Friday, March 29, 2024
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उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव,2022 की चर्चाओं के बीच भूतपूर्व मुख्यमंत्री डॉ संपूर्णानंद की 132वीं जयंती पर उनका पुण्य स्मरण

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साहित्य,संस्कृति और राजनीति के सेतुपुरुष थे बाबूजी

पंकज कुमार श्रीवास्तव

आचार्य नरेंद्र देव समाजवादी आंदोलन के भीष्म पितामह माने जाते हैं।उनकी ही पहल पर कांग्रेस के भीतर 1934 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी बनी थी।लखनऊ विवि और बीएचयूके कुलपति रहे आचार्य ने कांग्रेस से अलग होकर प्रजा समाजवादी पार्टी बना ली थी।सवाल आया कि पार्टी का घोषणा पत्र लिखने का ,सभी को उम्मीद थी कि आचार्य खुद घोषणा पत्र लिखेंगे उन दिनों आचार्य की तबियत थोड़ी खराब थी।
कुछ दिन बाद पार्टी के कुछ नेताओं ने बातचीत में आचार्य से जिज्ञासावश पूछा-घोषणा पत्र का काम कहां तक पहुंचा? आचार्य ने जवाब दिया ‘डॉ संपूर्णानंद को काम सौंप दिया है।’
आचार्य के साथी चिंतित हुए कारण था कि डॉ संपूर्णानंद कांग्रेस के बड़े नेता थे और उस समय प्रदेश के मुख्यमंत्री भी थे।लोगों को चिंता इसलिए हो रही थी कि जिस कांग्रेस से अलग होकर आचार्य ने प्रजा समाजवादी पार्टी बनाई है उसी कांग्रेस का बड़ा नेता और मुख्यमंत्री कैसा घोषणा पत्र बनाएगा? पर आचार्य के सम्मान में कोई कुछ बोल नहीं पाया।

कुछ दिन बाद हाथ से लिखे कागजों का एक बंडल आचार्य के पास आया।बंडल लेकर आए व्यक्ति ने आचार्य से कहा-‘डॉ संपूर्णानंद जी ने भिजवाया है।’
आचार्यजी ने वे कागज लिए और बिना देखे उन्हें छपने भिजवा दिया।
साथी परेशान कि आखिर क्या होगा?पर जब घोषणा पत्र छपकर आया तो लोग यह देखकर दंग रह गए- घोषणा पत्र में कांग्रेस और सरकार की नीतियों के खिलाफ प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की नीतियों और कार्यक्रमों पर विस्तार से चर्चा थी।

संपूर्णानन्द का जन्म वाराणासी में 1जनवरी,1889 को एक कायस्थ परिवार में हुआ। वहीं के क्वींस कालेज से बी.एस.सी. की परीक्षा उत्तीर्ण कर प्रयाग चले गए और वहाँ से एल.टी. की उपाधि प्राप्त की।आप प्रेम महाविद्यालय(वृंदावन) तथा बाद में डूंगर कालेज (बीकानेर) में प्राध्यापक नियुक्त हुए।देश की पुकार पर उन्होंने यह नौकरी छोड़ दी और फिर काशी के बाबू शिवप्रसाद गुप्त के आमंत्रण पर ज्ञानमंडल संस्था में काम करने लगे। यहीं रहकर आपने “अंतर्राष्ट्रीय विधान” लिखी और पं मदनमोहन मालवीय द्वारा संस्थापित “मर्यादा” का संपादन भी संभाला। इसके बाद जब इस संस्था से “टुडे” नामक अंग्रेजी दैनिक भी निकालने का निश्चय किया गया तो इसका संपादन भी आपको ही सौंपा गया जिसे आपने बड़ी योग्यता के साथ संपन्न किया।

श्री संपूर्णानंद में शुरू से ही राष्ट्रसेवा की लगन थी और आप महात्मा गांधी द्वारा संचालित स्वाधीनता संग्राम में हिस्सा लेने को आतुर रहते थे।इसी वजह से सरकारी विद्यालयों का बहिष्कार कर आए हुए विद्यार्थियों को राष्ट्रीय शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से स्थापित काशी विद्यापीठ में सेवाकार्य के लिए जब आपको आमंत्रित किया गया तो आपने सहर्ष उसे स्वीकार कर लिया। वहाँ अध्यापन कार्य करते हुए आपने कई बार सत्याग्रह आंदोलन में हिस्सा लिया और जेल गए। सन् 1926 में आप प्रथम बार कांग्रेस की ओर से विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। 1937 में कांग्रेस मंत्रिमंडल की स्थापना होने पर शिक्षामंत्री प्यारेलाल शर्मा के त्यागपत्र देने पर आप उत्तरप्रदेश के शिक्षामंत्री बने और अपनी अद्भुत कार्यक्षमता एवं कुशलता का परिचय दिया।आपने गृह, अर्थ तथा सूचना विभाग के मंत्री के रूप में भी कार्य किया। सन् 1955 में श्री गोविंदवल्लभ पंत के केंद्रीय मंत्रिमंडल में सम्मिलित हो जाने के बाद दो बार आप उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री नियुक्त हुए। सन् 1962 में आप राजस्थान के राज्यपाल बनाए गए जहाँ से सन् 1967 में आपने अवकाश ग्रहण किया।

श्री सम्पूर्णानंद भारतीय संस्कृति एवं भारतीयता के अनन्य समर्थक थे। योग और दर्शन उनके प्रिय विषय थे।राजनीति में वे समाजवादी थे किंतु उनका समाजवाद उसके विदेशी प्रतिरूप से भिन्न भारत की परिस्थितियों एवं भारतीय विचारपरंपरा के अनुरूप था। हिंदी तथा संस्कृत से उन्हें विशेष प्रेम था पर वे अंग्रेजी के अतिरिक्त उर्दू, फारसी के भी अच्छे ज्ञाता तथा भौतिकी,ज्योतिष और दर्शनशास्त्र के भी पंडित थे।
हिंदी में वैज्ञानिक उपन्यास सर्वप्रथम उन्होंने ही लिखा।
सामयिक पत्रों में आपने जो बहुसंख्यक लेख लिखे वे भी हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि हैं।

उत्तर प्रदेश में उन्मुक्त कारागार का अद्भुत प्रयोग आपने प्रारंभ किया जो यथेष्ट रूप से सफल हुआ। नैनीताल में वेधशाला स्थापित कराने का श्रेय भी आपको ही है।वाराणसी संस्कृत विश्वविद्यालय और उत्तर प्रदेश सरकर द्वारा संचालित हिंद समिति की स्थापना में आपका महत्वपूर्ण योगदान रहा है।ये दोनों संस्थाएँ आपकी उत्कृष्ट संस्कृतनिष्ठा एवं हिंद प्रेम के अद्वितीय स्मारक हैं।कला के क्षेत्र में लखनऊ के मैरिस म्यूजिक कॉलेज को आपने विश्वविद्यालय स्तर का बना दिया।कलाकारों और साहित्यकारों को शासकीय अनुदान देने का आरंभ देश में प्रथम बार आपने ही किया।वृद्धावस्था पेंशन भी आपने आरंभ की।हिंदी साहित्य सम्मेलन की सर्वोच्च उपाधि “साहित्यवाचस्पति” भी आपको मिली थी तथा हिंदी साहित्य का सर्वोच्च पुरस्कार “मंगलाप्रसाद पुरस्कार” भी आपको प्रदान किया गया।

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