(समर सैम)
सोनभद्र। गुलाम भारत के पश्चिमोत्तर प्रान्त में सोनभद्र को काला पानी के नाम से जाना जाता था। किसी ज़माने में जिसके नाम से ही लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते थे। बागियों को सबक सिखाने के लिए अंग्रेज़ सरकार कालेपानी की सज़ा देती थी। कालांतर में यहां नील की खेती के लिए बंदियों को रखा जाने लगा था। यह खतरनाक जीव जंतुओं से भरा काला पानी मिर्ज़ापुर जिले में था। पर्सी विंढम 1900 से 1913 तक मिर्ज़ापुर के कलेक्टर रहे। हिंदुस्तान के वह पहले कलेक्टर हैं जो 13 वर्षों के सर्वाधिक अवधि तक कलेक्टर के पद पर विराजमान रहे। कलेक्टर साहब एडवेंचर और शिकार के बहुत शौकीन थे। कलेक्टर साहब के उसवक्त जिगरी यार हुआ करते थे खतरों के खिलाड़ी मशहूर शिकारी जिम कार्बेट। जिम ने अपनी पुस्तक ‘मैन इटर्स ऑफ कुमायूं’ में सोनभद्र के खतरनाक जंगल का जिक्र करते हुए लिखा है कि दुद्धी में एक आदमखोर बाघ ने आतंक मचा रखा था। वह दर्जनों ग्रामीणों को घायल कर चुका था और 8 लोगों को अपना शिकार बना कर खा चुका था। घात लगाकर हमला करने वाले विशालकाय आदमखोर बाघ की हिम्मत इतना बढ़ गई थी कि वह इंसानी बस्ती में घुसकर ग्रामीणों पर हमला करने लगा था। एक बार इस नरभक्षी ने देन्दु पत्ता तोड़ती महिलाओं के समूह पर हमला कर 2 महिलाओं को एक साथ मौत के घाट उतार दिया था।

दुद्धी के आदिवासियों के बीच काम कर रहे ईसाई मिशनरियों ने मिर्ज़ापुर पहुंचकर कलेक्टर विंढम साहब को आदम खोर बाघ के आतंक की दिल दहला देने वाली दास्तां बताते हुए मदद की गुहार लगायी। कलेक्टर साहब ने एक महीने के अथक प्रयास के बाद ही आखिरकार उस आदमखोर बाघ को मारकर ग्रामीणों की सुरक्षा की। जिसके चलते वह ग्रामीणों के हीरो बन गये थे। उसके पश्चात उनके नाम पर विंढमगंज पुलिस चौकी बनी। सोनभद्र के जंगल में खतरनाक जानवर और ज़हरीले कीडों की भरमार थी। खतरनाक जानवरों और ज़हरीले सापों ने कदम कदम पर मौत का जाल बिछा रखा था। अगर कोई मौत के इस जाल से बच गया तो उसे ख़तरनाक जलीय जीव जंतु अपना शिकार बना लेते थे। इसी कारण बागियों को यहां की सज़ा दी जाती थी।

परन्तु आप जनपद सोनभद्र के मुख्यालय रॉबर्ट्सगंज में स्थित सदर तहसील के रेवेन्यु हवालात को देखकर तिहाड़ जेल की कालकोठरी को भी भूल जाएंगे। यहां न पंखा था और न मई जून में जेठ की तपती दुपहरिया की गर्मी में प्यास बुझाने के लिए ठंडा पानी। इसी राजस्व विभाग के बन्दीगृह में बंद किया गया था सुधाकर दुबे को। मूलतः मिर्ज़ापुर के रहने वाले सुधाकर दुबे की रॉबर्ट्सगंज नगर में मेसर्स दुबे इलेक्ट्रॉनिक के नाम से शॉप है। आर्थिक तंगी के चलते सुधाकर दुबे यूनियन बैंक ऑफ इंडिया रॉबर्ट्सगंज शाखा से महीनों की दौड़ भाग और घूस देकर तक़रीबन 10 लाख 30 हज़ार रुपये कर्ज़ हासिल करने में सफल रहे। खैर उस वक्त देश और पूरा विश्व ही आर्थिक तंगी की मार झेल रहा था। स्थिति ठीक न होने के चलते बैंक की किश्त अदा करने में दिक्कत आने लगी। सम्मन तामिला के बाद तहसीलदार सदर बृजेश कुमार वर्मा की अगुवाई में सुधाकर दुबे को पकड़कर 12 मई 2022 को तहसील के रेवेन्यु लॉकअप में डाल दिया गया। उस वक्त भयंकर गर्मी पड़ रही थी। भीषण गर्मी देखकर ऐसा लग रहा था कि इसबार शायद गर्मी अपने अगले पिछले सारे रिकॉर्ड को ध्वस्त कर एक नया कीर्तिमान स्थापित करना चाह रही हो। पंखा नदारद और पीने के लिए गर्मी से खौलता पानी गले को झुलसाने और अंतड़ियों को जलाने के लिए पर्याप्त था। राजस्व विभाग के हवालात के आगे हिटलर द्वारा जर्मनी में बनाया गया यातना शिविर भी कुछ नहीं है। अमेरिकी सैन्यबल द्वारा इराक में बनाया गया अबु ग़रीब प्रिज़न टार्चर जेल भी इस राजस्व हवालात से भयानक नहीं होगा।
इसी भयंकर गर्मी में भूख और प्यास से बेहाल बन्दी सुधाकर दुबे एक हफ्ता के पश्चात 19 मई 2022 को अचेत होकर हवालात में गिर पड़े। सूचना मिलने पर परिजन उन्हें लेकर जिला अस्पताल लोढी पहुंचे। वहां से उन्हें बीएचयू वाराणसी के लिए रेफर कर दिया गया। परन्तु रास्ते में ही सुधाकर दुबे की मौत हो गई। इस पर मृतक सुधाकर दुबे के पुत्र नीरज दुबे का कहना है कि जब मैंने हवालात की फर्श पर मूर्छित पड़े पिताजी के कलाई की नस दबाया तो कोई हलचल नहीं हो रही थी, जिस्म ठंडा पड़ चुका था। ऐसा लग रहा था कि वह लॉकअप में ही भूख प्यास से तड़प तड़पकर दम तोड़ चुके थे। उन्होंने कहा कि मैं मरने से पहले पिताजी से बन्दी गृह में आकर मिला था। पिताजी ने कहा कि भूख प्यास से मेरी तबियत बिगड़ रही है। मुझे अस्पताल ले चलो। जब मैंने पिताजी की नाजुक हालत के बारे में तहसीलदार साहब को बताया तो उन्होंने गाली देते हुए डांटकर अपने चेम्बर से भगा दिया। उन्होंने आगे बताया कि अगर समय रहते तहसीलदार ने मेरी बात पर मानवीयता दिखाई होती तो शायद मेरे पिताजी की जान बच जाती।
घर से खाना और ठंडा पानी लेकर जाता था तो वहां तैनात राजस्व कर्मी भगा देते थे।

खैर बेटा अपने पिताजी की जान बचाने के लिए साहब से हाथ जोड़कर ज़िन्दगी की भीख मांगता रहा। परन्तु साहब का निष्ठुर हृदय नहीं पसीजा। अमानवीयता के इस नरकीय रूप को सुनकर मुंशी प्रेमचंद की कहानी मंत्र की याद पूरे वजूद को हिलाकर रख देती है। जब बूढ़ा भगत डॉ चड्डा से अपने बच्चे को एक नज़र देखने की विनती करता है। दुबे परिवार की आमोद प्रमोद रूपी नौका अचानक से जलमग्न हो गई। जो न होना था, वह हो गया। महज़ दस लाख रुपये व्यापार हेतु लिए कर्ज़ की ख़ातिर सिस्टम के हाथों एक छोटे व्यापारी का क़त्ल हो चुका था। इतनी बड़ी सज़ा उसे मिली, जिसका वह हक़दार नहीं था। लाखों का स्टाइलिश सूट पहनने वाले देश के चौकीदार की नाक के नीचे से अरबों रुपये देश का लेकर एक दर्जन गुजराती जालसाज देश से फ़रार हो गये। परन्तु उनका बाल भी बांका नहीं हुआ। दुनिया का तीसरे नम्बर का अमीर गौतम अडानी हिन्डेनबर्ग रिपोर्ट के पब्लिश होते ही दुनिया के टॉप टेन की लिस्ट से बाहर हो गया। गौतम अडानी ने इस रिपोर्ट को राष्ट्रीय अस्मिता पर हमला बताया। हिन्डेनबर्ग रिपोर्ट ने पलटवार करते हुए जवाब दिया कि फ्रॉड को राष्ट्रवाद के पीछे नहीं छुपाया जा सकता। उन्हें तीन दिन में 34 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। मोदी सरकार ने कई हज़ार करोड़ का अडानी समूह का पहले ही ऋण माफ कर दिया था। परन्तु आम नागरिकों संग लोन न चुकाने पर कैसा सुलूक किया जाता है , मृतक सुधाकर दुबे पर तोड़े गये ज़ुल्मों सितम महज़ इस क्रूर चेहरे की बानगी भर है। सिस्टम द्वारा आज़ाद भारत में अब तक न जाने कितने सुधाकर दुबे को रेवेन्यु विभाग की कालकोठरी में क़ैद कर मौत के घाट उतारा जा चुका है।
सुधाकर दुबे की इस क्रूर मौत के बाद मुख्यालय में आक्रोश व्याप्त हो गया। तमाम समाजिक संघठनों ने इस पर विरोध प्रदर्शन किया। भाजपा के जिलाध्यक्ष धर्मवीर तिवारी ने पीड़ित परिवार को इंसाफ दिलाने की मांग प्रशासन से की। वहीं योगी सरकार पर विपक्ष ने भी निशाना साधा। वकीलों ने भी मुखर होकर अपना विरोध जताया। ततपश्चात जिलाधिकारी सोनभद्र चन्द्र विजय ने एडीएम न्यायिक भानु प्रताप यादव को इस प्रकरण में जांच के आदेश दिए। एडीएम ने अपनी जांच में उसवक्त के एसडीएम राजेश कुमार सिंह एवं उसवक्त के तहसीलदार बृजेश कुमार वर्मा को दोषी पाया। जांच में यह बात निकलकर सामने आई कि तहसीलदार ने इलाज के लिए परिजनों द्वारा अस्पताल ले जाते समय साथ में किसी राजस्वकर्मी को नहीं भेजा और न ही मौके पर स्वयं गये। सुधाकर दुबे की मौत होने पर शव के पोस्टमार्टम के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया। आनन फानन में अस्पताल के लिए कागज़ बना कर घर वालों को सुपुर्दगी दे दिया गया। वहीं एसडीएम ने भी इस मामले में शिथिलता बरती। इतनी बड़ी घटना को छुपाए रखा और अपने उच्चाधिकारियों को भी इस मामले से अवगत नहीं कराया।

जांच रिपोर्ट में तहसीलदार और एसडीएम के दोष सिद्धि के बाद भी उनपर कोई कारवाई नहीं कि गई। अलबत्ता तहसीलदार को दुद्धी और एसडीएम को ओबरा में तैनाती दे दी गई। जांच को तीन माह का समय गुज़र जाने पर जनहितवादी समाजसेवी एवं पूर्वांचल के नामचीन बैरिस्टर विकास शाक्य ने मृतक सुधाकर दुबे के सुपुत्र नीरज दुबे के साथ इलाहाबाद हाईकोर्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का दरवाज़ा खटखटाया। पीयूसीएल के प्रदेश संगठन सचिव विकास शाक्य के पिटीशन पर मानवाधिकार आयोग ने उत्तर प्रदेश सरकार को आदेशित किया कि मृतक के परिजन को 10 लाख रुपये एवं न्याययोचित जांच की जाये। परन्तु इस पर उत्तर प्रदेश सरकार ने अमल नहीं किया। इसी दौरान शुक्रवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में बैरिस्टर विकास शाक्य की पिटीशन पर सुनवाई करते हुए दो जजों सूर्य प्रकाश केशरवानी और जयंत बनर्जी की बेंच ने सख़्त रुख अपनाया। प्रमुख सचिव राजस्व को तलब कर इस प्रकरण में क्या कार्रवाई हुई एक हफ्ते में कोर्ट में हलफनामा पेश करने को कहा। सुधाकर दुबे की राजस्व बंदी गृह में हुई मौत प्रकरण में उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने प्रमुख सचिव गृह और राजस्व सचिव उत्तर प्रदेश को अमानवीय कृतियों व दुर्व्यवस्था पर फटकार भी लगाई। साथ ही जिला स्तर पर हुई मजिस्ट्रेटियल जांच को भी पूर्वाग्रह और दूषित बताते हुए जिलाधिकारी सोनभद्र की भूमिका पर भी सवाल उठाए थे। इनसब के बाद भी संज्ञेय अपराध की रिपोर्ट तक दर्ज नहीं किया गया था।

पीड़ित परिवार को मुआवजा व नवीनतम जांच की अद्यतन रिपोर्ट के साथ 3 फरवरी को उच्च न्यायालय में पुनः तलब किया गया है। उच्च न्यायालय के सख़्त रुख़ को देखते हुए आनन फानन में शनिवार की रात डीएम सोनभद्र चन्द्र विजय के निर्देश पर हांफते काँपते सदर तहसीलदार सुनील कुमार तहरीर लेकर सदर कोतवाली रॉबर्ट्सगंज पहुंचे। इस मामले में कोतवाल बालमुकुंद मिश्र ने बताया कि तहरीर के आधार पर रात्रि में धारा 304 भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत गैर इरादतन हत्या के आरोप में एसडीएम और तहसीलदार के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर विवेचना अमल में लाई जा रही है। इसपर बैरिस्टर विकास शाक्य ने कहा कि वादी मुकदमा के निचले रैंक के ऑफिसर से विवेचना कराई जा रही है जो प्रतिस्थापित विधि व्यवस्था के विरुद्ध है। इंसानियत के रूह को फ़नाह कर देने वाले इस जघन्यतम अपराध पर बैरिस्टर विकास शाक्य ने कहा कि निष्पक्ष विवेचना और दोषियों को सजा दिलाने तक यह संघर्ष जारी रहेगा।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की तल्ख़ टिप्पणी के बाद कमिश्नर विंध्याचल मंडल की अगुवाई में डीएम मिर्ज़ापुर दिव्या मित्तल एवं एसपी सोनभद्र डॉ यशवीर सिंह ने इस प्रकरण में जांच किया। जांच के दौरान राजस्व हवालात की दुर्दशा पर मंडलायुक्त से सवाल करने पर उन्होंने इसमें सुधार के लिए शासन को अवगत कराने की बात कही। वहीं तहसीलदार और एसडीएम को भी दोषी करार दिया। रेवेन्यू लाकअप मैनुअल की जानकारी मंडलायुक्त को भी नहीं थी। यह अंग्रेजों का बनाया हुआ राजस्व बन्दी गृह है। जिसके कोई नियम अभी तक देश में अलग से नहीं बनाया गया है। आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं हमसब और घोर आश्चर्य की बात यह है कि अभी तक हमारे पास अलग से रेवेन्यू लाकअप मैन्यूल्स नहीं बनाया जा सका है यह कैसी बिडम्बना है ?