Braiking : डाक्टर की लापरवाही के चलते एक बार फिर हुईं प्रसूता की मौत , अधिवक्ताओं ने घेरा निजी अस्पताल
Sonbhadra news
—पूर्व में भी इस अस्पताल में हो चुकी है मौतें , प्रशासन द्वारा किया जा चुका है सील , लीपा पोती के बाद खोले गए अस्पताल पर ताजा मामले में अधिवक्ताओं ने फिर लगाया अकुशल और अप्रशिक्षित डॉक्टरों से इलाज और मरीज की मौत का आरोप।
सोनभद्र । एक ताजा जानकारी के अनुसार सोनभद्र के एक अधिवक्ता सतीश विश्वकर्मा ने अपनी गर्भवती पत्नी को डिलेवरी के लिए रावर्ट्सगंज के एक निजी हॉस्पिटल में भर्ती कराया। वहां उन्हें बताया गया कि बच्चे की डिलीवरी के लिए ऑपरेशन करना पड़ेगा। ऑपरेशन के दौरान डॉक्टरों की लापरवाही के चलते रक्त नलिका के कटने और अत्यधिक रक्तस्राव के बाद जब मरीज की हालत बिगड़ने लगी तब अस्पताल के स्टाफ द्वारा बताया गया कि ब्लड कम हो गया है आप ब्लड का इंतजाम करिए। अधिवक्ता ने बताया कि इसके बाद मैंने एक यूनिट ब्लड का इंतजाम किया इसके कुछ देर बाद फिर कहा गया कि दो यूनिट ब्लड और चाहिए।इसके बाद हम और मेरे एक रिश्तेदार ब्लड बैंक में ब्लड देकर जैसे ही उक्त हॉस्पिटल पहुंचे तो देखे की हमारे मरीज को अस्पताल के लोग एक एम्बुलेंस में डाल रहे हैं। जब मैंने पूछा कि आप लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं तो उन लोगों द्वारा बताया गया कि इनकी हालत में सुधार नहीं हो रहा है इसलिए अपने वाराणसी के बड़े हास्पिटल में ले जा रहे हैं। बिगड़ती हालत में ही उसे वाराणसी के लिए रिफर कर दिया गया जहां इलाज के दौरान महिला की मौत हो गई ।
मरीज के परिजनों ने बताया कि वाराणसी में इलाज करने वाले डॉक्टरों ने बताया कि डिलीवरी के लिए किए गए ऑपरेशन में ब्लड की नस कट जाने की बजह से हुए अत्यधिक रक्तस्राव के कारण मरीज को नही बचाया जा सका।
जानकारी के अनुसार हॉस्पिटल की लापरवाही से अधिवक्ता की पत्नी की मौत की खबर जैसे ही सोनभद्र पहुंची आक्रोशित अधिवक्ताओं ने उक्त हॉस्पिटल पर रात में ही पहुँच कर जिला प्रशासन से उक्त हॉस्पिटल के खिलाफ कार्यवाही करने की मांग करने लगे।
अधिवक्ताओं ने बातचीत के दौरान आरोप लगाया कि स्वास्थ्य विभाग के संरक्षण में ही ऐसे हॉस्पिटल चल रहे हैं जहां न ही प्रशिक्षित डॉक्टर हैं और न ही प्रशिक्षित स्टाफ। अधिवक्ताओं ने आरोप लगाया कि लगातार ऐसे हॉस्पिटलों में मौतों की खबरें लगातार आ रही हैं पर क्या वजह है कि इन पर कोई कार्यवाही नहीं हो रही ? जबकि जिले में संचालित प्राइवेट हॉस्पिटलों की जांच के लिए बकायदा एक नोडल अधिकारी तैनात है ?इसके बाद भी यदि बरसाती कुकुरमुत्ते की उगे प्राइवेट हॉस्पिटल मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं तो निश्चित तौर पर इसके लिए जिनके कंधों पर इनके नियमन की जिम्मेदारी है वह सवालों के घेरे में हैं।
यहां यह भी बताते चलें कि यह कोई पहली घटना नही है, अभी एक सप्ताह पहले ही ऐसी एक और घटना प्रकाश में आई थी जिसमे एक प्राइवेट हॉस्पिटल में एक महिला जो कोन ब्लाक के किसी गांव की थी, का ऑपरेशन किया गया और जब ऑपरेशन के बाद उसकी हालत बिगड़ने लगी तो उक्त मरीज को यह कह कर कि उसे अपने वाराणसी के अपने बड़े हॉस्पिटल में ले जा रहे हैं, ले जाया गया जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गयी। मौत के बाद उक्त हॉस्पिटल के लोग परिजनों से महिला के इलाज के में लगे दवा आदि के नाम पर लाखों का बिल बना कर पकड़ा दिए और कहा कि जब तक उक्त बिल का भुगतान नहीं हो जाता तब तक लाश नहीं मिलेगी। कम पढ़े लिखे गरीब आदिवासी समाज के लोग परेशान हो गए और कई दिनों तक पैसे के इंतजाम में भटकते रहे।थक हार उन लोगों ने हिम्मत जुटाई और जिलाधिकारी सोनभद्र से अपनी गुहार लगायी, इसके बाद जिलाधिकारी के हस्तक्षेप करने पर उक्त हॉस्पिटल ने कई दिनों के बाद उसकी लाश परिजनों को शोंपी। आखिर यह कैसी बिडम्बना है जहां बड़ा बड़ा बोर्ड लगाकर रोज हॉस्पिटल तो खुल रहे हैं पर उनके बोर्ड पर लिखे डॉक्टरों की जगह वहां अप्रशिक्षित लोग मरीजो की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं और उनके नियमन की जिम्मेदारी जिनके कंधो पर है वह आंख मूंद सो रहे हैं।