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एनटीपीसी-विंध्याचल में 2024 के अंतर्गत दो दिवसीय ‘ जख्म मुंशी की कलम के ‘ नाट्य समारोह का किया गया आयोजन

अन्तिम दृश्य में हामिद के साथ सभी पात्रों का आना और यह कहना कि आज हम सब इस जमाने के लिए पुराने पड़ गये हैं, कोई नहीं पूछता हमें। कम से कम आप तो हमें अकेला मत छोड़िये। यह सुनकर प्रेमचन्द की वेदना द्रवित होकर उनकी लेखनी की शब्द की ही तरह फूट पड़ती है।

विंध्यनगर । सिंगरौली । 30 सितम्बर 2024 ।एनटीपीसी-विंध्याचल राजभाषा अनुभाग द्वारा 2024 के अंतर्गत 2024 हेतु विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा रहा है। इसी कड़ी में राजभाषा अनुभाग द्वारा राजभाषा के प्रचार-प्रसार हेतु संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार एवं एनटीपीसी, विंध्याचल के सहयोग से तिलब्ध रंग संस्था समूहन कला संस्थान द्वारा दो दिवसीय समूहन नाट्य समारोह के आयोजन किया गया।

समारोह के प्रथम दिन कथा सम्राट मुशी प्रेमचन्द के तीन कहानियों पर आधारित समसामयिक दृष्टिकोण से संबन्धित मानवेन्द्र त्रिपाठी 2 नाटक ‘जख्म मुंशी की कलम के’ का राजकुमार शाह के निर्देशन में  28 सितम्बर को परियोजना के उमंग भवन सभागार में सायंकाल मंचन किया गया।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में मुख्य महाप्रबंधक (प्रचालन एवं अनुरक्षण) श्री समीर शर्मा मुख्य महाप्रबंधक (चिकित्सा) डॉ. बी सी चतुर्वेदी उपस्थित रहे। इसके अलावा मानव संसाधन प्रमुख (एनटीपीसी विंध्याचल)  राकेश अरोड़ा, सभी महाप्रबंधकगण, विभागाध्यक्ष, निदेशक (समूह कला संस्थान) राजकुमार शाह एवं उनकी टीम, सुहासिनी संघ की पदाधिकारी एवं सदस्याएँ, राजभाषा विभागीय प्रतिनिधि सम्मिलित हुये। साथ ही डीपीएस , डी पाल , एस एस एम  तथा शासकीय स्कूल, विध्यनगर के प्रधानाध्यापकगण के साथ-साथ वरिष्ठ अधिकारी, कर्मचारी एवं उनके परिवारजन उपस्थित रहें और इस नाट्य समा रोह का भरपूर आनंद उठाया।

प्रेमचन्द की रचनाएं ऐसी समसामयिक और कालजयी हैं कि पठन पाठन के अन्तर्गत कोई न कोई कहानी लोग अक्सर पढ़ ही लेते है। इसी पढ़ने के क्रम में इस नाट्य प्रस्तुति की कल्पना बनी कि अगर कहानी के पात्र किताबों से निकल कर जीवन्त रुप में स्वयं लेखक के समक्ष उपस्थित हो जाए तो लेखक और पात्रों की मनःस्थिति और उनके बीच भावनाओं का आदान प्रदान किस रुप में होगा। यही विचार प्रस्तुति की रचना का आधार बनी। लेखक जब स्वयं पात्र के रुप में रचित रचना के पात्रों के साथ अभिनेता के रुप में अभिव्यक्ति व्यक्त करे तो नाट्य रचना के भावार्थ और स्पष्ट रूप से सामने आयेंगे। नाटक की शुरुआत प्रेमचन्द और ‘ठाकुर का कुआँ की मुख्य पात्रा गंगिया के संवाद से प्रारम्भ होती है। प्रेमचन्द की तीन कहानियाँ ठाकुर का कुआँ, कफ़न, ईदगाह के पात्रों के माध्यम से एक दूसरे से जुड़ती चली जाती है। कहानियों के संवाद को वर्तमान समय की स्थिति परि स्थिति के दृष्टिकोण से देखने की जो कोशिश लेखक मानवेन्द्र त्रिपाठी ने की है यहकाबिले तारीफ है। अन्तिम दृश्य में हामिद के साथ सभी पात्रों का आना और यह कहना कि आज हम सब इस जमाने के लिए पुराने पड़ गये हैं, कोई नहीं पूछता हमें। कम से कम आप तो हमें अकेला मत छोड़िये। यह सुनकर प्रेमचन्द की वेदना द्रवित होकर उनकी लेखनी की शब्द की ही तरह फूट पड़ती है। तीनो कहानियों की आत्मा को निर्देशक राजकुमार शाह ने बड़े  प्रभावशाली निर्माण किया है।

नाट्य प्रस्तुति “ज़ख्म मुशी की कलम के”, अपने कथ्य, शिल्प और संगीत से संवेदनहीन विद्रुप कठोर समाज की सोई आत्मा को जगाने के प्रयास में सतत रत् कलम के सिपाही के दर्द को रेखांकित करती है। मंच पर गंगिया की भूमिका को रिम्पी वर्मा ने जीवंत किया। जोखू की भूमिका में राजन कुमार झा, घीसू और माचव सुनील कुमार और हेमेश कुमार, अमीना और हामिद के रूप में खुशबू निशा और प्रियांक शर्मा ने अपने अभिनय से प्रभावित किया। ठकुराईन रितिका सिंह, मनीषा प्रजापति कोरस गायन में रूद्र रावत और रितिका सिंह, संगीत वृंद में हारमोनियम पर अजीत शर्मा, रिापर गौरव शर्मा, ध्वनि प्रभाव एवं क्रियेटिव सपोर्ट रविप्रकाश सिंह, हर्ष चौहान  रूपसज्जा एवं मंच प्रबंध में हेमेश कुमार, मनीषा प्रजापति, सुनील कुमार, राजन कुमार झा ने नाटक को सार्थक गति दी। प्रकाश योजना मो० हाफीज, नाट्यालेख मानवेन्द्र त्रिपाठी गीत वैभव बिंदुवार प्रस्तुति परिकल्पना एवं निर्देशन राजकुमार शाह का और प्रेमचन्द की भूमिका में स्वयं निर्देशक ने ठोस धरातल प्रदान किया।

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