
डाला/ओबरा स्थित पत्थर की खदानों से निकलने वाले पत्थरों को क्रश कर गिट्टी बनाने के लिए लगे क्रेशर और फिर क्रेशर से तैयार खनन सामग्री को बाजर तक पहुंचाने के लिये तेज सडकों पर तेज रफ्तार के साथ खुले वाहनों में पत्थर-बोल्डर की हो रही ढुलाई, यह मनमानी कहीं लोगों के जान पर पड़ न जाए भारी।
संवाददाता कैलाश बिहारी की खनन क्षेत्र की पड़ताल करती एक रिपोर्ट
डाला/ओबरा ,सोनभद्र। जिले की डाला-ओबरा की खदानों से निकलने वाले पत्थरों से लदी टीपर व अन्य बड़े वाहन बड़े हादसे का कारण बनने को आतुर दिखलाई दे रहे हैं। क्षमता से अधिक बोल्डर लादकर कस्बे की सड़कों पर दौड़ रहे टीपर और अन्य बड़े वाहनों से गिरने वाले बोल्डर तथा छोटी वाली हाफ इंची गिट्टी -भस्सी सड़क पर इधर-उधर चारों तरफ बिखरे पड़े हुए है जिनसे आवागमन में परेशानी होने के साथ-साथ इन वाहनों से बराबर दुर्घटना का भी अंदेशा बना रहता है।यहां आपको बताते चलें कि इन ओवरलोड बोल्डर लदे वाहनों पर सुरक्षा के कोई भी बंदोबस्त ना होने से सड़क पर ब्रेकर या गड्ढा इत्यादि आने पर इन वाहनों के हिचकोले लेने पर बोल्डर या गिट्टी छिटकर गिरने का भय बना रहता है । ऐसे में इन बोल्डर लदे वाहनों के पीछे और अगल बगल से गुजरने वाले छोटे वाहनों यथा कार,आटो,बाइक सवार तथा पैदल जा रहे लोगों को अधिक खतरा बना रहता है। मजे की बात यह है कि इस पर किसी भी अधिकारी व संबंधित महकमे के लोगों का ध्यान ना जाने से ऐसे वाहन चालक सुरक्षा नियमों की खुली अनदेखी करते हुए धड़ल्ले से ओबरा,डाला,की सड़कों पर दौड़ रहे हैं,जिनसे बराबर जान माल का लोगों को खतरा बना रहता है।

ओबरा कस्बे से होकर गुजरने वाले मुख्य मार्ग यहाँ तक कि ओबरा से हाईवे को जोड़ने वाले मुख्य मार्ग बघ्घानाला, शारदा मंदिर, बिल्ली चढ़ाई ,बिल्ली स्टेशन गजराज नगर, डाला रोड रेलवे क्रॉसिंग के आसपास के सड़कों की दोनों पटरियों पर बोल्डर छोटी वाली गिट्टी धूल भस्सी के बिखरे हुए ढ़ेर को देखा जा सकता है जिसपर आएदिन फिसल कर लोग घायल हो या तो अपनी जानगवां रहे हैं या फिर हाथ पैर तुड़वा अस्पतालों का भारी भरकम बिल भरने को मजबूर हो रहे हैं। मजे की बात तो य़ह है कि उक्त सभी रास्तो पर इधर से उधर तक उन अधिकारियों की गाड़ियां सरपट दौड़ रहीं हैं जिनके कँधों पर इन हालातों पर काबू पाने की जिम्मेदारी है पर वह लोग जैसे आंख मूँद कर रास्तों से गुजर जा रहे हो ? सड़क किनारे इतनी भारी मात्रा में बोल्डर भस्सी और छोटी वाली गिट्टी बिखरी पड़ी है और धूल डस्ट से होता प्रदूषण लोगों को कई प्रकार की बीमारियां फैला रहा है पर किसीजिम्मेदार को य़ह क्यूँ नहीं दिख रहा य़ह सवाल यहां के लोगों को समझ में नहीं आ रहा है ।इन रास्तों से आने जाने वाले राहगीरों को प्रदूषण झेलना पड़ता है।लेकिन किसी अधिकारी को नज़रें इस पर नहीं पड़ती हैं।

पूर्व में कई लोग सड़क की पटरियों पर बिखरे खदानों से निकलने वाले इस धूल भस्सी व पत्थर के बोल्डरों से टकराकर या तो घायल होकर अस्पताल का बिल चुकाते हुए अपनी गाढ़ी कमाई से हाथ धो लिए या फिर अपनी जान गंवा चुके हैं, बावजूद इसके ऐसे लोगों पर जो इसके लिए ज़िम्मेदार हैं उन पर न तो कोई कार्रवाई हो रही है और ना ही ऐसे वाहनों पर नकेल कसी जा रही है। लोगों द्वारा आशंका जताई जा रही है कि शायद किसी बड़े हादसे के बाद ही प्रशासन का नजरें इस ओर इनायत होंगी जिस तरह से विगत दिनों एक खदान ढहने के बाद मजदूरों की हुई मौत के बाद प्रशासन की कुंभकर्णी नींद खुली थी।
—धूल से बचने के लिए नहीं होता पानी का छिड़काव
खदानों, क्रेशर प्लांट से निकलने वाले खनिजों की धूल के हवा में उड़ने, गाड़ियों से गिरने वाले डस्ट कण सड़कों की दोनों पटरियों पर जमा होकर आवागमन में जानलेवा साबित हो रहे हैं तो दूसरी ओर उड़ने वाले धूल कण लोगों को सांस लेने में तकलीफ़ पैदा कर रहे हैं।नियमतः जब क्रेशर का संचालन किया जा रहा हो तब क्रेशर प्लांट के चारों तरफ पानी का छिड़काव किया जाना चाहिये जिससे कि पत्थर क्रश कर गिट्टी निर्माण करने में उड़ने वाले डस्ट को कम किया जा सके पर आसपास के लोगों का कहना है कि इसके रोकथाम के लिए पानी का छिड़काव भी नहीं होता है। दिखावे और खानापूर्ति के लिए जब अधिकारी दौरे पर रहते हैं तो पानी का छिड़काव सुबह शाम देखने को मिलता है। जैसे ही अधिकारी जाते हैं, वैसे ही पानी का छिड़काव भी बंद हो जाता है। सड़क की पटरियों पर जमें धूल और बालू इत्यादि के कण आवागमन में बाधक बने होने के साथ-साथ दुर्घटना का कारण भी बन रहे हैं।

—-बख्शीश के चक्कर में पत्थरों की ढुलाई में लगे वाहन चालक भर रहे हैं फर्राटा—-
खदान क्षेत्र से गुजरने वाली सड़कों के किनारे गिरे बोल्डर को उठाकर किनारे करते हुए आसपास के रहवासी बताते हैं कि ड्राइवर को हर चक्कर का बख्शीश मिलता है जो ₹20 से लेकर ₹50 तक होता है इस लिए वह और रफ्तार से चलते हैं ताकि जितना ज्यादा चक्कर लगाएंगे उतना ही उनको फायदा होगा। जानकार बताते हैं कि ज्यादा चक्कर लगाने से खदान मालिक भी खुश, क्रेशर मालिक भी खुश और ड्राइवर भी खुश हो जाते हैं। यही कारण है कि ड्राईवर तेज रफ्तार से गाड़ी चलाते हैं जिसकी रफ्तार कभी कभी 80 किमी प्रति घंटे तक पहुंच जाती है। ऐसे में तेज रफ्तार जब कमाई से जुड़ गया, इससे भले ही किसी का अंग-भंग हो जाए इससे इन्हें कोई लेना देना नहीं, उनके सामने जो भी आएगा उसको यह कुचल दें या ठोक दे कोई गम नहीं।दुर्घटना होने के बाद अक्सर ड्राइवर फरार हो जाता है, या खदान, क्रेशर प्लांट मालिक रुपयों और ऊंचे रसूख के बल पर घायल की आवाज को दबा देते हैं। यहाँ तक देखने को मिल जाता है खदानों से निकलने वाली गाड़ी की रफ्तार 80 किलोमीटर तक है और उसपर संकरा रास्ता होता है और वह जल्दी चक्कर लगाने के लिए एक दूसरे से ओवरटेक भी करते हैं। गाड़ी में ओवरलोड बोल्डर भी लेकर चलते हैं और ओवरटेक भी करते हैं। जिससे पशु, साइकिल, मोटरसाइकिल से चलने वाले लोग अक्सर ही इनकी चपेट में आकर दुर्घटनाओं का शिकार हो जाते हैं। इन सरपट दौड़ते वाहनों से आसपास के ग्राम वासियों में भय का माहौल बना रहता है। सड़क पर सरपट दौड़ते इन वाहनों से गिरते पत्थरों से आने-जाने वाले लोगों को इन वाहनों से खतरा बना रहता है। वहीं रोड के किनारे जमा हो गयी भस्सी , गिट्टी, बौल्डर से आम लोगों का जीना मुश्किल हो गया है इतना ही नहीं सड़क से आने जाने वाले लोगों का उड़ने वाले डस्ट व प्रदूषण से हाल य़ह हो जाता है कि उसका पूरा शरीर ही सफेद धूल से ढक जाता है।यदि जल्द ही इस समस्या की तरफ ध्यान नहीं दिया गया तो य़ह इतनी बढ़ सकती है कि पूरे खनन क्षेत्र को बंद करने पर मजबूर कर देगी जिससे रोजगार का संकट पैदा हो सकता है व।।
