Thursday, March 23, 2023
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फर्जी रिलीज ऑर्डर से थानों से निकली ट्रकों के मामले में एआरटीओ व उनके शागिर्दों की फंसने लगी गर्दन



-परिवहन मंत्री की ओर से गठित समिति की जांच में परत दर परत हो रहा खुलासा , एआरटीओ से अधिक उनके साथ रहने वाले उनके शागिर्दों की चलती थी कार्यालय में

सोनभद्र में फर्जी रिलीज आर्डर के सहारे सोनभद्र के विभिन्न थानों से लगभग सैकडों ओवरलोड ट्रकों को छुड़ाने के मामले के खुलासे से परिवहन विभाग में हड़कम्प मचा हुआ है। खुलासे के बाद आनन फानन परिवहन विभाग के उच्चाधिकारियों ने जांच बिठा दी है।अभी जांच प्रारम्भिक दौर में ही है कि जांच करने आये जांच अधिकारी एक तरह से एआरटीओ प्रशासन का कार्य देख रहे अधिकारी को क्लीनचिट देते नजर आए।जब इस बाबत उनसे खबरनवीसों द्वारा यह जानकारी चाही गयी कि किसी भी चार्ज में सीज गाड़ी को अवमुक्त करने सम्बन्धी अर्थात रिलीज ऑर्डर को थाने तक पहुंचाने का विभागीय नियम क्या है और क्या इन फर्जी रिलीज ऑर्डर से छोड़ी गई गाड़ियों के बाबत उक्त विभागीय नियम का पालन किया गया है ?

खबरनवीसों के इस सवाल पर जांच अधिकारी द्वारा कहा गया कि नियम तो चाहे जो हो पर कुछ वर्षों से यह परंपरा है कि गाड़ी मालिक अथवा ड्राइबर को ही रिलीज ऑर्डर दे दिया जाता है और यहां भी यही हुआ है।यहां आपको बताते चलें कि नियमों के मुताबिक जब भी कोई ट्रक या वाहन किसी भी चार्ज में यदि परिवहन विभाग द्वारा बन्द या सीज की जाती है तो विभाग में शुल्क अथवा चार्ज जमा करने के बाद वाहन को छोड़ने के लिए जो रिलीज ऑर्डर बनता है वह तीन प्रतियों में होता है जिसमे से एक प्रति उक्त वाहन की विभाग में बनी फाइल में सुरक्षित रखा जाता है तथा एक प्रति ट्रक वाहन स्वामी को तथा एक प्रति पुलिस ऑफिस भेजा जाता है जो विभागीय तरीके से सम्बंधित थाने को भेज दिया जाता है और जब उक्त वाहन स्वामी जब सम्बंधित थाने से अपने वाहन को रिलीज कराने आता है तो विभागीय तरीके से पहुंचे रिलीज ऑर्डर व वाहन स्वामी द्वारा उपलब्ध कराए गए रिलीज ऑर्डर का मिलान कर उक्त वाहन को अवमुक्त किया जाता है।

इससे एक बात तो साफ है कि यदि उक्त विभागीय नियम का पालन किया जाता तो फर्जी रिलीज ऑर्डर के सहारे गाडियों को छुड़ाकर सरकारी राजस्व को इस तरह चुना नहीं लगाया जा सकता था। अब सवाल यही है कि आखिर उक्त सरकारी नियम का पालन क्यूँ नहीं किया गया ? सम्भव है कुछ लोग इसी का फायदा उठाकर फर्जी रिलीज ऑर्डर के सहारे अपना खेल खेलते रहे हों।

फिलहाल अभी जांच चल रही है और जांच भी पुलिस विभाग की अलग और परिवहन विभाग की अलग इसलिए जब तक किसी भी विभाग की जांच पूरी न हो जाय तब तक कुछ भी निष्कर्ष निकालना न तो ठीक होगा न ही उचित।यहां यह बात तो साफ है कि उक्त फर्जी रिलीज ऑर्डर में विभाग के किसी न किसी की भूमिका संदिग्ध अवश्य होगी।यह तो जांच रिपोर्ट आने के बाद ही पता चलेगा कि इसके लिए कौन लोग दोषी हैं ?

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि परिवहन मंत्री द्वारा नियुक्त त्रिस्तरीय जांच कमेटी की प्राम्भिक जांच के बाद जो संकेत मिल रहे हैं उसके मुताबिक सहायक संभागीय परिवहन अधिकारी ( एआरटीओ ) पीएस राय के शागिर्दों यथा उनके आस पास रहने वाले दलालों ने भी खूब खेल किया और साहब की आड़ में नियमों की खूब धज्जियां उड़ाई ।यहां यह बात भी सामने आ रही है की जिले में एआरटीओ से ज्यादा उनके शागिर्दों की हनक थी , वह जो चाहते थे विभाग में वही होता था।विभाग में बिना उनकी मर्जी के पत्ता नही हिलता था।क्या मजाल की विभाग का कोई भी बाबू उनके मर्जी के बिना कोई काम कर दे।

विभाग पर सतर्क नजर रखने वालों की मानें तो एक समय तो स्थिति यह थी कि कोई गाड़ी मालिक अथवा दलाल सीधे एआरटीओ के गुर्गों से ही संपर्क करता था और उसका काम हो जाता था ।सूत्रों की मानें तो स्थिति यहां तक पहुंच गई थी कि एआरटीओ खुद ट्रक मालिकों व दलालों को उनके गुर्गों से संपर्क करने को कहते थे ।

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक परिवहन मंत्री की ओर से गठित समिति की जांच रिपोर्ट में प्रथम दृष्टया यह बात उभर कर आ रहीं है कि विभाग में एआरटीओ से ज्यादा उनके गुर्गों की धमक थी । सूत्रों की मानें तो जांच में यह तथ्य सामने आ रहा है कि एआरटीओ पीएस राय के साथ बाहरी लोग यानी उनके गुर्गे रहते थे और एआरटीओ के सभी काम वही लोग करते थे। उनके शागिर्द लोग उनके मोबाइल व उनके सरकारी टैबलेट का पासवर्ड तक जानते थे और सारा काम कर देते थे।

फिलहाल फर्जी रिलीज आर्डर पर थाने से छूटे ट्रकों के नंबर को परिवहन कार्यालय में ब्लाक कर दिया गया है और जांच पूरी होने तक उन ट्रकों का कोई भी काम नहीं होगा । अर्थात न ही ये ट्रक अनापत्ति प्रमाणपत्र लेकर जिले से बाहर जा सकते हैं और न ही इन ट्रकों को किसी अन्य के नाम ट्रांसफर किया जा सकता है ।

यहां आपको बताते चलें कि सोनभद्र में ओवरलोड ट्रकों से इंट्री लेने का खेल काफी पुराना है । परिवहन मंत्री, मुख्यमंत्री , व खनन मंत्री , मंडलायुक्त , सचिव , जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक ने कई बार कार्रवाई करने का निर्देश दिया लेकिन होता कुछ नहीं है और यह खेल बदस्तूर जारी है। यहां यह बात उल्लेखनीय है कि जिले में अवैध खनन होने , ओवरलोड ट्रकों पर एआरटीओ द्वारा अंकुश नहीं लगाने पर वर्तमान जिलाधिकारी व मंडलायुक्त योगेश्वर राम मिश्र शासन को रिपोर्ट भेज चुके हैं । फर्जी रिलीज आर्डर पर थाने में सीज वाहनों को छोड़ने की भी रिपोर्ट शासन को भेजी जा चुकी है।अब देखना होगा कि भ्र्ष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात करने वाली वर्तमान सरकार परिवहन विभाग के इस खेल पर क्या कार्यवाही करती है ?




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