सम्पादकीय
हाल ही में हुये पंचायत चुनाव में जिस तरह से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने पार्टी के अन्दर अंतर्कलह के बाद भी जिस तरह से जिला पंचायत के 75 सीटों में से 66 पर विजय हासिल करने के बाद अब शायद ही कोईं होगा जो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चुनौती देने का साहस करेगा।
इस चुनाव में भाजपा की मुख्य प्रातिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी को मात्र पांच सीटें प्राप्त हुईं। मतलब भाजपा के 88 प्रातिशत के मुकाबले सपा को छह प्रातिशत सफलता मिली। समाजवादी पार्टी के नेता आरोप लगा रहे हैं कि भाजपा ने जिला प्राशासन के सहयोग से इतनी सीटें जीती हैं। जिला प्राशासन ने उनकी पार्टी के प्रात्याशियों के खिलाफ कड़ाईं बरती। सपा नेतृत्व वुछ स्पष्ट तो नहीं कर पा रहा है कि जिला प्राशासन ने किस तरह उसके प्रत्याशियों को जीत हासिल करने से रोका किन्तु यदि मान भी लिया जाए कि जिलों में डीएम और एसपी के स्तर पर सपा के साथ ज्यादती हुईं है तो यह मानना मुश्किल है कि ज्यादती इतनी ज्यादा हुईं कि इससे भाजपा के 66 प्रत्याशी जीत गए और सपा के 70 प्रत्याशी हार गए। यदि सपा के प्रत्याशियों के साथ ही जिला प्राशासन ज्यादती करता है तो रायबरेली में भाजपा पहली बार क्यों जीत गईं, जहां परंपरागत रूप से सपा कांग्रेस के लिए मैदान छोड़ देती है। सपा नेतृत्व के पैतृक गढ़ मैनपुरी में सपा का हारना इस बात का द्योतक है कि सपा आरोप जो भी लगाए किन्तु इस बात का एहसास उसे भी है कि लगभग साढ़े चार वर्षो में पार्टी को जो संगठनात्मक मजबूती हासिल करनी चाहिए थी, उसे वह हासिल नहीं कर पाईं है।जिला पंचायत के चुनावों में तब कांग्रोस भी 80-85 प्रातिशत जीत हासिल करती थी जब सहकारिता व्यवस्था में उसकी पकड़ मजबूत थी।बहरहाल जिला पंचायत के चुनाव में भारी जीत से 2022 में सम्पन्न होने वाले विधानसभा चुनाव में जीत की गारंटी तो नहीं दी जा सकती किन्तु इस जीत से यह आकलन तो किया ही जा सकता है कि मुख्यमंत्री योगी की लोकप्रियता में कमी नहीं आईं है। वे आज भी उत्तर प्रादेश के सबसे ज्यादा प्राभावी एवं लोकप्रिय नेता हैं। इससे पार्टी में उनके खिलाफ बोलने का कोईं साहस भी नहीं करेगा। और सबसे बड़ी बात तो यह है कि विधानसभा चुनावों के पहले यह परिणाम एक सुखद आहट है।