काश्तकारी खनन में किसान को हाईकोर्ट से मिली राहत,न्यायालय ने फर्म को जारी एल वाई को किया निरस्त
सोनभद्र से समर सैम की रिपोर्ट
सोनभद्र। मोरंग व पत्थर खनन में बढ़ती कमाई को देखते हुए खनन व्यवसायियों के साथ साथ अब किसान भी उनके निजी काश्त की जमीनों में जारी खनन पट्टों में दिलचस्पी लेने लगे हैं जिसकी वजह से अब किसानों व उनके काश्त की जमीनों पर एग्रीमेंट कराकर कुछ फर्मों द्वारा अपने पक्ष में कराए गए खनन पट्टों में फर्म के मालिकों व किसानों में विवाद उठ रहे हैं। कुछ इसी तरह के विवाद के बाद भी जिला प्रशासन ने एक फर्म के पक्ष में एल वाई जारी कर दी जिसके बाद किसान उच्च न्यायालय की शरण मे गया जहां न्यायालय ने किसान की बात से सहमत होते हुए जिलाधिकारी द्वारा फर्म के पक्ष में जारी एल वाई को निरस्त कर दिया।
मिली जानकारी के मुताबिक किसान रघूनाथ दुबे एवं कुछ अन्य किसानों ने अपने काश्त की जमीनों पर खनन के लिए आपसी सहमति से खनन के लिए सभी जरूरी प्रक्रिया को पूरी कर जिलाधिकारी के यहाँ आवेदन किया कि हमें हमारी उक्तआराजी में खनन करने की अनुमति दी जाए। किसानों के उक्त आवेदन को स्वीकार कर जिलाधिकारी ने खनन करने की अनुमति देते हुए प्रक्रिया अनुसार ई टेंडर निकाल दिया। इसके बाद इस पर गिद्ध निगाह जमाये कुछ शुद्ध खनन व्यवसाईयों की नज़र पड़ गयी और फिर शुरू हो गया खेला खनन का।एक फर्म ने ई टेन्डर में भाग लिया और उसने उच्चतम बोली लगा दी।इसके बाद किसान रघुनाथ दुबे ने शासन द्वारा जारी उस शासनादेश का हवाला देते हुए ,जिसमे यह प्रावधान किया गया है कि यदि निजी काश्त में कोई खनन पट्टा जारी किया गया है और उसमें ई टेंडर में किसी अन्य फर्म या पार्टी द्वारा उच्चतम बोली लगाकर टेंडर हासिल किया गया हो और यदि काश्तकार चाहे तो उक्त फर्म से एक रुपया अधिक देकर खनन पट्टा ले सकता है, के प्रावधानों के मुताबिक उन्हें खनन पट्टा दिया जाय।
इसके बाद उक्त फर्म द्वारा रघुनाथ दुबे के साथ सहमति दिए कुछ अन्य किसानों को खनन करने से रोकने के लिए उनके समूह से एक किसान सदस्य को तोड़ लिया गया और किसानों में आपसी विवाद दिखा दिया गया और इसी आधार पर जिलाधिकारी सोनभद्र ने अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए किसानों के इच्छा के विपरीत दूसरी पार्टी या फिर कहें कि उक्त खेल के मास्टरमाइंड उक्त फर्म के पक्ष में खनन के आदेश जारी कर उक्त फर्म के पक्ष में एल वाई जारी कर दी। थक हार कर लाचार किसानों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इलाहाबाद हाईकोर्ट के युवा अधिवक्ता कुमार शिवम एवं उनकी टीम ने ज़ोरदार तरीके से मुकदमे में किसानों की तरफ से ज़िरह किया। सबूतों व शासनादेशों को मद्देनजर रखते हुए माननीय हाईकोर्ट ने फैसला किसान के हक़ में सुनाया। फैसले के मुताबिक जिलाधिकारी के आदेश को पलटते हुए किसानों को राहत प्रदान किया। उक्त।खनन पट्टा आवंटन के इस खेल के प्रकरण में बसपा से बीजेपी का दामन थामने वाले चर्चित बाहुबली नेता का नाम भी सुर्खियों में है। हाईकोर्ट इलाहाबाद का फ़ैसला उक्त बाहुबली एन्ड कम्पनी के विपरीत आया है जो कि सोनभद्र के खनन क्षेत्रों में धीरे धीरे अपना पांव पसारने की कोशिशों में लगा है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर किन परिस्थितियों में जिलाधिकारी ने आदेश किसान रघुनाथ दुबे एन्ड कम्पनी के खिलाफ दिया था यह बात आज भी लोगों के समझ से परे है जबकि शासनादेश में साफ उल्लिखित है कि यदि जहां खनन की अनुमति मिली है उस आराजी नम्बरों का किसान चाहे तो उच्चतम बोली लगाए फर्म से एक रुपये बढ़ाकर खनन पट्टा अपने पक्ष में ले सकता है।
हाईकोर्ट का यह आदेश कई मायनो में खनिज विभाग के लिए नज़ीर बन जाएगा। शासन की मंशा के अनुरूप ही उच्च न्यायालय का यह फैसला आया है। नियम के मुताबिक निजी काश्त में होने वाले खनन पर पहला अधिकार टेंडर प्रक्रिया में भाग लेने वाले किसानों का ही है। अगर टेंडर किसी फर्म को हासिल हो जाता है तो ऐसे में एक रुपये बढ़ाकर उक्त टेंडर को सम्बंधित किसानों के द्वारा प्राथमिकता के आधार पर लिया जा सकता है। ऐसे में टेंडर किसान रघुनाथ दुबे एवं अन्य किसानों के पक्ष में किया जाना चाहिए था। सबसे अधिक बोली दाता फर्म के हाथों से जाल में आयी मछली की तरह टेंडर फिसलकर किसानों के हाथों में चला गया था।अब उक्त फर्म ने तिकड़म भिड़ा कर किसानों में विवाद पैदा करा दिया। इसमें से एक पार्टी ने डिस्प्यूटेड स्थिति के आधार पर खुद को अलग कर विवाद पैदा कर दिया। सम्भवतः इसी आधार पर जिलाधिकारी ने पहले टेंडर हासिल की हुई फर्म को अनुमति पत्र जारी कर दिया। इस पर खुद को पीड़ित महसूस करते हुए किसान रघुनाथ सिंह एवं अन्य ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में पिटीशन दाखिल की थी।
अदालत में जनपद सोनभद्र के उदयमान अधिवक्ता कुमार शिवम एवं उनकी टीम ने पीड़ित किसानों के मुकदमे की ज़ोरदार पैरवी किया। ज़ोरदार तरीके से मुकदमा लड़ने वाली वकीलों की टीम को अन्ततोगत्वा सफलता मिल गई।फैसला किसान रघुनाथ दुबे एवं अन्य के फेवर में आया। जिसकी चर्चा इलाहाबाद हाईकोर्ट से लेकर जनपद सोनभद्र तक रही। माननीय हाईकोर्ट ने जिलाधिकारी के आदेश को रद्द करते हुए किसानों के फेवर में फैसला सुनाया। अब उस किसान जिसके दम पर कहानी को पलटा गया था उसे अदालत ने एग्रीमेंट के मुताबिक लाभ का निश्चित हिस्सा देने की बात कही है। आखिर किस दबाव में जिलाधिकारी ने यह निर्णय लिया था इसे भली भांति समझा जा सकता है।