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परिवार से बाहर निकल नहीं पा रही पार्टी अनुप्रिया पटेल अपना दल की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनीं

राजधानी में शुक्रवार को अपना दल (एस) के राष्ट्रीय अधिवेशन में दूसरी बार राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन ली गई हैं. चुनाव प्रक्रिया में सिर्फ अनुप्रिया पटेल ने ही नामांकन किया था, जिन्हें निर्विरोध अध्यक्ष चुन लिया गया. ऐसे में राजनीतिक विश्लेषक के मुताबिक अपना दल परिवार से शुरू हुई पार्टी परिवार के बीच ही सिमट कर रह गई.

विंध्यलीडर के लिए राजेन्द्र द्विवेदी और ब्रजेश पाठक की खास रिपोर्ट

लखनऊ : अपना दल (एस) के राष्ट्रीय अधिवेशन में दूसरी बार राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन ली गई हैं. चुनाव प्रक्रिया में सिर्फ अनुप्रिया पटेल ने ही नामांकन किया था, जिन्हें निर्विरोध अध्यक्ष चुन लिया गया. ऐसे में राजनीतिक विश्लेषक के मुताबिक अपना दल परिवार से शुरू हुई पार्टी परिवार के बीच ही सिमट कर रह गई.

राजनीतिक विश्लेषक हरगोविंद विश्वकर्मा कहते हैं कि वैसे तो क्षेत्रीय दलों का परिवारवाद से ग्रसित होना अचंभित नहीं करता है, लेकिन जिस समाज के लिए अनुप्रिया पटेल राजनीति करती आई हैं और लड़ाई लड़ने का दावा करती हैं, तो उन्हें उस समाज के लोगों को आगे लाकर एक संदेश देना चाहिए था. वो खुद केंद्र में मंत्री हैं, पति को योगी सरकार में मंत्री बना ही चुकी हैं, तो इस बार अध्यक्ष पद परिवार से इतर किसी अन्य को मौका देतीं, तो एक अच्छा संदेश जा सकता था.

राजनीतिक विश्लेषक सुनील शुक्ला कहते हैं कि अनुप्रिया पटेल अपना दल के अध्यक्ष इसमें ताजुब की बात नहीं है. जितने भी क्षेत्रीय दल हैं, सभी मे परिवार बाद व वंशवाद हावी है. कोई भी क्षेत्रीय दल में देख लीजिए, जिसने पार्टी बनाई, वही उस पार्टी का अध्यक्ष होगा. सरकार में आ गए तो वही मंत्री होगा. इसी तरह अपना दल (एस) में भी है. अनुप्रिया अध्यक्ष हैं व केंद्र में मंत्री हैं और उनके पति अशीष पटेल योगी सरकार में मंत्री हैं. क्षेत्रीय दल की भुमिका उत्तर प्रदेश में इतनी ही है कि वो परिवारवाद, क्षेत्रवाद व जातिवाद को बढ़ावा देते हैं.

राजनीतिक विश्लेषक शिवशंकर गोस्वामी कहते हैं कि राजनीतिक दलों में एक समस्या है कि जो भी नेता पार्टी बनाता है, उन्हीं के परिवार का या वह खुद दल के अध्यक्ष बनते हैं. विश्लेषक कहते हैं कि यह गलत परंपरा है, लेकिन यह परंपरा बनी हुई है. तमाम आलोचनाओं के बाद कांग्रेस ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव कराया और संगठन से एक नए चेहरे को परिवार से बाहर के व्यक्ति को बनाया. मुझे लगता है कि सभी दलों को चाहे वह छोटे दलों या बड़े दलों सभी को पार्टी के भीतर संगठन चुनाव कराने चाहिए और नए लोगों को मौका देना चाहिए. हालांकी कई बार ऐसा होता है कि आपस में टकराव की स्थिति आ जाती है. इसलिए यह मजबूरी भी होती है कि परिवार से ही किसी को पार्टी की जिम्मेदारी दी जाती है.

सिर्फ सोनेलाल परिवार का रहा दबदबा :

अनुप्रिया पटेल की पार्टी के जनक उनके पिता कुर्मी समाज के बड़े नेता सोनेलाल पटेल थे. उन्होंने वर्ष 1995 में बसपा से अलग हो कर अपना दल का गठन किया था. सोनेलाल की मृत्यु के बाद इसकी बागडोर अनुप्रिया पटेल की मां कृष्णा पटेल ने संभाली थी. कृष्णा पटेल की दूसरे नंबर की बेटी अनुप्रिया पटेल व पल्लवी पटेल भी पार्टी का अंग रहीं और सक्रियता के साथ कार्य भी करती रहीं थी. सोनेलाल की आसामयिक मृत्यु के बाद से ही पार्टी में उनके परिवार का दबदबा कायम रहा था.

अपना दल के गठन के पांच महीने बाद सोनेलाल का अचानक निधन होने के बाद जब उनकी पत्नी कृष्णा पटेल ने पार्टी की बागडोर संभाली तो उनकी दो बेटियां पल्लवी पटेल व अनुप्रिया पटेल भी राजनीति में एक्टिव हो चुकी थीं. पार्टी में खींचतान मची, एक तरफ पल्लवी पटेल व उनके पति पंकज निरंजन थे तो दूसरी ओर अनुप्रिया पटेल व उनके पति आशीष पटेल थे. पावर की चाहत ने दोनों बहनों को अलग कर दिया और परिवार में विघटन के साथ ही पार्टी के भी दो फाड़ हो गए. अनुप्रिया पटेल ने अपना दल (S) बनाई और बीजेपी के साथ कदम से कदम मिला कर चलीं. खुद केंद्र में दो बार मंत्री बनीं और पति को यूपी में बीजेपी की मदद से एमएलसी बनवा दिया.

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के साथ मिल कर लोकसभा व विधानसभा चुनाव लड़ने के बाद लगातार अपना दल ( एस) मजबूत होता गया और अनुप्रिया की पावर बढ़ती गई. सोनेलाल पटेल के निधन के बाद अनुप्रिया चुनाव लड़ती रहीं. मां कृष्णा पटेल से अलग होने के बाद अनुप्रिया केंद्र में दो बार मंत्री बनीं. यही नहीं पति को एमएलसी बनवा, मंत्री भी बनवाने की कोशिशें करती रहीं. साथ ही पार्टी की बागडोर भी पूरी तरह पति आशीष पटेल के ही हाथ में थी. अब जब एक बार फिर अनुप्रिया पटेल की पार्टी ने 2022 के विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करते हुए 17 सीटों में 12 सीट जीती हैं तो कैबिनेट मंत्री बनने के लिए पति आशीष पटेल को ही आगे किया है.

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