पार्टी का कहना है कि भारत जोड़ो यात्रा राजनीतिक नहीं है क्योंकि चुनावी जीत हासिल करना और राजनीतिक लाभ लेना पार्टी संगठन पर निर्भर करता है. ये बयान साफ तौर पर राहुल गांधी को भविष्य में होने वाले हमलों से बचाने के लिए है. अगर 2023 में राज्यों में होने वाले चुनाव और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन नहीं करती है.
विंध्य लीडर की खास रिपोर्ट
नई दिल्ली. कांग्रेस के लिए यह साल हार के साथ शुरू हुआ था लेकिन खत्म जीत पर हुआ. पंजाब में आपसी कलह से उपजी कड़वाहट और रणनीति की गलत गणना ने आम आदमी पार्टी (आप) को पंजाब में सत्ता में आने में मदद की, जिससे कांग्रेस के लिए राजनीतिक परिदृश्य एक विकल्प बन गया. हालांकि, पार्टी को गुजरात में देर से यह एहसास हुआ, जहां 2017 के अपने प्रदर्शन के विपरीत, कांग्रेस भाजपा के लिए एक कमजोर विपक्ष के रूप में सिमट कर रह गई.

हालांकि हिमाचल में मिली जीत ने कांग्रेस को थोड़ी उम्मीद और खुशी दी. इससे पता चला कि क्षेत्रीय नेताओं और स्थानीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित अभियान काम कर सकता है. लेकिन इसने राहुल गांधी की चुनाव जीतने की क्षमता पर भी सवालिया निशान लगा दिया क्योंकि वह पहाड़ी राज्य से दूर रहे, जबकि उनकी बहन प्रियंका वाड्रा, जिन्होंने चुनावों का प्रबंधन सूक्ष्म रूप से किया और बड़े पैमाने पर प्रचार किया, को अब गांधी के रूप में देखा जा रहा है जो चुनावी जीत सुनिश्चित कर सकती हैं.
लेकिन राहुल गांधी, जो कि भारत जोड़ो यात्रा पर हैं, पार्टी के लिए उच्च बिंदु और प्रेरक शक्ति बने हुए हैं.

तपस्वी के तौर पर गांधी
यात्रा का पहला पड़ाव 26 जनवरी को कश्मीर में खत्म होगा. यह तो साफ है कि पार्टी गांधी के लिए बड़ी योजना बना रही है. उन्होंने पार्टी अध्यक्ष बनने और चुनाव लड़ने से भी इनकार कर दिया था.
पार्टी का कहना है कि ये यात्रा राजनीतिक नहीं है क्योंकि चुनावी जीत हासिल करना और राजनीतिक लाभ लेना पार्टी संगठन पर निर्भर करता है. ये बयान साफ तौर पर राहुल गांधी को भविष्य में होने वाले हमलों से बचाने के लिए है. अगर 2023 में राज्यों में होने वाले चुनाव और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन नहीं करती है. लेकिन यह स्पष्ट है कि राहुल गांधी की छवि में बदलाव का काम चल रहा है और भविष्य में या फिर 2024 में उन्हें मोदी के खिलाफ खड़ा किया जा सकता है.
सबसे पहले उनकी छवि और शैली को तराशने के लिए थ्री बंदर एजेंसी को काम पर रखा गया. लगातार बढ़ती दाढ़ी और फिर उत्तर भारत में कड़कड़ाती ठंड में सिर्फ सफेद टीशर्ट पहनकर चलने तक, उन्हें एक तपस्वी, सादे और जमीनी नेता के रूप में दिखाने की कोशिश की जा रही है. यह आवश्यक हो गया है , क्योंकि उन्हें एक विनम्र पृष्ठभूमि से एक जमीन से जुड़े नेता के रूप में दिखाया जा रहा है. और शायद यही कारण है कि कांग्रेस को 2024 के लिए सही फॉर्मूला मिलने की उम्मीद है.
2024 की योजनाएं
2024 के लिए पार्टी की योजनाएं सरल हैं. एक गैर-गांधी अध्यक्ष जो कि दलित हैं और पार्टी अपने आप को आम आदमी की पार्टी के तौर पर पेश कर रही है. पार्टी की चुनावी टैगलाइन है- कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ जिसने 2004 में काम किया था. इसने अब भ्रष्ट, हकदार, यूपीए की छवि का मुकाबला करने के लिए वापसी की है जो कि 10 साल तक सत्ता में रही थी. खड़गे आक्रामक नेता हैं और यह स्पष्ट करते हैं कि उन्हें एक अछूत के रूप में देखा गया है और वे जोर देकर कहते हैं कि जीतने के लिए सभी को एकजुट होना चाहिए.
पार्टी द्वारा किए जा रहे विकल्पों और नियुक्तियों पर एक नज़र डालना अहम है. वरिष्ठों, कनिष्ठों और असंतुष्टों दोनों को साथ लेकर खड़गे का फॉर्मूला पलायन से परेशान पार्टी को एकजुट करना है. महारानी प्रतिभा सिंह की जगह एक ड्राइवर के बेटे सुखविंदर सुक्खू को हिमाचल का मुख्यमंत्री नियुक्त कर पार्टी एक और संदेश देना चाहती है कि जमीनी स्तर के कार्यकर्ता और विनम्र पृष्ठभूमि वाले लोग मायने रखते हैं.

पार्टी को उम्मीद है कि भाजपा के नैरेटिव का मुकाबला करने के लिए एक आक्रामक सोशल मीडिया और संचार बेहतर रणनीति होगी.
लेकिन यह सब तभी काम कर सकता है जब पार्टी कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे महत्वपूर्ण राज्यों में जीत हासिल करे. 2022 पार्टी के लिए मिलेजुले भाव लेकर आया. 2024 का रास्ता 2023 के चुनाव से होकर गुजरेगा.
क्या ये यात्रा सुरंग के आखिर में मिलने वाले उजाले के तौर पर होगी या कहीं नहीं जाने वाली सड़क की तरह ?