पत्थर खदानों में किये गए अंधाधुंध अवैध खनन के कारण प्रशासन द्वारा वसूली गयी करोड़ो की पेनाल्टी,पर पर्यावरणीय क्षति के लिए लगने वाली पेनॉल्टी पर प्रशासन ने क्यूँ साध रखी है चुप्पी ?
सोनभद्र से राजेन्द्र द्विवेदी, ब्रजेश पाठक व समर सैम की ज़ीरो ग्राउंड रिपोर्ट-
सोनभद्र। जनपद सोनभद्र में खनन माफियाओं ने अपने फायदे को बढ़ाने के लिए प्रकृति का ऐसा दोहन किया कि उसकी तस्वीर ही बदल गयी है।अवैध खनन करने के लिए गगनचुंबी पहाड़ियों के कोख में इतना बारूद भरा गया कि वह पाताल में तब्दील हो गई हैं। खनन सेक्टर के आस पास के ग्रामीण बताते हैं कि पहले ओबरा एवं बिल्ली मारकुंडी में हरी- भरी गगनचुंबी पहाड़ियों की अंतहीन श्रृंखला थी। दिन रात विस्फोट करके इन पहाड़ियों को विशालकाय खाईं में तब्दील कर दिया गया।समय समय पर सरकारें और अधिकारी तो बदलते रहे, मगर खनन सेक्टर में नियमों को ताक पर रखकर खनन माफिया निरन्तर गुल खिलाते रहे जिसका नतीजा है सोनभद्र में हुई व्यापक पर्यावरणीय छति।
सोनभद्र मेंअवैध खनन की लगातार मिल रही शिकायत के मद्देनजर दिनांक 12 जुलाई 2023 को निदेशक खनन डॉ रोशन जैकब ने सोनभद्र के पत्थर खनन बेल्ट का औचक निरीक्षण किया। लखनऊ से आयी निदेशालय की टीम पत्थर खनन बेल्ट का विन्ध्वंसक नज़ारा देखकर दहल गयी। बेतरतीब अंधाधुंध प्रकृति के दोहन से रोशन जैकब आग बबूला हो गयीं। जिला मुख्यालय पर अधिकारियों की मीटिंग लेने के बाद पट्टाधारकों द्वारा नियमों को ताक पर रख किये गए अवैध खनन की जांच हेतु टीम बनाकर जिलाधिकारी को आवश्यक दिशा निर्देश देते हुए वापिस चली गईं।
जांच के चार दिन बाद सोनभद्र के पत्थर खनन बेल्ट में बिजली बनकर गिरी डॉ रोशन जैकब की यह कारवाई। इस कारवाई को रोकने के लिए सोनभद्र के खनन माफियाओं ने लखनऊ दरबार मे अपनी लम्बी पैठ के लिए बहुचर्चित विधायक के दरबार में अर्जी लगायी। विधायक जी ठेकेदारी और अवैध खनन के लिए बदनामी का मुकुट पहले ही धारण कर चुके हैं। खैर महोदय ने कार्रवाई को ठंडे बस्ते में डालने के लिए दिल्ली से दौलताबाद तक बैडमिंटन की चिड़िया की तरह दौड़ते रहे। विधायक जी के साथ साथ योगीजी के बेहद भरोसेमंद चर्चित आईएएस अधिकारी भी एड़ी चोटी तक जोर लगाते रहे। परन्तु ऑनेस्ट अधिकारी मैडम रोशन जैकब ने किसी भी दबाव के आगे झुकने से इंकार कर दिया। कारवाई की गाज़ गिरते ही सोनभद्र में हाहाकार मच गया। जांच रिपोर्ट में नियमों को ताक पर रखकर निर्धारित एरिया से बाहर किये गये अवैध खनन पर तत्काल पेनाल्टी लगाने के आदेश दिए गए। वहीं दो पट्टों को निरस्त करने एवं दो प्रस्तावित पट्टों के पक्ष में जारी सहमति प्रमाण पत्र को तत्काल प्रभाव से निरस्त करने के निर्देश दिये गए।
जांच में यह भी पाया गया कि 2017 से 2021 तक विभिन्न खनन एरिया के लिए निर्गत एलओआई का पर्यावरण स्वच्छता प्रमाण पत्र अभी तक लंबित है। खैर निदेशक खनन डॉ रोशन जैकब की जांच रिपोर्ट के आधार पर जिलाधिकारी सोनभद्र ने अवैध खनन की पुष्टि करते हुए कुछ पत्थर खदानों पर करोड़ों की पेनाल्टी लगा दिया और उसकी वसूली भी हो गई।इस ईमानदारी की सज़ा डॉ रोशन जैकब को जल्दी ही मिल गयी। उन्हें निदेशक खनन के पद से हटा कर माला श्रीवास्तव को पदासीन कर दिया गया। तबादले के साथ ही ऑनेस्ट सीएम योगी आदित्यनाथ के आस पास अपनी आधारभूत इच्छओं की पूर्ति हेतु मंडराने वाले भ्र्ष्टचरित्र वाले लोग आने वाले समय में खनन बेल्ट में बड़ा खेला करने में कामयाब हो गये।
खैर अधिकांश पट्टाधारकों ने निदेशक के आदेश से बनी टीम के द्वारा जांच के बाद उनके एरिया में हुए अवैध खनन के लिए अधिरोपित पेनाल्टी जमा कर दिया। इससे साबित हो गया कि नियमों कि धज्जियाँ उड़ाते हुए पट्टाधारकों द्वारा अवैध खनन किया गया और उन्होंने उसे स्वीकारते हुए किये गए अवैध खनन के एवज में प्रशासन द्वारा उन पर अधिरोपित पेनाल्टी को जमा भी कर दिया गया।विंध्यलीडर की टीम को अवैध खनन के बाबत खनन पट्टाधारकों पर अधिरोपित पेनाल्टी व पट्टाधारकों द्वारा जमा किये गए उक्त पेनाल्टी के जो दस्तावेजी सबूत हाथ लगे हैं उससे यह बात तो साफ है कि भूतत्व एवं खनिकर्म विभाग ने पेनाल्टी वसूल कर अपना रेवेन्यू तो बढ़ा लिया मगर उक्त अवैध खनन से हुई पर्यावरणीय क्षति को कौन वसूलेगा ? आखिर पर्यावरण की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार विभाग क्या कर रहा है ? क्या पर्यावरणीय क्षति की पेनाल्टी नहीं वसूली जानी चाहिए थी ? नियमानुसार अवैध खनन के लिए लगी पेनाल्टी के कई गुना पर्यावरणीय पेनॉल्टी लगाई जानी चाहिए।अब जब खनन माफियाओं ने अवैध खनन को स्वीकारते हुए उन पर अवैध खनन के लिए लगी पेनाल्टी को जमा कर दिया है तो प्रशासनिक अमले द्वारा पर्यावरणीय क्षति के लिए पेनाल्टी क्यूँ नही अधिरोपित की जा रही है ? क्या जब तक मामला एन जी टी में नहीं जाता तब तक प्रशासन मूक दर्शक बन तमाशा देखता रहेगा ?
पूरा विश्व पर्यावरण संरक्षण के लिए जरूरी कदम उठा रहा है अब तक दुनिया में 3700 से अधिक पर्यावरण सन्धि एवं समझौते हो चुके हैं ताकि पर्यावर्णीय क्षति को कम से कम किया जा सके।प्रशासन का पर्यावरण की क्षति पूर्ति वसूली पर चुप्पी साधना क्या किसी दबाव का हिस्सा है ? आखिर पर्यावरणीय क्षति पर लगने वाली कानूनन पेनाल्टी अभी तक किस सफेदपोश के दबाव में नहीं लगाया गया ?
जिलाधिकारी और पर्यावरण विभाग के ज़िम्मेदार अधिकारियों की उदासीनता कर्त्तव्य परायणता पर सवालिया निशान खड़ा कर रहे हैं ? अगर इसी प्रकार नेचर से खिलवाड़ होता रहेगा तो आने वाले समय में धरती पर भयंकर विनाशलीला से इंकार नहीं किया जा सकता। इसीलिए पर्यावरण क्षति को अंतरराष्ट्रीय अपराध की श्रेणी में रखा गया है। ताकि ग्लोबल वार्मिंग और मानव सभ्यता के अस्तित्व को बचाया जा सके।
विकास के नाम पर खनन माफिया विनाश को दावत दे रहे हैं जो मानव सभ्यता के अस्तित्व के लिए ये एक आत्मघाती क़दम है।