी तरह फ़िक्स हो गया। पूरी तरह से यह सुनिश्चित कर लिया गया कि अब कमीशन पूरा आयेगा। वहीं चाहे शासनादेश – राजस्व जाये तेल लेने। फ़िलहाल ज़िम्मेदारों के क्रियाक्लाप मुफ़्त का चन्दन घिस मेरे लल्लू का प्रतिबिंब बन कर रह गए हैं। इस पर अगर उच्चस्तरीय जांच हो जाये तो कमीशनखोरी के खेल और मैनेज टेंडर के सिंडिकेट का चेहरा बेनकाब हो जाएगा। जिन ठेकेदारों को वंचित रखा गया है वह दबी ज़बान अपना दर्द और पी.डब्ल्यू.डी. की कारस्तानी को उजागर कर रहे हैं। परंतु अफसोस इंसाफ की ख़ातिर यह अभागे ठेकेदार आखिर किसकी चौखट पर गुहार लगायें। अफ़सोस कमीशनखोरी के खेल में सभी के हाथ रंगे हुए हैं। इस खेल से जहां सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की धज्जियां उड़ाई जा रही है। वहीं आने वाले समय में फ़िक्स मैच का खेल ईमानदार योगी सरकार की छवि को भी धूमिल कर सकता है। इस कुकृत्य से समाज में गलत संदेश जा रहा है।

आख़िर कब कमीशनखोरी और टेंडर मैनेज के खेल में योगी आदित्यनाथ सरकार का हंटर चलेगा ? टेंडर मैनेज के चलते जनता का विश्वास शासन प्रशासन से उठता जा रहा है । शीघ्र ही इस पर अंकुश नहीं लगाया गया तो समाज में अंधेरगर्दी एवं अराजकता का साम्राज्य कायम हो सकता है। पी.डब्ल्यू.डी. विभाग से कमीशनखोरी को नेस्तनाबूद करने के लिए उच्चस्तरीय जांच की दरकार है।

अगर विभागों में शासनादेश एवं हाईकोर्ट व सुप्रीमकोर्ट के आदेश निष्प्रभावी होने लगे तो लॉ एंड ऑर्डर पूरी तरह से ध्वस्त हो जाएगा। महान चिंतक चाणक्य ने कहा था कि अविश्वासी शासक ज़्यादा समय तक शासन सत्ता पर काबिज़ नहीं रह सकता। अब देखना यह है कि पी.डब्ल्यू.डी. के टेंडरों में बासकोर्ट का आदेश कब तक चलता है। गर यही हाल रहा था तो प्रदेश फिर एक दशक पीछे चला जायेगा। जब टेंडर को लेकर माफियाओं का बोलबाला था। लगातार ठेकेदारों की ताबड़तोड़ हत्याओं से सुप्रीम कोर्ट को मोर्चा संभालना पड़ा था। न हाईकोर्ट न सुप्रीम कोर्ट यहां चलता है बासकोर्ट। माननीय महामंडलेश्वर के आदेश पर चलता है यहां का पी.डब्ल्यू.डी. विभाग। अगर पीडब्ल्यूडी का यही चरित्र है तो ऐसे चरित्र से जल्द छुटकारा पाना देश और समाज दोनों के लिए अत्यंत जरूरी बन जाता है। ऐसे तत्व दीमक की तरह देश को चट कर जायेंगे। अब तो क़लम भी कहने लगी है जाकी देश में रहना है वाकी बोली बोलना है।बिलाई ऊंट ले गई हां जी हां जी कहना है। अंत में एक शेर बस बात खत्म, काजू भुने प्लेट में, विस्की ग्लास में। उतरा है रामराज्य देखो विधायक निवास में।

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