सोनभद्र। जी हां यह कोई अफवाह नहीं अपितु नक्सल प्रभावित नगवां स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की हकीकत है। स्वास्थ्य विभाग की बदइंतजामी की बानगी देखनी हो तो विकास खंड नगवां स्वास्थ्य केंद्र खलियारी इसका जीत जागता उदाहरण है ।

यहां राजकीय आयुर्वेद अस्पताल, राजकीय होमियोपैथिक अस्पताल एवं एलोपैथिक अस्पताल एक ही कैम्पस में संचालित है। लेकिन तीनों अस्पताल लगता है कि जैसे खुद ही बीमार हैं और जिनके कंधों पर इन अस्पतालों के इलाज का बोझ है लगता है जैसे वह केवल आंख मूंद केवल अपना हिस्सा गिनने में लगे हैं। स्वास्थ्य केंद्र खलियारी में न ही कोई डाक्टर बैठता हैं और न हीं फार्मासिस्ट ,यूं कहें तो यहां इलाज करने वाला कोई नहीं है। जबकि नगवां विकास खंड अत्यंत नक्सल प्रभावित के साथ साथ अत्यंत पिछड़ा क्षेत्र है।पहाड़ी क्षेत्रों के लोगों के लिए खलियारी मुख्य बाजार है।

यहां के स्वास्थ्य केंद पर लगभग ३५ से ४० किमी दूर तक के गरीब आदिवासी इलाज के लिए आते हैं, दिनभर इंतजार करने के बाद जब कोई डॉक्टर ,फार्मासिस्ट या अन्य कोई मेडिकल स्टाफ नहीं मिलता तो मायुस होकर वापस चला जाता है या फिर जान जोखिम में डाल झोलाछाप डॉक्टरों के शरण में जाते हैं या फिर थक हार ५०किमी दूर जिला अस्पताल जाने को विवश होते हैं। कितने मरीज तो रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं।जिला पंचायत सदस्य नगवां विग्गन प्रसाद दो दिन पूर्व दवा लेने हेतु प्रा0स्वा0 केंद्र खलियारी गये जब कोई नहीं मिला तो वह फिर अगले दिन गए परन्तु दोनों दिन कोई नहीं मिला। उन्होंने बताया कि पूछने पर बताया गया कि तीन महीने से कोई डाक्टर फार्मासिस्ट नहीं है, न ही दवा उपलब्ध है। श्री प्रसाद ने मांग किया है, कि जांच कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए और स्वास्थ्य व्यवस्था को तत्काल बहाल किया जाय।

ऐसा नहीं है कि उक्त सरकारी अस्पताल पर डॉक्टर, फार्मासिस्ट या अन्य मेडिकल स्टाफ की नियुक्ति नहीं है,ग्रामीण अंचलों में डॉक्टरों की नियुक्ति तो होती है है परन्तु वह लोग बड़े साहब की कृपादृष्टि पर या तो अपनी क्लिनिक चला रहे हैं या फिर कहीं और दूसरे जनपदों में रहते हैं।कभी कभार अपने नियुक्ति वाले अस्पताल में हाजिरी लगा भी लेते हैंयही वजह है कि सदर ग्रामीण इलाकों के सरकारी अस्पताल भगवान भरोसे चल रहे हैं।