कमलनाथ किसी भी कीमत पर दोबारा मुख्यमंत्री बनकर ज्योतिरादित्य सिंधिया से अपना हिसाब चुकता करना चाहते हैं। कांग्रेस आलाकमान उन्हें दिल्ली बुलाना चाहता है मगर कमलनाथ तैयार नहीं हैं।
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भोपाल । कांग्रेस के अंदर ‘इंटरनल पॉलिटिक्स’ बहुत धारदार होती है। पिछले काफी समय से कमलनाथ को दिल्ली शिफ्ट कराने की कोशिशें चल रही हैं। मगर कमलनाथ हैं कि दिल्ली आने को तैयार नहीं हैं। दिल्ली आने का मतलब मध्य प्रदेश छूट जाना है और वह किसी भी कीमत पर दोबारा मुख्यमंत्री बनकर ज्योतिरादित्य सिंधिया से अपना हिसाब चुकता कर लेना चाहते हैं।
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कहा जा रहा है कि जब उन पर नैशनल पॉलिटिक्स में भूमिका निभाने का दबाव बढ़ गया तो उन्होंने अपने लिए नई भूमिका की पेशकश की, जिससे वह नैशनल पॉलिटिक्स में भी आ जाएं और मध्य प्रदेश भी उनसे न छूटने पाए। वह हिंदी राज्यों के दलों के साथ समन्वय की जिम्मेदारी लेना चाहते हैं। ज्यादातर हिंदी राज्यों में कांग्रेस की स्थिति कमजोर है और वहां के इलाकाई दलों के साथ भी कांग्रेस का बेहतर कोआर्डिनेशन नहीं बन पा रहा है।
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यूपी, जहां से 80 लोकसभा की सीटें आती हैं, वहां पर कांग्रेस की दोनों दलों-एसपी और बीएसपी से दूरी बनी हुई है। 40 सीट वाले बिहार में भी आरजेडी का कांग्रेस के साथ अनुभव अच्छा नहीं रहा है। विधानसभा चुनाव में सत्ता से दूर रहने की वजह वह कांग्रेस को ही मानती है। पार्टी के कई सीनियर नेता यह बयान भी दे चुके हैं कि विधानसभा चुनाव में अगर कांग्रेस ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने की जिद न करती तो एनडीए को हराया जा सकता था।
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कमलनाथ के राजनीतिक अनुभव और अन्य दलों के नेताओं के साथ उनके बेहतर संबंधों को देखते हुए माना जा रहा है कि वह कांग्रेस के लिए उन दलों से तालमेल कर सकते हैं। देखने वाली बात होगी कि उनके इस नए प्रस्ताव पर कांग्रेस आलाकमान का क्या फैसला होता है? आलाकमान अगर उनकी इस भूमिका के लिए हामी भरता है तो उन्हें फौरी तौर पर यूपी के लिए अन्य दलों के साथ रास्ता बनाना होगा।